काम चाहे तेल, गैस, बिजली का हो या फिर पानी का, संजय भटनागर ने रोमांच, जोखिम और चुनौतियों के बीच खोज निकला है कामयाबी की रास्ता
वो डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन क़िस्मत उन्हें आईआईटी ले गयी ... करीबी दोस्त की बदौलत बने इंजीनियर ... तेल कंपनी से अपना काम शुरू किया और बाद में पाँव जमाये पानी की दुनिया में ... वॉटर हेल्थ इंटरनेशनल के सीईओ संजय भटनागर की जिंदगी में मेहनत और उपलब्धियों के कई पहलू हैं, जो प्रेरणा देते हैं काम किये जाने की, बिना रुके अपने लक्ष्य की ओर चलते रहने की, लोगों के लिए काम करते रहने की।
संजय भटनागर डॉक्टर बनना चाहते थे। बचपन में नौकरी-पेशे से जुड़ा जो पहला ख़याल उनके मन में आया था, वो डॉक्टर बनने ही का था। लेकिन जब उन्होंने जाना कि डॉक्टर बनने की पढ़ाई के लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है, तब उन्होंने ये ख़याल अपने मन से निकाल दिया। हुआ यूँ था कि बचपन में उनके एक कज़िन उनके घर आये थे। कज़िन आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज यानी एम्स की परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे थे। संजय भटनागर ने देखा कि उनके कज़िन मोटी-मोटी किताबें पढ़ रहे हैं। पढ़ाई में दिन-रात एक कर रहे हैं। उन्हें अहसास हो गया कि डॉक्टरी की पढ़ाई आसान नहीं है और इसमें खूब मेहनत लगती है। तभी उन्होंने डॉक्टर बनने का इरादा छोड़ दिया।
दिलचस्प बात तो ये भी है कि संजय भटनागर आईआईटी की प्रवेश की परीक्षा लिखना ही नहीं चाहते थे, लेकिन एक बहुत ही करीबी साथी की वजह से संजय भटनागर ने आईआईटी की परीक्षा लिखी थी। उन्हें इस परीक्षा की तैयारी के लिए सिर्फ बीस दिन मिले थे। फिर भी उन्होंने ऐसी तैयारी की कि उन्हें अपनी पहली कोशिश में आईआईटी में सीट मिल गयी। उन दिनों की यादें ताज़ा करते हुए संजय ने बताया,"मैं आईआईटी के बारे में जानता भी नहीं था। मेरा एक करीबी दोस्त आईआईटी की प्रवेश परीक्षा लिखना चाहता था। उसने मुझसे कहा कि वो अकेला ये परीक्षा लिखना नहीं चाहता। अपने साथ उसने मुझे भी परीक्षा लिखने के लिए कहा। करीबी दोस्त था इसी वजह से मुझे उसकी बात माननी पड़ी।"
इस छोटे-से मगर दिलचस्प किस्से में अभी एक और ट्विस्ट बाकी था। आईआईटी की प्रवेश-परीक्षा में संजय भटनागर और उनका करीबी दोस्त दोनों पास हो गए। दोस्त की बात मानना और उसका साथ देना संजय भटनागर के लिए फायदेमंद रहा, लेकिन जिस दोस्त की वजह से संजय ने परीक्षा लिखी थी, उस दोस्त ने आईआईटी ज्वाइन ही नहीं किया। उस दोस्त ने नेशनल डिफेन्स एकडेमी की परीक्षा भी लिखी थी और वो उसमें भी पास हो गया था। दोस्त ने आईआईटी के बजाय भारतीय सेना में भर्ती होने का फैसला ले लिया। संजय कहते हैं,"आईआईटी में मेरे दाख़िले का सारा श्रेय उसी दोस्त को जाता है। उसी की वजह से मैं आईआईटी में पढ़ पाया। मेरे दोस्त ने इंडियन नेवल एकडेमी ज्वाइन की और देश की खूब सेवा की। अब मेरा दोस्त टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में अपना नाम कमा रहा है।"
आईआईटी दिल्ली से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री लेने के बाद संजय भटनागर के पास कई सारे विकल्प थे। एक विकल्प था नौकरी करने का। आईआईटी से पासआउट थे इसी वजह से भारत और विदेश की कंपनियाँ बाहें खोले उनको नौकरी देने के लिए तैयार खड़ी थीं। उनके पास एक विकल्प आगे की पढ़ाई करने का भी था, लेकिन उन्होंने तेल-क्षेत्र की मशहूर 'Schlumberger' कंपनी की नौकरी की पेशकश को स्वीकार लिया। इक्कीस साल की उम्र में ही संजय भटनागर को एक बहुराष्ट्रीय और नामचीन कम्पनी में अच्छी नौकरी मिल गयी। संजय बताते हैं,"मेरी उम्र इक्कीस साल की ही थी, लेकिन कंपनी ने मुझे मैनेजर बनाया और मुझे तीन-चार लोग भी दिए, लेकिन मुझे जो काम सौंपा गया था, वो बहुत चुनौतियों भरा था। ऑइल रिग के संचालन का काम था। कभी-कभी तो चौबीस घंटे लगातार काम करना पड़ता था। पूरी तरह से मेहनत का काम। एक और बात ये थी कि आप दुनिया से कहीं दूर, ऑइल रिग जैसी जगह के बीच में हैं। चुनौतियाँ तो थीं, लेकिन मेरी उम्र सिर्फ इक्कीस साल थी और इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी और चुनौती का काम मेरे लिए रोमांचक भी था और अड्वेन्चरस भी।"
