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मुंबई के व्यापारी हरखचंद सावला ने कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए रख दिया अपना होटल गिरवी

नेकी के 33 साल, कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए होटल तक गिरवी रखा...

मुंबई के व्यापारी हरखचंद सावला ने कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए रख दिया अपना होटल गिरवी

Monday December 11, 2017 , 6 min Read

सावला 700 से ज्यादा कैंसर पीड़ितों और उनके परिवार को न सिर्फ भोजन मुहैया करवा रहे हैं, बल्कि मुफ्त दवाइयां दिलवाने और रहने की व्यवस्था कराने में भी उनकी मदद कर रहे हैं।

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कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए एक टॉय बैंक बनाया गया है। बच्चे अपनी मर्जी का खिलौना खेल सकते हैं और एक बार ऊब जाने पर खिलौना बदल भी सकते हैं। बच्चे ये खिलौने घर भी ले जा सकते हैं।

लगभग 12 साल तक सावला अपने खर्चे पर कैंसर हॉस्पिटल के बाहर गरीब रिश्तेदारों को खाना खिलाते रहे और उनकी मदद करते रहे। वक्त के साथ लोगों की संख्या बढ़ती गई। 

हम अक्सर सुनते हैं कि एक व्यापारी का दिल और दिमाग सिर्फ पैसे कमाने में लगता है, लेकिन कुछ बिरले लोग ऐसे होते हैं, जो ऐसी किसी भी अवधारणा से परे होते हैं। ऐसे ही एक व्यापारी हैं, मुंबई के हरखचंद सावला। सावला ने आर्थिक रूप से कमजोर कैंसर मरीजों और उनके परिवार की देखभाल करने का जिम्मा उठाया है। वह यह नेक काम पिछले 33 सालों से कर रहे हैं।

हाल में, सावला 700 से ज्यादा कैंसर पीड़ितों और उनके परिवार को न सिर्फ भोजन मुहैया करवा रहे हैं, बल्कि मुफ्त दवाइयां दिलवाने और रहने की व्यवस्था कराने में भी उनकी मदद कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त 100 से अधिक परिवार, जिनके पास भोजन बनाने की सुविधा है, उन्हें राशन भी उपलब्ध कराया जा रहा है। जो लोग गले के कैंसर से पीड़ित हैं और लिक्विड डायट पर निर्भर हैं, उन्हें हल्दी दूध या मिल्क पाउडर दिया जाता है।

हरखचंद के ‘बच्चूज’

कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए एक टॉय बैंक बनाया गया है। बच्चे अपनी मर्जी का खिलौना खेल सकते हैं और एक बार ऊब जाने पर खिलौना बदल भी सकते हैं। बच्चे ये खिलौने घर भी ले जा सकते हैं। हरखचंद इन्हें ‘बच्चूज’ कहते हैं। इन बच्चों को पिकनिक पर ले जाया जाता है। फिल्म और मैजिक शोज दिखाए जाते हैं। अच्छा डोनेशन मिलने पर इन्हें ऐसल वर्ल्ड वगैरह भी ले जाया जाता है।

दवाइयों का बैंक

इस बैंक में पूर्व में कैंसर से पीड़ित मरीज दवाइयां दान करते हैं, जो जरूरतमंद मरीजों को दी जाती हैं। दवाइयों की जांच के लिए ट्रस्ट के दो फार्मासिस्ट और दो डॉक्टर्स नियुक्त हैं। कुछ दवाइयां बेहद महंगी होती हैं, इसलिए डॉक्टर उनके विकल्प भी बताते हैं। हरखचंद बताते हैं कि हर महीने 5 लाख से ज्यादा दवाइयां मुफ्त में दी जाती हैं। 59 वर्षीय हरखचंद बताते हैं कि 33 सालों की यात्रा में कई बार ऐसा होता है कि इलाज से परेशान होकर रिश्तेदार कैंसर पीड़ितों को छोड़कर चले जाते हैं। ऐसे में ट्रस्ट मरीजों का साथ निभाता है। मौत हो जाने पर इनका सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार कराया जाता है।

