100 दिन योगी सरकार
वैसे तो किसी भी सरकार की हैसियत को मापने के लिये 100 दिन बहुत कम हैं किंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ने लगते हैं...
आशा, उत्साह, उमंग, अपेक्षा और स्वप्नों के रथ पर सवार केसरिया सरकार के 100 दिन पूर्ण हो चुके हैं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने 100 दिवसीय कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड दिखाते हुये श्वेत पत्र जारी किया है। वैसे तो किसी भी सरकार की हैसियत को मापने के लिये 100 दिन बहुत कम हैं किंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ने लगते हैं।
योगी सरकार ने आते ही अपना हंटर सबसे पहले अवैध बूचडख़ानों पर चलाया, जोकि काफी हद तक ठीक था। एक आकड़े के अनुसार, यूपी में 485 बूचडख़ानों में 400 अवैध बूचडख़ाने थे। हालांकि, यह मामला बाद में कोर्ट में पहुंचा, जिसकी सुनवाई अभी भी चल रही है। लेकिन योगी सरकार का डर अभी भी अवैध बूचडख़ानों पर दिखाई दे रहा है।
प्रचंड अपेक्षाओं के ताप के सम्मुख बेशुमार बहुमत से लैस योगी सरकार अपने परीक्षा के दौर से गुजर रही है। जहां एक ओर सहारनपुर के जातीय दंगों के दंश है वहीं दूसरी ओर ठेका माफियाओं और खनन माफियायों की टूटती कमर भी है। अगर सूबे में कानून-व्यवस्था के दरकने की चीत्कार है तो अब गुंडों के अंदर भी खौफ का अहसास है। गर समयबद्ध गड्ढा मुक्त सड़क का असफल वादा है तो 63 फीसदी पूर्ण काम हो जाने से दिखता इरादा है। वीआईपी कल्चर पर लगाम है तो किसानों को राहत और शोहदों से महिलाओं को आराम है। हमलों से बेजार पुलिस, भय मुक्त समाज के सरकारी वादे के चीरहरण का चीत्कार है तो आम आदमी को कानून के इकबाल के बुलंद होने का इंतजार है।
एकात्म मानव समाज के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय के सपने को साकार करने की दिशा में इन 100 दिनों की कार्यावधि एक प्रभावी पहल कही जा सकती है, तो कार्यक्रमों के सकारात्मक क्रियान्वयन की निरंतरता सरकार के लिये बड़ी चुनौती है। नीति और नीयत के ठीक होने का दावा करने वाली यूपी सरकार द्वारा दागी नौकरशाहों को सरकार में बड़ी जिम्मेदारी देना जुगाड़बाजी के जलवे को बयान करता है। 100 दिन बीतने के बाद भी मुख्य सचिव की कुर्सी पर पुरानी सरकार में तैनात राहुल भटनागर ही बैठे हैं, जबकि चुनावों के दौरान यही बीजेपी उनके रहते निष्पक्ष चुनाव न होने की दलील चुनाव आयोग में दे रही थी।
अब देखिये न अभी भी कई ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया है। यही हाल मंत्रियों का भी है, लेकिन तमाम शिकायतों और सवालों के बावजूद योगी सरकार के जन-हितैषी फैसलों का स्वागत होना चाहिए। प्रदेश को माफिया, गुंडा तथा भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की दिशा में पहल प्रारम्भ हो गई है। सरकार ने ग्राम सभाओं और सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे भू-माफियाओं के खिलाफ मुहिम छेड़ी है और एंटी भू-माफिया पोर्टल लांच किया है। एंटी भूमाफिया टास्क फोर्स गठित की गयी है, जिसके जरिये 5891 हेक्टेयर अतिक्रमित भूमि मुक्त करायी गई है। ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया यूपी में लागू कर योगी सरकार ने ठेका माफियाओं की कमर तोड़ दी है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है। हर विभाग को 3 महीने के अंदर अपने यहां ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू करनी होगी।
