हर मिनट एक बच्चे की जान ले रहा है निमोनिया
पांच साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को हो सकती है ये बीमारी...
भारत में करीब 43 मिलियन लोग निमोनिया से पीड़ित हैं। हाल ही में आई डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार पांच साल से छोटी उम्र के 1.2 लाख बच्चों की मौत निमोनिया की वजह से होती है और भारत में हर एक मिनट में एक बच्चे की निमोनिया की वजह से मौत हो जाती है। दुनिया में निमोनिया और डायरिया से मौत के सबसे ज्यादा मामले भारत में होते हैं। इंडियन मेडिकल असोसिएशन के मुताबिक, साल 2016 में देश में 3 लाख बच्चों की इस बीमारी से मौत हो गई।
भारत में बाल निमोनिया एक गंभीर बीमारी है। पांच साल से कम उम्र के किसी भी बालक को यह बीमारी कभी भी हो सकती है। अक्सर ये बीमारी जीवाणु या कभी-कभी विषाणु से होती है।
बदलते मौसम के साथ बच्चों में निमोनिया का खतरा मंडराना शुरू हो गया है। डॉक्टर इसे मौसम में परिवर्तन के कारण होने वाली बीमारी बता रहे हैं। यही वजह है कि खासतौर पर भारत में इसकी रोकथाम और जांच के बारे में जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है। इसके लक्षण भी आम फ्लू से काफी मिलते-जुलते होते हैं। आम फ्लू से छाती में इन्फेक्शन और लगातार खांसी होती है। भारत में बाल निमोनिया एक गंभीर बीमारी है। पांच साल से कम उम्र किसी भी बालक को यह बीमारी कभी भी हो सकती है। बुखार, खांसी और सांस तेजी से चलना ये लक्षण होने पर इसे न्यूमोनिया समझना चाहिये। ये बीमारी अक्सर जीवाणु या कभी-कभी विषाणुओं से होती है।
आईएमए के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल के मुताबिक, "बच्चे की नाक व गले में आमतौर पर पाए जाने वाले विषाणु और जीवाणु सांस के साथ कई बार फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। खांसते या छींकते समय बूंदों के रूप में भी ये हवा में फैल जाते हैं। अधिकांश बच्चे रोगों से लड़ने की अपनी प्राकृतिक शक्ति से इस रोग से पार पा लेते हैं। लेकिन कुछ बच्चों में, खासकर कुपोषण के शिकार या स्तनपान से वंचित बच्चों में यह समस्या गंभीर रूप ले सकती है। घर के अंदर वायु प्रदूषण, भीड़भाड़ में रहने और माता-पिता के धूम्रपान के कारण भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है। न्यूमोनिया को ऐंटीबायॉटिक्स से ठीक किया जा सकता है। अधिकांश मामलों में घर पर ही इलाज हो जाता है। बीमारी गंभीर होने पर ही बच्चे को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। न्यूमोनिया छूत का रोग नहीं है लेकिन इसके विषाणु या जीवाणु संक्रमण पैदा कर सकते हैं। बच्चों को ऐसे लोगों से बचाकर रखा जाए जिनकी नाक बहती है, गला खराब हो, खांसी आती हो या जिन्हें श्वसन संक्रमण हो। स्तनपान न्यूमोनिया को रोकने में पूर्णत: प्रभावी तो नहीं है, लेकिन इससे बीमारी की मियाद जरूर कम हो जाती है। घरेलू प्रदूषण से बचाव और भीड़भाड़ से बच्चे को बचाकर भी इस रोग से बचाव किया जा सकता है।"
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निमोनिया के लक्षण
निमोनिया में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस से फेफड़ों में एक टाइप का इन्फेक्शन होता है जो फेफड़े में लिक्विड जमा करके खून और ऑक्सीजन के फ्लो में रुकावट पैदा करता है। बलगम वाली खांसी, सीने में दर्द, तेज बुखार और सांस तेजी से चलना निमोनिया के प्रमुख लक्षण हैं। निमोनिया का अटैक बच्चों पर ज्यादा होता है इसलिए निमोनिया के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। अगर सर्दी जुकाम ठीक नहीं हो रहा है तो बिना समय गंवाए डॉक्टर को दिखाएं और छाती का एक्सरे करवाएं, ताकि निमोनिया होने या ना होने का पता लगाया जा सके।
ऐसे फैलता है निमोनिया
निमोनिया कई तरीकों से फैल सकता है। वायरस और बैक्टीरिया अक्सर बच्चों के नाक या गले में पाए जाते हैं और अगर सांस से अंदर चला जाए तो फेफड़ों में जा सकता है और इसकी वजह से खांसी या छींक के जरिए एक से दूसरे तक पहुंच जाता है। इसके साथ ही जन्म के समय या इसके तुरंत बाद यह ब्लड के जरिए भी फैल सकता है।
बचने के उपाय
इससे बचने का उपाय जहां एक ओर वैक्सीन है, वहीं पौष्टिक न्यूट्रिशन, साफ-सफाई के जरिए भी इसे रोका जा सकता है। निमोनिया के बैक्टीरिया का इलाज ऐटीबायॉटिक्स से किया जाता है लेकिन केवल एक तिहाई बच्चों को ही ऐंटीबायॉटिक्स मिल पाते हैं। इसलिए जरूरी है कि सर्दियों में बच्चों को गर्म रखा जाए और ठंड से बचाकर रखें। गाइडलाइन के अनुसार नियूमोकोकल कोंजूगेट और हायमोफील्स इनफ्लुएंजा टाइप-बी ऐसे दो प्रमुख वैक्सीन हैं, जो निमोनिया से बचाती हैं।
-प्रज्ञा श्रीवास्तव