तंग दिमाग लोगों की निगाहें अब 'नाइटी' पर!
आंध्र प्रदेश के गांव टोकलापल्ली (प.गोदावरी) में कमेटी गठित कर तंग दिमाग पंचों ने पाबंदी लगा दी है कि महिलाएं दिन के समय नाइटी नहीं पहनें। इतना ही नहीं, उनका फरमान ठुकराने वाली कुछ महिलाओं पर जुर्माना भी लगा दिया गया है।
यह वही तर्क है, जो खाप पंचायतों से लेकर सभी धर्मों के झंडाबरदार कमोबेश देते रहते हैं और जिसे कुछ राजनीतिक नेता भी कई बार बिना समझे और अक्सर खूब समझ बूझ कर दुहराते हैं।
याद करिए, कभी आंध्र प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी वी दिनेश रेड्डी, कर्नाटक के बाल कल्याण मंत्री सीसी पाटिल, उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे प्रकाश सिंह आदि ने महिलाओं के पहनावों को लेकर अप्रिय टिप्पणियां कर दी थीं तो कई महिला संगठनों में गुस्से की लहर फैल गई थी। एक बार फिर आंध्र प्रदेश के ही एक गांव टोकलापल्ली (पश्चिम गोदावरी) में बाकायदा एक कमेटी गठित कर पंचों, बुजुर्गों ने पाबंदी लगा दी है कि महिलाएं दिन के समय नाइटी नहीं पहनें। इतना ही नहीं, उनका फरमान अनसुना करने वाली कुछ महिलाओं पर जुर्माना भी लगा दिया गया है। महिलाएं अपने पहनावे पर उठती उंगली एक बार सहन कर सकती हैं, लेकिन कोई उनपर जबरन नियम थोपे, ये उनकी बर्दाश्त के बाहर है। आज कुछ कट्टरवादियों को छोड़कर, शायद ही किसी को महिलाओं के आधुनिक पहनावे पर ऐतराज हो। महिलाओं का ये तर्क वाज़िब भी लगता है कि जब पुरुषों को अपने हिसाब से कपड़े पहनने की आजादी है तो फिर उन पर रोक-टोक क्यों?
हकीकत तो ये है कि महिलाओं के आधुनिक होने पर तंगदिमाग लोग मूर्खतापूर्ण बयान देने लगते हैं, अप्रिय हरकतें कर बैठते हैं। यद्यपि कई जानी-मानी महिलाएं भी मौजूदा फैशन ट्रेंड की अतिवादिता को सही नहीं मान रही हैं। उनकी नजर में फैशनेबल और आधुनिकता केवल कम कपड़े पहनना ही नहीं। छोटे, कटे-फटे कपड़ों की बाजार में मांग भी है और इन्हें महंगे दाम पर खरीदने वालों की बड़ी तादाद भी। कॉर्पोरेट घरानों से लेकर स्कूल-कॉलेज तक फैशन की मंडी बन चुके हैं।
बहरहाल, आंध्र प्रदेश के गांव टोकलापल्ली में फरमान सुनाने वाले बुजुर्गों का तर्क है कि नाइटी केवल रात में पहनने के लिए है। इसको दिन में नहीं पहनना चाहिए। इस गांव के नौ बुजुर्गों ने योजनाबद्ध तरीके से यह आदेश लागू किया है। बुजुर्गों ने धमकी दे रखी है कि अगर इस मामले में कोई महिला दोषी पाए जाने पर जुर्माना देने से इनकार करती है, तो उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। उन्हें यह भी चेतावनी दी गई है कि वह सरकारी अधिकारियों से कुछ भी नहीं बताएं। सरपंच फंतासिया महालक्ष्मी ने टीओआई को बताया है कि खुले में कपड़े धोना, दुकानों पर जाना और रात के वक्त महिलाओं का बैठकों में भाग लेना अच्छा नहीं है। बुजुर्गों का फरमान है कि सुबह सात बजे से शाम को सात बजे के बीच अगर किसी महिला ने नाइटी पहनी तो उस पर दो हजार रुपये जुर्माना लगा दिया जाएगा। जो व्यक्ति गांव में किसी महिला द्वारा इस आदेश का उल्लंघन करने की सूचना देगा, उसको एक हजार रुपए का इनाम भी दिया जाएगा। तंग दिमाग पंचों का गांव में फरमान जारी होने के बाद पिछले नौ महीनों से इस गांव की महिलाएं दिन में नाइटी नहीं पहन रही हैं। इस गांव में कुल अट्ठारह सौ महिलाएं हैं। पिछले दिनो जब से यह सूचना सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो राजस्व अधिकारियों की एक टीम छानबीन करने के लिए टोकलापल्ली जा धमकी, लेकिन लोग पूछताछ से बचते हुए इस मामले का खुलासा करने से कतरा गए।
