बेटे की आत्महत्या ने बदल दी जिंदगी, भूखों तक खाना पहुंचाने में जुटा एक बुजुर्ग दंपति
किसी भी माता-पिता के लिए उनके बच्चे ही उनकी दुनिया और सहारा होते हैं। बच्चों की हर खुशी के लिए वो अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन जब बच्चे किसी कारणवश इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं तो ऐसे माता-पिता की तो मानो दुनिया ही उजड़ जाती है। उन्हें लगता है कि उनका सब कुछ छिन गया है अब ऐसी जिंदगी जी कर उन्हें क्या करना है। कुछ ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ा गुजरात के राजकोट में रहने वाले चंदूलाल बापू और उनकी पत्नी को। जब उनके जवान बेटे ने आत्महत्या कर ली थी जिसके बाद उनकी जिंदगी ठहर सी गई थी। तब किसी के कहने पर उनकी जिंदगी की राह ऐसी बदली की आज वो राजकोट के आसपास गरीब, लाचार, दिव्यांग और बूढ़े लोगों को रोज खाना खिलाते हैं।
चंदूलाल बापू राजकोट के पास गोंडल गांव के रहने वाले हैं। कभी वो घरों में पेंटिंग करने का काम करते थे और उनकी पत्नी लिज्जत पापड़ बनाने का काम करती थीं। उनके दो बेटे थे विशाल और खुशहाल। बड़ा बेटा विशाल एक जौहरी की दुकान में काम करता था लेकिन साल 2004 में किसी कारणवश उसने आत्महत्या कर ली। उस समय विशाल की उम्र 21 साल थी और वहीं अपने घर का एकमात्र कमाने वाला था।
इस घटना से बापू और उनकी पत्नी को गहरा आघात लगा। वो मौन और दुखी रहने लगे। तब वो एक आश्रम में पहुंचे और एक बाबा से मिले। बाबा ने उनसे कहा कि जाने वाला तो चला गया उसकी याद में रोने से क्या फायदा। बाबा ने उन्हें गरीब और कमजोर लोगों को खाना खिलाने के लिए कहा। उन्होने कहा कि भूखे को खाना खिलाने से बड़ा मानवता में कोई धर्म नहीं है।
इसके बाद बापू और उनकी पत्नी ने गरीब और अनाथ बच्चों को खाना खिलाने का काम शुरू कर दिया। वो दोनों दिन भर में 2 सौ रूपये ही कमा पाते थे। उसी पैसे से बापू की पत्नी बच्चों के लिए खिचड़ी और साग बनातीं थीं। उस खाने को बापू अपनी साइकिल से गांव के गरीब और लाचार बच्चों तक खाना पहंचाते थे। पिछले 12 सालों से वो लगातार बिना रूके इस काम को कर रहे हैं। धीरे धीरे लोग बापू के काम को पहचानने लगे और लोगों ने उनको दान देना शुरू कर दिया। लोग उन्हें दान में अनाज, तेल, मसाले, साग-सब्जी देने लगे। लोगों ने बापू की दिक्कतों को देखते हुए उन्हें एक पुराना ऑटो दान में दिया। लेकिन जैसे जैसे लोगों को उनके काम के बारे में पता चलता गया तो लोग उन्हें बताते कि उनके गांव के पास बुजुर्ग महिला पुरूष रहते हैं जिनके बच्चों ने उन्हें छोड़ दिया है या वो बेसहारा हैं। तब बापू ने बच्चों के अलावा ऐसे लोगों को भी खाना बांटना शुरू कर दिया। इसके लिए उन्होने अपना एक ट्रस्ट बनाया है।
इसके बाद जब उन पर ज्यादा लोगों के लिये खाना बनाने की जिम्मेदारी आई तो किसी ने उन्हें एक पुरानी मारूती वैन दे दी। अब वो बच्चों, बूढ़ों के अलावा रेलवे प्लेटफॉर्म और बस स्टेशन पर रहने वाले बेघरों, लावारिस, दिव्यांग और विछिप्त लोगों को भी खाना बांटते हैं। इस काम को वो सुबह 10:30 बजे से दोपहर 3 बजे तक करते हैं। करीब 60 साल के हो चुके बापू का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है इसलिए उनके इस काम में उनका बेटा खुशहाल हाथ बंटाता है। अपने बेटे की मदद से वो हर रोज 40 किलोमीटर के दायरे में खाना बांटने का काम करते हैं। खाना बनाने में बापू की पत्नी के अलावा चार दूसरी महिलाएं भी मदद करती हैं। बापू और उनका बेटा सातों दिन अलग अलग खाना देते हैं। बापू बुजुर्ग लोगों को ज्यादा खाना देते हैं जिससे कि वो दिन और शाम को दोनों समय खाना खा सकें क्योंकि ऐसे लोगों के पास खाना खाने का और कोई दूसरा साधन नहीं होता है।
बापू ने अपने इस काम के लिए 10 वालंटियर भी रखे हुए हैं। जिनमें से कुछ को वो वेतन देते हैं और कुछ स्वेच्छा से इस काम को कर रहे हैं। बापू ऐसे लोगों को खाने के अलावा सर्दियों में कंबल और शॉल भी बांटते हैं। बापू के इस काम की चर्चा आज राजकोट ही नहीं उसके आस पास के एरिया में भी खूब होती है लोग कहते हैं कि अगर इंसान की इच्छाशक्ति हो तो उसके काम में उसकी गरीबी भी रूकावट नहीं डालती है। उनके इस निरंतर चलने वाले सेवा भाव को देखकर 1 महीने पहने एक दानदाता ने उनको एक नई मारूति कार दान में दी है, क्योंकि उनकी वैन पुरानी होने के कारण कई बार रास्ते में खराब हो जाती थीं जिस कारण लोगों तक समय पर खाना नहीं पहुंच पाता था। लेकिन अब नई और बड़ी कार आने के बाद एक बार में ही कई भूखे लोगों तक खाना पहुंचाना इनके लिए आसान हो गया है।