अध्यापक से राजनेता और फिर राष्ट्रपति... क्यों याद किये जाते हैं डॉ. शंकर दयाल शर्मा
आज भारत के नौवें राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा का जन्मदिन है. साल 1992 से 1997 तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान चार प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलाई थी. राष्ट्रपति बनने से पहले 1987 से 1992 तक वह उपराष्ट्रपति भी रह चुके थे.
जैसा नाम से ही विदित है डॉ. शंकर दयाल शर्मा एक शिक्षाविद भी रह चुके हैं. राजनेता बन जाने बाद भी वे एक विद्वान के रूप में जाने जाते रहे. उन्होंने अंग्रेजी साहित्य, संस्कृत, हिंदी और कानून - चार विषयों- में स्नातकोत्तर की पढाई की थी. इसके बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून में पीएचडी की. लंदन यूनिवर्सिटी से लोक प्रशासन की डिप्लोमा की डिग्री भी की. लखनऊ विश्वविद्यालय में 9 साल लॉ पढाया, बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में भी अध्यापन किया.
जब उनके ही पास आई उनके बेटी-दामाद के हत्यारों की मर्सी पिटिशन
डॉ. शर्मा भारतीय राजनीति में शालीनता, सादगी और मूल्यों की मिसाल थे. उनकी बेटी और दामाद की हत्या सिख आतंकवाद के दौर में की गयी थी. डॉ. शर्मा ने जिस गहरी शालीनता से उस कठिन दौर में संयम बरता और संवैधानिक मूल्यों को जैसे जी कर दिखाया उसकी दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है.
बाद में जब वे राष्ट्रपति थे तो हत्यारों की मर्सी पिटिशन उनके पास भेजी गयी. महामहिम शंकर दयाल शर्मा ने उस याचिका को ख़ारिज कर दिया और हत्यारों को मृत्यु दंड मिला. एक राष्ट्रपति के रूप में डॉ. शर्मा ने कुल 14 मर्सी पिटिशन ख़ारिज किए.
राजनीतिक सफर
साल 1940 में शंकर दयाल शर्मा ने कांग्रेस की सदस्यता ली. 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाई.
आज़ादी के बाद जब भोपाल की रियासत का भारत में विलय हुआ तो डॉ. शर्मा भोपाल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने और 1952 से 1956 तक इस पद पर बने रहे. मध्यप्रदेश के गठन के बाद निर्वाचित सरकार में भी डॉ शर्मा 1967 तक विभिन्न विभागों के मंत्री बने. 1960 के दशक में उन्होंने इंदिरा गांधी का समर्थन किया जिसके बाद उनका राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश हुआ. भोपाल लोकसभा सीट से सन 1971 में वे लोकसभा चुनाव जीत कर शंकर दयाल शर्मा संसद पहुंचे. इंदिरा सरकार की कैबिनेट में 1974 से 1977 तक संचार मंत्री रहे.
1984 में वह आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल बने. 1985 से 1986 तक वह पंजाब के राज्यपाल रहे और ’86 में महाराष्ट्र के.
1987 से 1992 तक रामास्वामी वेंकटरमण के कार्यकाल में भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य करते रहे. और 1992 में भारत के नौवें राष्ट्रपति के रूप में चुने गए. ऐसा माना जाता है कि 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद उनके पास प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव था जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया.
26 दिसंबर, 1999 को उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई.
(फीचर इमेज क्रेडिट: rajbhavan-maharashtra.gov.in)