अजीब ठस्स समाज हो गया है । सपा की लड़ाई के केंद्र में क्या है , इसकी जानकारी सब को है , लेकिन किस्सागोई और विषयांतर के मोड़ पर खड़े तथाकथित बुद्धिविलासी इसे बाप बेटे की जंग करार दे रहे हैं, तब जबकि यहां न संपत्ति के बंटवारे का सवाल है और न ही खानदानी रवायत के वर्चस्व का सवाल।
भारतीय परंपरा और रवायत में बेटा और बाप दोनों सामान रूप से अपने रवायत की हिफाजत किये जा रहेहैं। बेटा बाप का पैर छूता है और बाप बेटे को आशीर्वाद देता है। यहां मनभेद कत्तई नहीं है, मतभेद अवश्य हो सकता है। तो कौन से मुद्दे हैं, जो मतभेद पैदा कर रहे हैं और आप किसके पक्षधर हैं बात इस पर करिये।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बेदाग़ चरित्र हैं, ये बात उनके विरोधी भी मानते हैं। उत्तर प्रदेश की बागडोर संभालते ही अखिलेश के खिलाफ एक बड़ा आरोप लगा की अखिलेश सरकार में अखिलेश के अलावा दो और मुख्यमंत्री हैं, मुलायम सिंह यादव (पिता) और शिवपाल (चाचा)। और बहुत हद तक यह बात सच भी साबित हो रही थी। कई भ्रष्ट और चोर मंत्रियों व नौकरशाहों को हटाने के बावजूद अखिलेश उन्हें नही हटा पाये। इतना ही नहीं, बल्कि कई उदाहरण तो हमारी आंखों के सामने हैं जब परिवार के दबाव के चलते अखिलेश को अपने ही आदेश को वापिस लेना पड़ा हो।
अब ज़रा उन मुद्दों को देखिये जिसके चलते तनातनी बढ़ी। एक था, धनबल और दूसरा, बाहुबल का पार्टी से खात्मा। यह सोच रही है अखिलेश की। इसके बरक्स शिवपाल और मुलायम जी इस राय के थे, कि चुनाव जीतने के लिए ऐसे कारक तत्व दल के साथ होने चाहिए। अभी यह मामला चल ही रहा था, कि बीच में सरकारी दल का 'सरकारी दबाव' सामने आ खड़ा हुआ और धमकी मिलने लगी की सरकार के पास कई ऐसे दस्तावेज़ हैं जो जेल के सदर दरवाजे तक जाते हैं। मोहरा बनाये गए अमर सिंह।
यह है सपा का खेल। विषय है राजनीति की सुचिता, न की बाप बेटे की जंग।
अब यहां दो समानधर्मी सोच एक दूसरे के नज़दीक आ गयी हैं, राहुल गांधी और अखिलेश यादव के रूप में। केंद्र में बैठी शासक पार्टी और सूबे के अन्य दलों की स्थिति निहायत ही चिंतनीय हो गयी है, क्योंकि इस चुनाव का का केंद्र बिंदु बदल चुका है ।