वर्षों तक राज्य की खनन नीति खराब रही। यूपी में भाजपा की सरकार बनी, तो नयी खनन नीति बनायी। ई-पोर्टल के जरिये खदानों की नीलामी शुरू करने का फैसला किया है। लेकिन सवाल फिर वही है कि अगर नीचे बैठे अधिकारी सही दिशा में काम करेंगे तो ही यह योजना भी बेहतर ढंग से चल पाएगी। अत: सरकार को मूल्यांकन और अनुश्रवण के स्तर पर अधिक चौकन्ना रहना पड़ेगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर गिट्टी बालू के अवैध खनन के खिलाफ की जा रही कारवाई से यूपी-एमपी की सीमा पर बसे सोनभद्र-मिर्जापुर के खनन क्षेत्र में गिट्टी बालू का उत्पादन 70 फीसदी तक घट गया है। अवैध वसूली के लिए पूर्व सरकार में लगाया गया सिंडिकेट पुलिस के खौफ से भागा-भागा फिर रहा है तो वही परमिट की काला बाजारी पूरी तरह से बंद है। आलम यह है कि खनन क्षेत्र मे अवैध खनन और पर्यावरणीय मानकों के उल्लंघन को लेकर चलाये जा रहे सघन अभियान की वजह से 100 से ज्यादा क्रशरों और 500 डोलोमाईट खदानों को पूरी तरह बंद कर दिया गया है वही डोलोमाईट और लाइमस्टोन की ढुलाई करने वाले हजारो वाहन खनन सामग्री के अभाव में सड़क के किनारे खड़े हैं।
प्रदेश की अर्थव्यवस्था किसानों पर निर्भर है। प्रदेश की भाजपा सरकार किसानों के हितों को प्राथमिकता दे रही है। किसानों के लिए खाद-बीज की व्यवस्था करायी जा रही है। सरकार ने पांच हजार से अधिक गेहूं क्रय केंद्र बनाये और पिछले साल के मुकाबले चार गुना गेहूं की खरीद की है। योगी सरकार ने अब तक 36 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की है। अब तक गन्ना किसानों का 22517 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान कराया जा चुका है। सरकार ने पहली कैबिनेट में ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया। इससे 86 लाख किसानों को फायदा हुआ। किसानों की कर्जमाफी पर राज्य सरकार के खजाने पर 36,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा, लेकिन सरकार ने किसान हित में यह किया।
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सरकार ने केंद्र के साथ पावर फार आल अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं। प्रदेश के सभी धार्मिक स्थलों पर भी विद्युत की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की है। साथ ही बीपीएल परिवारों को नि:शुल्क बिजली कनेक्शन देने का फैसला किया गया है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बीच अन्तरराज्यीय परिवहन समझौते पर हस्ताक्षर किये गये हैं। इससे सड़क परिवहन सुगम होगा। कैलाश मानसरोवार की अनुदान राशि 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये की गयी।
भ्रष्टाचार को नियंत्रित और निर्मूल करने की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता साफ दिखाई पड़ रही है। सरकार बनने के बाद योगी सरकार ने आधा दर्जन योजनाओं के जांच के आदेश दिए हैं जिनमें सही समय पर रिवर फ्रंट घोटाले की ही जांच पूरी हुई है। इसकी सीबीआई से जांच कराने की संस्तुति भी हो गई है। हालांकि अभी उसमें भी सिर्फ अफसरों को ही घेरा गया है, जबकि अभी भी राजनीतिक व्यक्ति जांच से दूर हैं। लेकिन कम से कम एक उम्मीद बंधी है कि जांच पूरी होने पर दोषियों को सजा भी मिलेगी, क्योंकि इस योजना में कई निलंबन भी हुए हैं। इस योजना में जांच समिति ने पाया कि 600 करोड़ का प्रोजेक्ट 1526 करोड़ तक पहुंचा दिया गया। मामले में एक अभियंता को सस्पेंड किया गया, जबकि 08 के खिलाफ एफआईआर भी करवाई गई। योगी सरकार ने आते ही अपना हंटर सबसे पहले अवैध बूचडख़ानों पर चलाया, जोकि काफी हद तक ठीक था। एक आकड़े के अनुसार, यूपी में 485 बूचडख़ानों में 400 अवैध बूचडख़ाने थे। हालांकि, यह मामला बाद में कोर्ट में पहुंचा, जिसकी सुनवाई अभी भी चल रही है। लेकिन योगी सरकार का डर अभी भी अवैध बूचडख़ानों पर दिखाई दे रहा है।
