आम बजट 2018 पर विशेष रिपोर्ट: 'बेरोजगारी' पर मगजमारी
आम बजट 2018...
वित्त मंत्री अरुण जेटली, राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ला, पी राधाकृष्णन, नीति आयोग की बागडोर संभाल रहे राजीव कुमार, 1981 बैच के ऑफिसर अधिया, राजस्थान कैडर के आईएएस सुभाष चंद्र गर्ग, 1984 बैच के आईएएस राजीव कुमार, इन्वेस्टमेंट और पब्लिक एसेट मैनेजमेंट विभाग को देख रहे नीरज कुमार आदि के साथ आम बजट की तैयारी में जुटे हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में एक है, दैत्य की तरह मुंह फैलाए बेरोजगारी के चंगुल से देश के युवाओं को कैसे उबारें, क्योंकि अगले साल आम चुनाव आ रहा है, जिसमें युवाओं की भागेदारी बड़े मायने रखेगी।
हालात इतने गंभीर हैं कि राजनीतिक दल भी ठीक से रोज़गार के बारे में अपना प्लान क्लियर नहीं कर रहे हैं। रोजगार की सरकारी घोषणाओं का हाल ये है कि हरियाणा के करनाल ज़िले में चपरासी के 70 पदों के लिए वैकेंसी निकली और लगभग दस हज़ार लोग भर्ती होने पहुंचे!
इस बार फरवरी 2018 में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली जो आम बजट पेश करने वाले हैं। यह बजट मोदी सरकार की आखिरी पूर्ण बजट होगा। उस बजट पर देशभर के अर्थशास्त्रियों की नजर लगी है क्योंकि यह चुनाव पूर्व का बजट सरकार के भविष्य के लिए कई अलग मायने लिए रहेगा। मतदाता के किस वर्ग का बजट में किस तरह ध्यान रखा, न रखा गया है, यह सबसे गौरतलब होगा। इन दिनो आम बजट को एक बड़ी टीम मिलकर तैयार कर रही है। वित्तमंत्री बजट की टीम को लीड कर रहे हैं। वित्तमंत्री के सहयोग के लिए मंत्रालय में राज्यमंत्री शिवप्रताप शुक्ला और पी राधाकृष्णन लगे हुए हैं। नीति आयोग की बागडोर संभाल रहे राजीव कुमार भी बजट टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
1981 बैच के ऑफिसर अधिया बजट के इंचार्ज हैं और सरकार के घाटे और मुनाफे का गणित यहीं तैयार कर रहे हैं। 1983 बैच के राजस्थान कैडर के आईएएस सुभाष चंद्र गर्ग, 1984 बैच के आईएएस राजीव कुमार, इन्वेस्टमेंट और पब्लिक एसेट मैनेजमेंट विभाग को देख रहे नीरज कुमार आदि भी जेटली के साथ आम बजट की तैयारी में जुटे हैं। बजट के दौरान यह भी गौरतलब है कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने जो हिसाब-किताब लगाया था, उसमें गड़बड़ हो गई है। भले ही वे सार्वजनिक तौर पर ये कहें कि इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है, लेकिन विश्व मुद्रा कोष और कई दूसरी संस्थाओं ने कहा है कि जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का विकास दर कम से कम एक फीसदी तो जरूर गिरेगा।
वित्त मंत्री के सामने इस चुनौती पूर्ण बजट को लेकर एक बड़ी चिंता देश के शिक्षित युवा मतदाता वर्ग के रोजगार के संकटों को लेकर है। देश में रोजगार के हालात अच्छे नहीं है। शिक्षित युवाओं के लिए जरूरत के मुताबिक अपेक्षित संख्या में नई नौकरियों का सृजन नहीं हो पा रहा है। बजट में वित्त मंत्री रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए क्या कदम उठाते हैं यह देखना महत्वपूर्ण होगा। अर्थशास्त्र के जानकार संकेत दे रहे हैं कि अफॉर्डेबल हाउसिंग, रेलवे क्षेत्र में बड़ा निवेश प्रस्तावित कर वित्त मंत्री एक तीर से दो निशाने साध सकते हैं। इन क्षेत्रों में निवेश एक ओर अर्थव्यवस्था को सहारा दे सकता है, दूसरी ओर रोजगार के अवसर पैदा करने में भी अहम भूमिका निभा सकता है।