वैसे भी संजय भटनागर का सारा जीवन रोमांचक, दिलचस्प और अद्भुत घटनाओं से भरा है। एक ऐसी ही मज़ेदार बात ये भी है कि तेल और गैस के क्षेत्र से अपने नौकरीपेशा जीवन की शुरुआत करने वाले संजय भटनागर आज पानी के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। वे ज़रूरतमंद लोगों को पीने के लिए साफ़ और सुरक्षित पानी मुहैया कराने वाली कंपनी वॉटर हेल्थ इंटरनेशनल के प्रेसिडेंट और सीईओ हैं।
पिछले दिनों काम के सिलसिले में हैदराबाद आये संजय भटनागर ने एक ख़ास मुलाक़ात में हमें अपनी ज़िंदगी के कुछ ख़ास पहलुओं के बारे में बताया। नौकरीपेशा जीवन की सबसे बड़ी चुनातियों के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में संजय ने कहा,"मेरे जीवन में कई सुनहरे पल रहे हैं, लेकिन कई बड़ी चुनौतियां भी थीं। जब मैं 'Schlumberger' के लिए काम कर रहा था, तब हमें खराब मौसम या फिर तकनीकी गड़बड़ी की वजह से ऑइल रिग छोड़कर सुरक्षित स्थान पर भी जाना पड़ता था। जब मैं पॉवर सेक्टर में था, तब अलग चुनौतियां थीं। बहुत कॉम्पिटीशन हैं पॉवर क्षेत्र में और जो प्रोजेक्ट्स मैंने लिये, वे लम्बे चले, लेकिन मैं अब जो काम वॉटर हेल्थ के लिए कर रहा हूँ, इसमें चुनौतियाँ भी हैं और आनंद भी। वॉटर हेल्थ के लिए काम करते हुए मुझे ऐसी जगहों पर भी जाना पड़ा है, जहाँ हालात इतने ख़राब हैं कि लोगों के पास पीने के लिए साफ़ पानी भी नहीं है। और ऐसे ही लोगों के लिए बहुत ही कम कीमत पर सुरक्षित पानी मुहैया कराना ही मेरे लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है। लोग कहते हैं कि कोई भी उच्च गुणवत्ता वाली चीज़ को न्यूनतम दाम पर देने कारोबार के लिहाज़ से सही नहीं है, लेकिन हम यही कर रहे हैं। मेरे लिए ये काम चुनौती भरा तो है ही, साथ ही मुझे इसी में सबसे ज्यादा खुशी और संतुष्टि भी मिलती है। जब आप किसी प्यासे इंसान या परिवार को पीने के लिए सुरक्षित पाने देते हैं, तो उनके चहरे में जो मुस्कान आती वो आपको बहुत खुशी देती है।"
एक सवाल के जवाब में संजय भटनागर ने कहा,"तनाव और चिंताओं से दूर रहने के लिए ये ज़रूरी है कि आप ऐसे लोगों के साथ काम करें जो अपने काम में श्रेष्ठ हैं। अगर आप क़ाबिल और अच्छे लोगों के साथ काम कर रहे हैं तो माहौल अगर तनावपूर्ण भी है और चुनौतियाँ बड़ी है, तब भी सारा बोझ आप पर नहीं होता। आपके साथी आपका बोझ कम कर देते हैं। बहुत ज़रूरी होता है काम के लिए एक अच्छा माहौल बनाना" संजय भटनागर ये भी मानते हैं कि स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए हाबी का होना बहुत ज़रूरी हैं। अपने शौक के बारे में उन्होंने बताया,"मैं गिटार बजाता हूँ। स्की टेनिस स्पोर्ट्स मेरी होब्बिस हैं।"
जब इस कामयाब शख्शियत से ये पूछा गया कि वे युवाओं को क्या सलाह देना चाहेंगे, संजय भटनागर ने कहा," लक्ष्य बड़े रखना, सबसे ज़रूरी और पहला काम होना चाहिए। लक्ष्य अगर छोटे रहेंगे तो कामयाबियाँ भी छोटी रहेंगी। आपके आसपास काफी लोग ऐसे लक्ष्य रखने की सलाह देते हैं, जो आसानी से हासिल किये जाएँ, लेकिन मैं कहता हूँ - सपने देखो , बड़े सपने देखो और फिर ऐसे लोगों की तलाश करो, जो आपके इन सपनों को साकार करने में मदद करें। अगर आप छोटे लक्ष्य रखेंगे तो आप अपने काम करने का दायरा भी छोटा कर लेंगे।"
कई बड़ी-बड़ी कामयाबियाँ हासिल कर लेने के बाद भी संजय भटनागर में नयी-नयी जगह घूमने, नए-नए विषयों के बारे में जानकारियाँ हासिल करने की ललक साफ़ दिखाई देती है। संजय भटनागर ने बताया,मेरे पिता ने बचपन में ही मुझे नए-नए विषयों के बारे में जानने-समझने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने बहुत बढ़ावा लिया, बहुत प्रोत्साहित किया। मेरे पिता स्टेट बैंक में काम करते थे। और उनके तबादले होते रहते थे। यही वजह थी कि हमें भारत के कोने-कोने में जाने का मौका मिला था। बचपन में ही मैंने ऐसी जगह भी देखी थी, जहाँ बहुत गरीबी थी, सुविधाओं की कमी थी, लेकिन मुझे भारत में कई खूबसूरत जगहों को देखने का भी मौका मिला था। मैंने देशभर में तरह-तरह के लोग देखे हैं। ऐसे लोग भी देखे, जिनके पास सब कुछ था और इसे लोग भी देखे, जिनके पास कुछ नहीं था। तरह-तरह के लोगों को देखकर ये अहसास ज़रूर होता था कि हम किस जगह पर और कैसे हैं।