कभी 5 रुपये के लिए दिनभर खेतों में करती थीं मजदूरी, आज करोड़ों डॉलर की कंपनी की हैं सीईओ
सड़कों पर नंगे पांव चलने वाली ज्योती रेड्डी आज हैं अमेरिका में एक सॉफ्टवेयर कंपनी की सीईओ...
एक बच्ची जो कभी नंगे पांव पैदल चलकर स्कूल जाती थी, अब मर्सिडीज बेंज से चलती है । उसके पास हैं 500 से ज्यादा साड़ियों का कलेक्शन है, साथ ही 30 से ज्यादा सनग्लासेस, वैसे तो ये सारी चीजें ज्योति रेड्डी के लिए काफी छोटी हैं, मगर एक समय ऐसा भी था जब वह इन सब चीज़ों की मोहताज थीं, लेकिन अब अमेरिका में एक सॉफ्टवेयर कंपनी की सीईओ के लिए ये सब कोई बड़ी बात नहीं। आप भी जानें नंगे पांव से लेकर सॉफ्टवेयर कंपनी की सीईओ बनने की कहानी...
ज्योति के परिवार के लिए हर रोज एक संघर्ष जैसा होता था। उन्हें दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी जूझना पड़ता था। जब वह नौ साल की थीं तभी उनके पिता ने उन्हें और उनकी छोटी बहन को एक अनाथालय में भेज दिया था।
ज्योति की यह सफलता असाधारण है। उनका जन्म आंध्र प्रदेश के (अब तेलंगाना) वारंगल जिले के गुडेम जिले में हुआ था। वह अपने परिवार में पांच बच्चों में दूसरी सबसे बड़ी लड़की थीं और उनके पिता वेंकट रेड्डी एक किसान थे।
एक बच्ची जो कभी नंगे पांव पैदल चलकर स्कूल जाती थी, अब मर्सिडीज बेंज से चलती है और आज उसके पास 500 से ज्यादा साड़ियों का कलेक्शन है साथ ही 30 से ज्यादा सनग्लासेस। वैसे तो ये सारी चीजें ज्योति रेड्डी के लिए काफी छोटी हैं, लेकिन किसी समय वह इन सब चीजों के लिए मोहताज थीं। आज वह अमेरिका में एक सॉफ्टवेयर कंपनी की सीईओ हैं। ज्योति की यह सफलता असाधारण है। उनका जन्म आंध्र प्रदेश के (अब तेलंगाना) वारंगल जिले के गुडेम में हुआ था। वह अपने परिवार में पांच बच्चों में दूसरी सबसे बड़ी लड़की थीं और उनके पिता वेंकट रेड्डी एक किसान थे।
ज्योति के परिवार के लिए हर रोज एक संघर्ष जैसा होता था। उन्हें दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी जूझना पड़ता था। जब वह नौ साल की थीं तभी उनके पिता ने उन्हें और उनकी छोटी बहन को एक अनाथालय में भेज दिया था। उनका मानना था कि कम से कम वहां रहकर उनकी बेटी को दो वक्त की रोटी तो मिल जाएगी। उनकी छोटी बहन को वहां घर की याद सताने लगी और वह कमजोर होती गईं। इसलिए वह वापस अपने पिता के पास घर आ गई, लेकिन ज्योति वहां डटीं रहीं। ज्योति कहती हैं, 'यह एक भयानक और बुरा दौर था। मुझे अपनी मां और घर की याद सताती थी लेकिन मैं ये समझ कर अनाथालय में रह रही थी कि मेरी मां ही नहीं है।' ज्योति ने वहां कक्षा पांचवीं से लेकर दसवीं तक की पढ़ाई की।
ज्योति उन दिनों को याद करते हुए बताती हैं, 'उस वक्त अनाथालय में पानी की भारी कमी होती थी और वहां कोई टैप या नल भी नहीं होता था। इतना ही नहीं वहां बाथरूम की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। मैं बाल्टी लेकर घंटों तक लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार किया करती थी। ताकी कुएं से पानी निकाल सकूं। वहां मैं अपनी अम्मा को बुरी तरह से याद करती थी, लेकिन मैं कर भी क्या सकती थी और मन मसोस कर रह जाती थी।' ज्योति बताती हैं कि ये सब तो मुश्किलों का एक छोटा हिस्सा था। वह कहती हैं, 'मैं ढाई किलोमीटर पैदल नंगे पांव चलकर सरकारी बालिका विद्यालय पढ़ने जाती थी। जिस रास्ते से मैं जाती थी उसी रास्ते में सेंट जोसेफ स्कूल पड़ता था। इस इंग्लिश मीडियम स्कूल के बच्चों को देखकर मैं सोचती थी कि ये बच्चे कितने खुशनसीब हैं जिनके पास अच्छी ड्रेस हैं और पैरों में पहनने के लिए जूते भी हैं।'
देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने एक बार कहा था कि राष्ट्र की प्रतिभाएं अक्सर क्लास में पीछे की सीट्स पर पाई जाती हैं और ज्योति ने यह साबित भी कर दिया।
स्कूल में ज्योति हमेशा पीछे वाली सीट पर बैठती थीं। क्योंकि उनके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं होते थे और वह आत्मविश्वास के आभाव में खुद को हीन समझती थीं। ज्योति स्कूल के साथ ही वोकेशनल ट्रेनिंग लेती थीं ताकि काम करके अपने पिता की कुछ मदद कर सकें। वह कपड़े सिलने, धुलने जैसे घरेलू काम करती थीं। वह अनाथालय की देखरेख करने वाली सुप्रिटेंडेंट के घर का काम करती थीं। धीरे-धीरे ज्योति को यह अहसास होने लगा कि अच्छी जिंदगी जीने के लिए उन्हें एक अच्छी नौकरी की जरूरत होगी।
