ऑनलाइन फंडरेजिंग की नई तस्वीर बनाने में जुटे इंपैक्ट गुरु पीयूष जैन
कुछ साल पहले एक 16 वर्षीय बच्चा एक दिन मुंबई से सटे लोनावाला के अनाथालय में जाता है और खुद से एक वादा करता है। अपने वादे का पक्का यह बच्चा अमेरिका के वॉल स्ट्रीट में जेपी मोर्गन जैसी बड़ी कंपनी के लिए काम करता है। बावजूद इसके एक दिन समाज के लिए काम करने भारत वापस आता है। ये कोई और नहीं इंपैक्ट गुरु पीयूष जैन हैं। पीयूष बताते हैं- "जब मैं उस अनाथालय में गया तो मुझे अहसास हुआ कि मैं कितना भाग्यशाली हूं कि मेरे पास घर है, परिवार है और मुझे स्कूल जाने का मौका भी मिल रहा है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं एक इंवेस्टनमेंट बैंकर बना। वॉल स्ट्रीट में काम करना बहुत रोमांचकारी था, लेकिन मैं जानता था कि मुझे अपना वित्तीय कौशल समाज के हित में इस्तेमाल करना है।"
सामाजिक उद्योगों के लिए अधिक प्रभावी राजस्व मॉडल की तलाश में पीयूष ने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में व्यापार करने वालों को धन उपलब्ध कराने के इनोवेटिव तरीकों पर शोध पत्र प्रकाशित किया। इस दौरान उन्हें सिंगापुर की बिजनेस मैंनेजमेंट कंसल्टेंसी में भी जाने का मौका मिला। उन्होंने दो सिद्धांत खोजे- सोशल इंपैक्ट बॉन्ड्स और क्राउडफंडिंग। उनका मानना है कि सोशल इंपेक्ट बॉन्ड्स का भारत में प्रयोग असंभव है और जहां तक क्राउडफंडिंग का सवाल है तो वह अमेरिका में बहुत सफल रहा है और भारत में भी इसने अच्छा काम किया है।
क्राउडफंडिंग की सफलता के बारे में जो आप नहीं जानते
क्राउडफंडिंग के भारत में सफल होने के तीन प्रमुख कारक हैं। पहला तो यह है कि भारत में सामाजिक या धार्मिक कारणों से दान देने वालों की संख्या 35 करोड़ के करीब है जो अमेरिका की कुल जनसंख्या के बराबर है। भारत में जब से स्मार्टफोन लोगों के जीवन की चौथी आवश्यकता बने हैं, तब से इंटरनेट की पहुंच तेजी से बढ़ी है। पीयूष जैन के अध्ययन के मुताबित भारत में ब्राडबैंड की पहुंच बेशक अच्छी न हो लेकिन 2 करोड़ मोबाइल इंटरनेट यूजर हर तीसरे महीने बढ़ रहे हैं। कई पश्चिमी विकसित देशों से अधिक हमारे देश में लोग ऑनलाइन लेनदेन करते हैं। हालांकि यहां अभी तक अधिकतर लोगों के पास डेबिट और क्रेडिट कार्ड नहीं है लेकिन इस समस्या का समाधान डिजिटल वॉलेट बन सकता है।
पीषूय कहते हैं ‘दशकों से हमारे डीएनए में क्राउडफंडिंग मौजूद है- हमारे पास सिर्फ वह तकनीक नहीं है जिससे अधिक से अधिक दान लिया जा सके। "मुझे याद है कि बचपन में हम कई तरह के उत्सवों के लिए स्कूल और अपने मोहल्ले में चंदा इकट्ठा करते थे। वर्तमान में अधिकतर एनजीओ दान पर ही निर्भर हैं और करीब 60 फीसदी लागत इसी चंदे को जमा करने में लगती है। किसी भी एनजीओ के लिए यह बहुत बड़ा खर्च है, जो दूसरे बेहतर कार्यों पर खर्च किया जा सकता है।"
अधिकतम प्रभाव के लिए गुरुमंत्र
एनजीओ और अन्य कार्यों के लिए डिजिटल क्राउडफंडिंग के लिए एक साल पहले हार्वर्ड इनोवेशन लैब में पीयूष के इंपैक्ट गुरु की शुरुआत हुई। यह प्लेेटफॉर्म लोगों और कॉरपोरेट्स को ताकत दे रहा है। इसके जरिये उन्हें मात्र 5-10 फीसदी लागत पर चंदा मिल रहा है। इंपैक्ट गुरु सोशल मीडिया को हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। पीयूष कहते हैं "सोशल मीडिया हमारी जिंदगी में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है कि फेसबुक की वॉल लोगों की डिजिटिल संपत्ति बन गई है और इसी क्षमता को समाज के भले के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।"