इस बीच जीएसटी काउंसिल की दो दिवसीय बैठक हो रही है। काउंसिल की यह 24वीं और आम बजट 2018 से पहले की आखिरी बैठक है। 1 फरवरी 2018 को पेश होने वाले आम बजट से ठीक पहले हो रही जीएसटी काउंसिल की इस बैठक में 70 अन्य वस्तु एवं सेवाओं की कर दरों को तर्कसंगत बनाए जाने के संकेत मिल रहे हैं। इनमें से अकेले 40 सेवाओं पर कर की दरों को तर्कसंगत (संशोधन) बनाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह आम बजट से ठीक पहले आम आदमियों के लिए एक राहत भरी खबर होगी।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में करीब 40 से 50 सेवाओं पर कर की दरें बदली जा सकती हैं। ये कुछ ऐसी सेवाएं हैं जो कि जीएसटी से पहले कर के दायरे में नहीं थीं लेकिन नए अप्रत्यक्ष कानून के लागू होने के बाद वो जीएसटी के दायरे में आ गईं। मौजूदा समय में इन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बैठक में रियल एस्टेट सेक्टर को जीएसटी के दायरे में लाने पर सहमति बनाई जा सकती है। साथ ही इस बैठक में कंपोजिशन स्कीम की सीमा को और बढ़ाया जा सकता है। इसके बाद अब अगली बैठक मार्च के आखिर में या फिर अप्रैल में ही होगी। ऐसे में सरकार चाहेगी कि इस बैठक में काफी सारे अहम फैसले ले लिए जाएं। यह पेश होने जा रहे आम बजट से पहले की आखिरी बैठक है। साल 2019 में लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं तो ऐसी बैठकों को उसे ध्यान में रखते हुए डिजायन किया जा रहा है।
जहां तक देश में रोजगार की हालत का सवाल है, सरकार से सवाल किए जा रहे हैं कि वह कम से कम यह हर तीन महीने पर बताए तो सही कि किस राज्य में किस-किस विभाग में और कुल कितनी नौकरियां आईं, उनकी भर्ती प्रक्रिया कितने समय में पूरी हुई। सरकारें चाहें तो यह काम दो चार दिन के भीतर हो सकता है बशर्तें वह बताना चाहें तो। हालात कितने गंभीर हैं कि राजनीतिक दल भी ठीक से रोज़गार के बारे में अपना प्लान क्लियर नहीं कर रहे हैं। रोजगार की सरकारी घोषणाओं का हाल ये है कि हरियाणा के करनाल ज़िले में चपरासी के 70 पदों के लिए वैकेंसी निकली। करीब दस हज़ार लोग भर्ती होने पहुंचे। भर्ती कैंसिल कर दी गई।
राजस्थान में विधानसभा में 18 पदों के लिए आवेदन निकला। चौथी श्रेणी के 12,453 आवेदकों में से कम से कम 129 इंजीनियर थे, 23 वकील, 1 सीए, और 393 पोस्ट ग्रेजुएट शामिल थे। उनमें जिन 18 लोगों का चयन हुआ, उनमें से एक बीजेपी विधायक जगदीश नारायण मीणा के बेटे भी शामिल थे। दिक्कत क्या है कि लाखों लोग फार्म भरते हैं जिससे परीक्षा बोर्ड को ठीक ठाक कमाई हो जाती है। बेरोज़गार भले न कमा सकें मगर बेरोज़गारों से कमा लेने का फार्मूला हर चयन आयोग का है।
मध्य प्रदेश में पिछले साल पटवारी की परीक्षा हुई। पहले इसके लिए दसवीं पास की योग्यता होती थी मगर देखा गया कि भीड़ बहुत ज़्यादा हो जाएगी तो योग्यता बढ़ाकर ग्रेजुएट कर दी गई। इसके बाद भी 9,235 पदों के लिए 12 लाख से अधिक आवेदन आ गए। तीन लाख उम्मीदवार ऐसे आ गए जिनकी योग्यता ग्रेजुएट से ज़्यादा थी। इनमें से 20,000 उम्मीदवारों के पास पीएचडी की डिग्री थी। बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन का हाल ये है कि कई साल तक वैकेंसी नहीं आई। अब हर साल आती है। फार्म भरने से पीटी की परीक्षा के बीच एक साल गुज़र जाता है। तीन साल से बिहार प्रशासनिक सेवा का रिज़ल्ट नहीं आया है। फरवरी 2017 में 1,60,0,86 छात्रों ने पीटी की परीक्षा दी।
