अचानक अलविदा: हमें छोड़ अनंत में विलीन हुए लोकप्रिय नेता अनंत कुमार
सियासत में कभी-कभी अचंभित कर देने वाकये होते हैं, जिनमें एक, केंद्र सरकार के लिए बड़ी अनहोनी का दिन रहा सोमवार, जब कैंसर पीड़ित केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार अचानक दुनिया से विदा हो गए। उनका जाना केंद्र सरकार एवं भाजपा, दोनो के लिए अपूरणीय क्षति जैसा रहा। वह बेंगलुरु से लगातार छह बार सांसद चुने जाते रहे हैं।
किसी जमाने में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने पर उन्हें एक महीने तक जेल रहना पड़ा था। दिवंगत केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री के सम्मान में सोमवार को देश भर में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहा।
संयुक्त राष्ट्र में कन्नड़ में बोलने वाले पहले व्यक्ति एवं केंद्र सरकार में दो महत्वपूर्ण विभाग संभाल रहे कद्दावर मंत्रियों में एक कैंसर पीड़ित अनंत कुमार (59) बेंगलुरु में सोमवार तड़के चल बसे। वह 1996 से दक्षिणी बेंगलुरु का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे थे। हाल ही में दिल्ली से उन्हें बेंगलुरु ले जाकर एक अस्पताल में उनका इलाज कराया जा रहा था। इससे पहले कैंसर के इलाज के लिए अक्टूबर में वह न्यूयॉर्क भी गए थे। अनंत कुमार 2014 से रसायन एवं उर्वरक मंत्री थे, साथ ही जुलाई 2016 में उन्हें संसदीय कार्यमंत्री का जिम्मा भी सौंप दिया गया था। उन्होंने केएस आर्ट्स कॉलेज से बीए तक पढ़ाई की थी। उसके बाद जेएसएस लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की थी। अपनी राजनीतिक निपुणता के लिए विख्यात एवं 22 जुलाई, 1959 को बेंगलुरु में एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे अत्यंत मिलनसार अनंत कुमार छह बार सांसद रहे।
वह अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी का दौर रहा हो या फिर आज नरेंद्र मोदी का समय, वह हमेशा केंद्रीय बीजेपी नेतृत्व के करीब रहने के साथ ही सियासत की गहरी समझ रखते थे। उन्होंने शुरुआती शिक्षा अपनी मां गिरिजा एन शास्त्री के मार्गदर्शन में पूरी की, जो खुद भी एक ग्रेजुएट थीं। उनके पिता नारायण शास्त्री रेलवे के कर्मचारी थे। कला एवं कानून में स्नातक कुमार के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से हुई। वह एबीवीपी के प्रदेश सचिव और राष्ट्रीय सचिव भी रहे। अनंत कुमार के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई नेताओं ने शोक जताया है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि अनंत कुमार के निधन की खबर सुनकर बेहद दुख हुआ। उन्होंने भाजपा की लंबे अरसे तक सेवा की। हमेशा बेंगलुरु उनके दिल-दिमाग में बसा रहा।
किसी जमाने में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने पर उन्हें एक महीने तक जेल रहना पड़ा था। दिवंगत केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री के सम्मान में सोमवार को देश भर में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहा। उनके निधन पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा है कि ऐसा कुछ हो जाएगा, कभी सोचा नहीं था। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन लिखती हैं कि 'मैं 28 अक्टूबर को उनकी सेहत का हाल चाल जानने बंगलुरू के अस्पताल गई थी। वहां उनसे और उनकी पत्नी तेजस्विनी से मुलाक़ात हुई थी। जल्दी ठीक होंगे, ऐसा विश्वास था लेकिन आज उनके निधन का अत्यंत दुखद समाचार मिला। अनंत कुमार मेरे वर्षों से पार्टी एवं संसद में सहयोगी रहे। संसदीय कार्य मन्त्री के तौर पर उनका कार्यकाल सब दलों को साथ लेकर चलने वाला रहा। उनकी सहजता, सक्रियता एवं सेवाभावी व्यक्तित्व हमेशा याद रहेगा।' कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा है कि वह मूल्यों वाले राजनेता थे। उन्होंने अपना दोस्त खो दिया है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट किया है कि 'अनंत कुमार जी का जीवन देश, संगठन और विचारधारा के लिए समर्पित रहा, उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।' वह एलके आडवाणी के सबसे करीबी नेताओं में गिने जाते रहे हैं। जब कर्नाटक की सियासी जंग फतह करने के लिए बीजेपी ने 2003 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी तो सबसे बड़ी पार्टी बनकर राज्य में उभरी। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी भले ही सत्ता से बाहर हो गई थी, लेकिन कर्नाटक में सबसे ज्यादा संसदीय सीटें जीतने में सफल रही थी। 2004 के उन्हे बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान वह मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ सहित कई अन्य राज्यों के प्रभारी भी रहे।
वह राजनीति में अपने लिए बड़ी संभावनाएं तलाशने के लिए 1987 में भाजपा में शामिल हो गए थे, जहां उन्हें कभी प्रदेश सचिव, कभी युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष तो कभी महासचिव और राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारियां मिलीं। वह भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बी एस येदियुरप्पा समेत उन चुनिंदा नेताओं में शामिल रहे, जिन्हें कर्नाटक में भाजपा के विकास का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अपना संसदीय करियर तब शुरू किया, जब वह दक्षिण बेंगलुरु से लोकसभा के लिए पहल बार चुने गए थे। यह निर्वाचन क्षेत्र निधन तक उनका ही मजबूत गढ़ बना रहा, जहां उन्हें बार-बार जीत मिली। वह वाजपेयी सरकार में मार्च 1998 से अक्टूबर 1999 तक नागरिक उड्डयन मंत्री भी रहे।
15 वीं लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी नीत सरकार में बतौर संसदीय कार्य मंत्री और केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री रहने के साथ ही उन्होंने विभिन्न संसदीय समितियों के भी पद संभाल रखे थे। वह दक्षिण भारत के साथ-साथ उत्तर भारत की राजनीति में भी काफी लोकप्रिय रहे। मोदी सरकार में संसद में फ्लोर मैनेजमेंट के माहिर थे, यही वजह थी कि उन्हें संसदीय कार्य मंत्री का जिम्मा दिया गया था। वह उत्तर प्रदेश, बिहार समेत उत्तर और मध्य भारत के कई राज्यों की राजनीति में बीजेपी संगठन की ओर से सक्रिय रहे।
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