हरखचंद सावला

हरखचंद सावला


एक लड़की बनी प्रेरणा

सावला की जिंदगी आम ढर्रे पर चल रही थी। वह लोअर परेल मित्र मंडल के साथ जुड़े थे, इसलिए लोग अक्सर उनके पास मदद के लिए आया करते थे। एक दिन एक लड़की अपनी कैंसर पीड़ित मां के लिए उनसे मदद मांगने आई। वह उसे टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल ले गए। हॉस्पिटल की ओर से मिलने वाली सब्सिडी की उन्हें जानकारी नहीं थी, इसलिए वे प्राइवेट ओपीडी में चले गए। सावला याद करते हुए बताते हैं कि उन्होंने लड़की को समझाया कि प्राइवेट इलाज में वह अपने एक महीने की सैलरी एक दिन में ही खर्च कर बैठेगी, इसलिए वे सिवान हॉस्पिटल गए। दो महीने के बाद लड़की की मां ठीक हो गई। सावला को अपनी गलती का अहसास हुआ, लेकिन लड़की के लिए अहम था कि उसकी मां ठीक हो गई। लड़की ने सावला से कहा कि वह उसके लिए भगवान जैसे हैं।

सावला के जहन में यह बात घर कर गई और उन्हें कैंसर से पीड़ित लोगों और उनके परिवार की तकलीफ का करीब से अहसास हुआ। लगभग 12 साल तक सावला अपने खर्चे पर कैंसर हॉस्पिटल के बाहर गरीब रिश्तेदारों को खाना खिलाते रहे और उनकी मदद करते रहे। वक्त के साथ लोगों की संख्या बढ़ती गई। एक वक्त पर सावला को अहसास हुआ कि इस मुहिम को जारी रखने के लिए उनके अकेले का हौसला तो काफी है, लेकिन पैसा नहीं। सावला बताते हैं कि वह कई ऐसे लोगों से संपर्क करते थे, जो इस तरह के भलाई के कामों के लिए पैसा दे सकते थे, लेकिन फिर उन्होंने जीवन ज्योत कैंसर रिलीफ ऐंड केयर ट्रस्ट रजिस्टर कराने का फैसला लिया।

उन्होंने अपना होटल गिरवी रख दिया और पैसा जमा किया। इन पैसों से उन्होंने टाटा कैंसर हॉस्पिटल के ठीक सामने कोंडाजी बिल्डिंग के फुटपाथ पर ट्रस्ट का राहत कार्य शुरू किया। जब सावला ने मुनाफे में चल रहे अपने होटल को गिरवी रखने का फैसला लिया, तब उनके दोस्तों ने मना किया। इसके बावजूद सावला अपने इरादे से पलटे नहीं। लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया

हरखचंद कहते हैं कि मैंने यह मुहिम अकेले शुरू की, लेकिन आज जब वह पीछे मुड़कर देखते हैं तो उनके साथ 150 लोग ट्रस्ट में काम कर रहे हैं। इनमें से 25-30 लोग हमेशा ऐक्टिव रहते हैं। 17 लोगों का फुलटाइम स्टाफ मरीजों की देखभाल करता है। ट्रस्ट का अपना किचन है, जो मरीजों और उनके परिवारों को खाना खिलाता है। आपातकाल के लिए ऐंबुलेंस की भी सुविधा है।

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हाल ही में ट्रस्ट ने ठाणे में भी एक सेंटर की शुरूआत की है। यहां पर फिजियोथेरपी और डेंटल के डॉक्टर्स रहते हैं। यहां पर सस्ते में गरीब लोगों का इलाज होता है। कम दामों पर दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए एक मेडिकल स्टोर भी खोला गया है। आमलोग भी हरखचंद की इस मुहिम से जुड़ रहे हैं। लोग कपड़े, फर्नीचर आदि जरूरत का सामान दान कर जाते हैं। हरखचंद बताते हैं कि सात सालों में ट्रस्ट ने रद्दी से 1.25 करोड़ रुपए जोड़े।

आगे की प्लानिंग

सावला ने कल्याण के पास 50 एकड़ की जमीन खरीदी है। उनकी योजना है कि यहां पर कैंसर की आखिरी स्टेज पर चल रहे मरीजों के लिए धर्मशाला खोली जाए। वह चाहते हैं कि इस स्टेज पर आकर जब डॉ़क्टर जवाब दे देते हैं, तब मरीजों के अंतिम समय के लिए रहने की उपयुक्त व्यवस्था हो। इस जमीन पर ओल्ड एज होम और गौशाला शुरू करने की भी योजना है।

बचपन से ही दरियादिल हैं हरखचंद

हरखचंद जब 11 साल के थे, तब वह मौसम की तकलीफों को दरकिनार करते हुए, 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। वह ट्रांसपोर्ट के लिए घर से मिलने वाला पैसा बचाने के लिए ऐसा करते थे, ताकि अपने गरीब दोस्त की स्कूल की फीस भर सकें। उन्होंने यह सिलसिला तीन सालों तक जारी रखा। आज भी हरखचंद उसी शिद्दत से जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। उनका मानना है कि वे लोग, जिनके पास हमसे कम संसाधन हैं, उनकी मदद करना हमारा फर्ज है।

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