31 सितंबर 2017 को पीटी का रिज़ल्ट आया। इसमें 8,282 छात्र मेन्स के लिए पास हुए। इसके बाद मेन्स की परीक्षा फार्म भरना, इम्तहान फिर रिज़ल्ट का इंतजार। 2015 की परीक्षा की रिज़ल्ट 2017 तक नहीं आए। छात्र 2015 की परीक्षा पास कर ज्वाइनिंग का इंतज़ार कर रहे हैं। 2016 की परीक्षा पास करने वाले तो कर रही रहे हैं। लोग सरकार से पूछ रहे हैं कि कर्मचारी चयन आयोग स्टाफ सलेक्शन कमिशन की परीक्षाएं समय पर क्यों नहीं होती हैं। क्यों वर्ष 2012 का रिजल्ट 15 में आता है। ज्यादातर चयन आयोग भर्ती परीक्षा प्रक्रिया पूरी करने में तीन-तीन साल ले लेते हैं।
बेरोजगारी देश के करोड़ों युवाओं के लिए विकट समस्या बनी हुई है। देश में लाखों पढ़े-लिखे बेरोजगार आज भी नौकरी, रोजगार के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। रोजगार के आंकड़ों को अगर देखें तो साल 2015 में 1 लाख 35 हजार नौकरियां पैदा हुईं जो साल 2014 में 4 लाख 21 हजार थीं और साल 2013 में 4 लाख 19 हजार थी। हर साल देश की वर्कफोर्स में करीब 1 करोड़ युवा जुड़ रहे हैं और इनके लिए सरकार को नौकरी के अवसर मुहैया कराना बेहद बड़ी चुनौती है।
अब साल दर साल नौकरी के ये आंकड़ें देखें तो साफ लगता है कि सरकार के लिए इतने युवाओं को रोजगार मुहैया कराना विशाल चुनौती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी सभाओं में बड़ी तादाद में रोजगार सृजन कर बेरोजगारों को काम देने का वादा किया था। आने वाले बजट की चर्चा के साथ ही युवा वर्ग में फिर से एक बार आशा का संचार हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि यह बजट आम आवाम के साथ ही युवाओं के लिए भी संकट मोचन साबित हो। बदली सरकारी नीतियों के चलते देश के छोटे उद्योगों और कृषि क्षेत्र पर भी बड़ी मार पड़ी है। डेढ़ से दो करोड़ दिहाड़ी मजदूर देश में बेरोजगार हुए हैं। नोटबंदी से पहले भी देश में विकास दर गिर रहा था और बेरोजगारी बढ़ी थी।
अब जबकि आम बजट आने में कुछ ही दिन शेष हैं, जॉब क्रिएशन पर सरकार का रुख साफ होने का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। सरकार रोजगार के मोर्चे पर उतनी सफल अभी तक दिखाई नहीं दी है और युवाओं में खासतौर पर इसको लेकर रोष है। हालांकि हाल में ही सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं और इनके जरिए बड़े पैमाने पर नौकरियां दिलाने का भरोसा भी जताया है। फिलहाल के नौकरी के आंकड़ों को देखें तो जॉब क्रिएशन के लिए सरकार बजट में कुछ एलान करेगी, ऐसी उम्मीद जताई जा रही है। रोजगार बढ़ाने के लिए ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर, छोटी-मझोली इंडस्ट्री में नए रोजगार पैदा करने की बात आम बजट में फोकस होने की उम्मीद है। नई नीति के तहत एप्लॉइज पीएफ में एक हिस्सा सरकार दे सकती है।
बजट में लेबर लॉ से जुड़ी शर्तों में ढील दी जा सकती है जिसके बाद नौकरीपेशा खासतौर पर कारखानों में काम करने वाले कर्मचारियों को कुछ राहत की उम्मीद है। सरकार ऐसे एंप्लॉयर को इनकम टैक्स में छूट दे सकती है जो बड़े पैमाने पर नौकरी के मौके पैदा करें। सरकार मेक इन इंडिया के तहत स्किल डेवलपमेंट और रोजगार की गारंटी दिलाने पर फोकस कर रही है और बजट में इससे जुड़ी कुछ घोषणाएं हो सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रोजगार की गारंटी वाली स्किल ट्रेनिंग पर सरकार सब्सिडी दे सकती है। अगर ऐसा हुआ तो बड़े पैमाने पर नई नौकरियों के बाजार में आने की उम्मीद है। नेशनल एंप्लॉयमेंट पॉलिसी के तहत सेक्टरवार जॉब क्रिएशन के लिए एक रोडमैप तैयार किया जा सकता है और इसका खाका इस बजट में पेश किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें: टीकाकरण के लिए पहाड़ों पर बाइक चलाने वाली गीता को डब्ल्यूएचओ ने किया सम्मानित