यह वही तर्क है, जो खाप पंचायतों से लेकर सभी धर्मों के झंडाबरदार कमोबेश देते रहते हैं और जिसे कुछ राजनीतिक नेता भी कई बार बिना समझे और अक्सर खूब समझ बूझ कर दुहराते हैं। गांव से लेकर बड़े शहरों तक के कॉलेजों में छात्राओं के लिए समय समय पर ड्रेस कोड लागू होते रहते हैं और उन पर अक्सर पश्चिमी वेशभूषा न पहनने का प्रतिबंध लगाया जाता है। अंशुमाली रस्तोगी लिखते हैं कि कुछ लोग ऐसी बहसों से इसलिए कतराते हैं, क्योंकि उन्हें अपने नंगे होने का डर लगा रहता है। बहस में तर्क भी होते हैं, वितर्क भी। मगर उन तंग-दिमाग लोगों के पास न तर्क होते हैं न वितर्क। बहस उन्हें आतंकित करती है। वे दूसरों पर खुलना नहीं चाहते। बंधनों को तोड़ने से घबराते हैं। यथास्थितिवाद उन्हें पसंद है। सदियों से जिन बासी मान्यताओं और सड़ी-गली स्थापनाओं को वे देखते, पढ़ते व सुनते चले आ रहे हैं, चाहते हैं, अब भी उसी दलदल में धंसे हुए हैं।
फ़ैशन इतिहासकार तूलिका गुप्ता लिखती हैं कि 'भारत में टेलीविज़न एक्ट्रेस गौहर खान को शॉर्ट ड्रेस पहनने की वजह से शूटिंग के सेट पर एक आदमी थप्पड़ मार देता है। फिर मुंबई के एक लॉ कॉलेज में लड़कियों के पहनावे को लेकर बनाए गए सख्त किस्म के नियम-कायदों पर लोगों की नाराज़गी की खबरें आती हैं। सवाल उठता है कि क्या यह पहली बार हुआ है और क्या इस बार चीजें कुछ अलग तरह से हो रहा है। हमारे कपड़े ही हमारी पहचान हैं लेकिन जिसे हम पारंपरिक भारतीय शालीनता से जोड़कर देखते हैं, जरूरी नहीं कि वह पूरी तरह से भारतीय ही हों। बहुत से भारतीय ये समझते हैं कि औरत के पहनावे और उसकी लज्जा से जुड़े विचार अंग्रेजों से विरासत में मिले हैं जबकि अतीत में झांक कर देखने पर ये पता चलता है कि ईसा से तीन सदी पहले मौर्य और शुंग राजवंश के वक्त स्त्री-पुरुष आयताकार कपड़े का एक टुकड़ा शरीर के निचले हिस्से में और एक ऊपरी हिस्से में पहना करते थे।'
मेघा मैत्रेय लिखती हैं कि 'कोई औरत क्या पहनती है, इस वजह से किसी का कोई हक नहीं बनता, उसके साथ बदतमीजी करने का लेकिन कपड़ा हो या व्यवहार, हर चीज में एक बैलेंस जरूरी है। अब एक ऐसा ग्रुप आ गया है जोकि बैलेंस की बात नहीं करता। उन्हें बिलकुल नहीं दिख रहा कि समाज में आया नंगापन आजादी या सशक्तीकरण जैसी बातों से कोसो दूर है। जो औरतें कहती हैं कि उनको कपड़ों की लम्बाई पर जज नहीं किया जा सकता, उनसे एक सवाल तो बनता है कि क्या सच में वह अपने पहनावे और लुक्स पर जज नहीं होना चाहती हैं?
अब करते हैं नंगे लड़को की बात। जब एक किसान अधनंगा बदन खेत में हल चला रहा होता है तो वह खुद को ऑब्जेक्टीफाइ नहीं कर रहा होता लेकिन जब रणबीर कपूर पर्दे पर नंगा होता है तो उसकी नियत ही खुद को ऑब्जेक्टीफाइ करने की होती है, ठीक उसी तरह जैसे तमाम हीरोइनों की होती है। नंगेपन के पीछे भी दो अलग नियत होती हैं। जब मैं सड़क पर निकलती हूँ या किसी क्लब ही जाती हूँ तो वहां मुझे लड़के पूरे कपड़े में दिखते हैं, जबकि लड़कियां नहीं। अगर एक पुरे जेंडर की चॉइस आजादी के नाम पर कम कपड़े हैं तो मुझे यह बात थोड़ी कम समझ आती है कि इसके पीछे खुद को ऑब्जेक्टीफाइ करने के अलावा और क्या कारण है। पहले बाजारवाद ने अपने फायदे के लिए सिर्फ लड़कियों को टारगेट किया था। आज इसकी चंगुल में लड़के भी हैं जिसका नतीजा है, हर साल बढ़ता जाने वाला मेल ब्यूटी इंडस्ट्री। वे बच्चों को भी ऑब्जेक्टीफाइ करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और यह पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है।'
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