ज्योति ने अपनी सुप्रिटेंडेंट से 110 रुपये उधार लिए और आंध्रा बालिका कॉलेज में बायोलॉजी, फिजिक्स और केमिस्ट्री विषयों के साथ एडमिशन ले लिया। लेकिन ज्योति के पिता ने उनकी शादी एक दूर के रिश्तेदार सम्मी रेड्डी के साथ कर दी। शादी के वक्त वह मुश्किल से 16 साल की थीं। सम्मी भी एक किसान थे। इसलिए ज्योति को भी खेतों में जाकर काम करना पड़ता था। खेती कम थी इसलिए दूसरे किसानों के धान के खेतों में दस घंटे तक काम करना पड़ता था जिसके एवज में उन्हें सिर्फ 5 रुपये मिलते थे।
ग्रैजुएशन के बाद उन्हें एक सरकारी स्कूल में स्पेशल टीचर की नौकरी मिल गई। जहां उन्हें हर महीने 400 रुपये मिलते थे। यहां वह एक किराए का कमरा लेकर रहा करती थीं। स्कूल में पढ़ाने के साथ ही वह रास्ते में यात्रियों को साड़ी बेचा करती थीं ताकि किसी तरह से ज्यादा पैसे कमा सकें।
शादी के तीन साल के भीतर ही ज्योति की दो बेटियां बीना और बिंदू भी हो गईं। घर और बच्चों की जिम्मेदारी आ जाने के बाद ज्योति ने कुछ करने की सोची। उन्होंने नेहरू युवा केंद्र के अंतर्गत चलने वाले सांयकालीन स्कूल में 120 रुपये प्रति माह की तनख्वाह में टीचर के तौर पर काम करना शुरू किया। नेहरू युवा केंद्र में ही 1988-89 में उन्हें 190 रुपये प्रति माह मिलने लगे। रात में वह पेटीकोट सिलती थीं ताकि और अधिक पैसे कमा सकें। यहां उन्होंने एक साल तक काम किया उसके बाद उन्हें जन शिक्षा निलयम वारंगल में लाइब्रेरियन की नौकरी मिल गई। उन्होंने यहां रहकर डॉ. भीम राव अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी से 1994 में बीए की डिग्री और 1997 में काकातिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री ले ली।
ग्रैजुएशन के बाद उन्हें एक सरकारी स्कूल में स्पेशल टीचर की नौकरी मिल गई। जहां उन्हें हर महीने 400 रुपये मिलते थे। यहां वह एक किराए का कमरा लेकर रहा करती थीं। स्कूल में पढ़ाने के साथ ही वह रास्ते में यात्रियों को साड़ी बेचा करती थीं ताकि किसी तरह से ज्यादा पैसे कमा सकें। पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद ज्योति की स्थिति में कुछ सुधार आया क्योंकि उन्हें 6,000 रुपये की नौकरी मिल गई। ज्योति के एक रिश्तेदार अमेरिका में नौकरी करते था। ज्योति भी अमेरिका में नौकरी के सपने देखा करती थीं। उन्होंने कंप्यूटर साइंस में पीजी डिप्लोमा किया। मार्च 2000 में उन्हें अमेरिका से नौकरी का ऑफर आया। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को एक हॉस्टल में भेज दिया और वह अमेरिका निकल गईं।
ज्योति सफलता की बुलंदियों पर पहुंचने के बाद आज भी अपनी जड़ों को भूली नही हैं। वह गरीब और बेसहारा बच्चों की मदद करने में सबसे आगे रहती हैं।
अमेरिका के शुरुआती दिनों में ज्योती रेड्डी को एक गैस स्टेशन में नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद वह बेबी सिटिंग, विडियो शॉप में काम करती रहीं। डेढ़ साल के संघर्ष के बाद वह भारत लौट आईं। इस दौरान उन्हें एक गुरू ने बताया कि वह अपना खुद का बिजनेस करने के लिए बनी हैं। इसके बाद वह वापस अमेरिका गईं और वहां वीजा प्रोसेसिंग के लिए एक कंसल्टिंग कंपनी खोल ली।
ज्योति की किस्मत अच्छी निकली और उन्होंने पहली बार में ही 40,000 डॉलर की बचत कर ली। फिर ज्योति ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे चलकर सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन नाम से अपनी खुद की कंपनी खोल ली। यह कंपनी सॉफ्टवेयर डेवलपर की मदद करती थी। सिर्फ तीन साल के अंदर ही ज्योति की कंपनी ने 1,68,000 डॉलर का प्रोफिट बना लिया।
ज्योति ने अपने कड़े संघर्ष से ये साबित कर दिया कि आभाव किसी व्यक्ति को सफल होने से नहीं रोक सकता।
आज ज्योति की कंपनी में 100 से अधिक लोग काम करते हैं और उनके पास अमेरिका के अलावा इंडिया में चार घर हैं। उनकी कंपनी का टर्नओवर 1.5 करोड़ डॉलर से अधिक है। ज्योति सफलता की बुलंदियों पर पहुंचने के बाद आज भी अपनी जड़ों को भूली नही हैं। वह गरीब और बेसहारा बच्चों की मदद करने में सबसे आगे रहती हैं।
ज्योति रेड्डी दिव्यांग युवाओं की शादी में भी सहयोग देती हैं। हाल ही में उन्होंने 99 ऐसी शादियां कराई हैं। ज्योति ने अपने कड़े संघर्ष से ये साबित कर दिया कि आभाव किसी व्यक्ति को सफल होने से नहीं रोक सकता।