उन्होंने जरूरतमंद संस्थानों का मजबूत डेटाबेस तैयार किया और उन्हें पारदर्शिता, प्रभाव, सांविधिक अनुपालन के साथ एफसीआरए अनिधिनियम के आधार पर जांचा। फिलहाल उनके प्लेटफॉर्म के माध्यम से 30 से अधिक संगठन जुड़े हैं। प्लेटफॉर्म कुछ समय पहले ही लोगों के सामने लाया गया है। इसका उद्घाटन केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने किया था।
पीयूष कहते हैं "दान देने की संस्कृति अब भारत में आम नहीं रही है। लोग आभासी दुनिया के लोगों पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहते हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह नकली एनजीओ का होना है। हमें आशा है कि हम अपने प्लेेटफॉर्म की मदद से लोगों के विश्वास को एक बार फिर जीतने में सफल होंगे। लोग स्थानीय तौर पर काम कर रही कम जानी पहचानी संस्था पर विश्वास नहीं करते हैं लेकिन हम चाहते हैं लोगों में इंपैक्ट गुरु के साथ काम कर रही संस्था पर भरोसा करें।"
लाभ के साथ प्रभाव
हम यहां लाभ के साथ प्रभाव के लिए काम कर रहे हैं। हमारे साथ जेपी मोर्गन और सेक्योइया के लोग हैं। दान देने वाले लोग अपनी उदारता की एवज में कुछ न कुछ जरूर चाहते हैं। इसलिए हमें उन्हें अन्य फायदों के साथ 80जी के प्रमाणपत्र दे रहे हैं। यह प्लेटफॉर्म सिर्फ संस्थाओं के लिए ही नहीं बल्कि छोटी संस्था, अभियानों और व्यक्तिओं के लिए भी है, जहां से अलग-अलग तरह के अभियानों को मजबूती मिलेगी।
पीयूष कहते हैं ‘गरीब और मेधावी छात्रों को अब आगे की पढ़ाई के लिए सिर्फ सरकारी छात्रवृति पर ही निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। वे इस प्लेटफॉर्म से अपनी पढ़ाई के लिए फंड जमा कर सकते हैं और इसमें सिर्फ पांच मिनट का समय लगेगा। छात्र अपनी मदद के एवज में कंपनियों के लिए काम कर सकते हैं। यहां संभावना की कोई सीमा नहीं है।’
कंपनियों के लिए कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलीटी अब आवश्यक है, लेकिन बड़ी कंपनियां इसके लिए अपने फाउंडेशन शुरू कर चुके हैं। छोटे और मझौले उद्योग इंपेक्ट गुरु का साथ लेकर सीएसआर कर सकते हैं।
सोशल मीडिया शेयरिंग पर जोर
इंपैक्ट गुरु दुनिया का पहला प्लेटफॉर्म है जहां सोशल मीडिया शेयर के माध्यम से भी दान मिलता है। सोशल मीडिया पर होने वाले प्रति शेयर की कीमत एक हजार रुपये तक हो सकती है। इसे सोशल मीडिया इनिशिएटिव को स्माइल (सोशल मीडिया इंपेक्टड लिंक्ड इंगेजमेंट) का नाम दिया गया है। पीयूष कहते हैं ‘डोनेश प्लेटफॉर्म पर आने वाले 100 लोगों में से सिर्फ 2 ही दान देते हैं। हमने योजना बनाई है कि वेबसाइट पर आने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाएगा क्योंकि हर फेसबुक शेयर से हर अभियान को मदद मिलती है। उन्होंने आइस बकेट चैलेंज का उदाहरण दिया जहां हर प्रतिभागी ने दान नहीं दिया लेकिन अपना समय देकर उस अभियान को बहुत बड़ा बनाया जिससे वह हर महीने 15 करोड़ डॉलर की कमाई कर पाया।’ इसी क्रम में जिस अभियान के 500 से अधिक सोशल मीडिया शेयर और 20 डोनेशन हो जाते हैं हम उनसे 10 के स्थाशन पर सिर्फ 5 फीसदी ही कमीशन लेते हैं।
मील का पत्थर
सितंबर में इंडस एक्शन ने गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए एक इवेंट किया था, जो अपने आप में एक मील का पत्थर है। इसके जरिये ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की दूरी को पाटने की कोशिश की जा रही है। पीयूष कहते हैं "90 फीसदी दान देने वालों को पता ही नहीं है कि शिक्षा का अधिकार कानून क्या है, जिसके जरिये गरीब बच्चों को बड़े संस्थानों में पढ़ने का मौका मिलता है।" दान के लिए हमने मुंबई के एक क्लब के टिकट बेचे, जिसके जरिये हमें एक ही शाम में 85,000 रुपये मिले जिससे 40 बच्चे स्कूल जा पाए।