योगी ने 15 जून तक सड़क गड्ढा मुक्त करने का दावा कर दिया, लेकिन 15 जून को जब आंकड़ा सामने आया तो 63 फीसदी ही काम हो पाया था। कुल मिलाकर 9 डिपार्टमेंट्स को कुल 1,21,034 किमी सड़क को गड्ढा मुक्त करना था, लेकिन 15 जून तक 71 हजार 440.71 किमी सड़क को ही गड्ढा मुक्त किया जा सका था। ऐसे में उनका यह दावा उनकी अनुभवहीनता को दिखाता है। अगर वह टाइमलाइन नहीं देते तो एक बारगी यह पहल बेहतर मानी जाती, लेकिन टाइमलाइन पूरा भी हो गया और काम भी नहीं हुआ। साथ ही किसी पर एक्शन भी नहीं लिया, जबकि एक्शन लेने वाली सरकार की छवि बनी है। सरकार ने उन्हीं अधिकारियों को अब बिना टाइमलाइन के सड़कों को गड्ढा मुक्त करने का काम फिर थमा दिया।
योगी सरकार बेहतर बिजली व्यवस्था देने का वादा कर सत्ता में आई तो थी, लेकिन हालत यह है कि लखनऊ के इलाकों में भी 2-2 घंटे की कटौती हो रही है। और बिजली की नीति का भी कोई खुलासा नहीं हुआ है। पूर्ववर्ती सरकार की तरह अभी भी महंगी बिजली खरीदी जा रही है और आपूर्ति भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। अगर सरकार बिजली नहीं दे पा रही है तो बिल कम करे।
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अखिलेश सरकार में जो बिजली 4 रुपए की कीमत पर मिल सकती थी, वही बिजली 5 रुपए से भी ज्यादा कास्ट में खरीदी जा रही थी। फिलहाल वर्तमान में भी ऐसा ही है।
महिलाओं के लिए एक बेहतर पहल एंटी रोमियो स्क्वाड के रूप में की गई थी। उसका असर भी सूबे के कुछ इलाकों में प्रभावशाली दिख रहा है। लेकिन 8,55,714 व्यक्तियों की जांच, 651 अभियोग पंजाकृत तथा 1367 व्यक्तियों के विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही एवं 3,84,921 को चेतावनी देने के बाद भी छेडख़ानी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सरकारी स्कूलों में सत्र की शुरूआत में ही यूनीफार्म और किताबें बांटने का निर्णय एक बेहतर कदम है, क्योंकि पिछली सरकार में यूनीफार्म और किताबें आधा सत्र बीत जाने के बाद मिली थी। अब देखना यह होगा कि क्या जुलाई में स्कूल खुलने के बाद सरकार अपने इस दावे को पूरा कर पाएगी। अभी हाल ही में सीएम योगी ने बच्चों की यूनीफार्म का रंग भी बदला है। ऐसे में योगी सरकार से इस योजना को लेकर सभी की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। प्राइवेट स्कूलों की फीस कम करने को लेकर एक कमेटी बनाई गई थी, लेकिन अभी तक वह कमेटी कोई रिपोर्ट नहीं दे सकी है। इससे साफ जाहिर होता है कि ब्यूरोक्रेट्स पर सरकार को और शिकंजा कसने की आवश्यकता है।
तमाम सवालों के बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सीएम योगी की बढ़ती प्रशासनिक समझ और सूझबूझ अव्यवस्था और अराजकता की तेज आंधियों के दरम्यान उम्मीद और यकीन के चिरागों को रोशनी दे रही है। संक्षेप में कहें तो योगी सरकार के 100 दिन भविष्य में बेहतर प्रशासन, कानून व्यवस्था के इकबाल और जन पक्षधर नीतियों के संयोजन और कुशल क्रियान्वयन की आशा उत्पन्न करते हैं।
विकास की नई परिभाषा
- गेहूं खरीद, आलू उत्पादक किसानों को राहत।
- पावर आफ आल योजना का क्रियान्वयन।
- 20 नए कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना के लिए जमीन।
- गन्ना किसानों का बकाया भुगतान।
- शिक्षा सत्र के प्रारंभ में किताब और ड्रेस का वितरण।
- हर जिले में एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स का गठन।
- नई खनन नीति, तबादला नीति।
- अयोध्या और मथुरा-वृंदावन को नगर निगम बनाने का दर्जा।
- इलाहाबाद, मेरठ, आगरा, गोरखपुर तथा झांसी में मेट्रो रेल परियोजना की संस्तुति।
- 2017 को गरीब कल्याण वर्ष मनाने का फैसला।
- पूर्वांचल के विकास के लिए 234 करोड़ की योजना का शिलान्यास।
- ठेके पट्टे में ई-टेंडरिंग जैसे कई महत्वपूर्ण कदम।