इंदिरा गाँधी और जे.आर.डी. टाटा के पत्र और भाषा की गरिमा
सार्वजनिक जीवन में भाषा की गरिमा एक समाज और एक लोकतंत्र के लिए अनिवार्य चीजों में से है. देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए हुए ऐतिहासिक चुनाव के बाद उससे सम्बंधित विवादों के बीच सहज ही इस पर ध्यान जाता है कि हमारे सार्वजनिक जीवन में भाषा की गरिमा और उसे लेकर संवेदनशीलता मीडिया, राजनीति और समाज यानि हर क्षेत्र में कम हो रही है.
सार्वजनिक जीवन में भाषा की गरिमा क्या हो सकती है इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में वायरल हुए हर्ष गोयनका के एक ट्वीट में दिखता है. इस ट्वीट में हर्ष गोयनका ने लगभग 50 साल पुराना एक पत्र शेयर किया है जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उद्योगपति जे.आर.डी टाटा को लिखा था. इस पत्र को ट्विटर पर शेयर करते हुए गोयनका ने लिखा “एक शक्तिशाली प्रधान मंत्री और एक दिग्गज उद्योगपति के बीच एक बहुत ही पसर्नल लेटर.. Sheer class!”
क्या ख़ास है इस लेटर में?
लेटर का मजमून ये है कि इंदिरा गाँधी उद्योगपति टाटा और उनकी पत्नी थेल्मा को उपहारस्वरूप भेजे गए परफ्यूम के लिए धन्यवाद दे रही हैं. बस, यही है इस पत्र का मजमून. लेकिन यह पत्र ख़ास इसलिए बन जाता है क्योंकि इसमें दो शक्तिशाली लोगों, एक देश का प्रधानमंत्री और दूसरा देश का सबसे बड़ा उद्योगपति, बेहद शालीन भाषा में एक दूसरे से संवाद करते हैं.
5 जुलाई 1973 को लिखे इस पत्र में इंदिरा गांधी ने जे.आर.डी टाटा को Jeh लिखकर संबोधित किया है. इंदिरा ने लिखा है कि मैं आपका परफ्यूम पाकर उत्साहित हूं. बहुत-बहुत धन्यवाद. मैं आमतौर पर परफ्यूम इस्तेमाल नहीं करती हूं. और मैं Chic की दुनिया से कटी रहती हूं कि मुझे इस (परफ्यूम) की दुनिया के बारे में बहुत कुछ पता नहीं होता है. लेकिन अब मैं इसका प्रयोग करूंगी.
इंदिरा गांधी ने आगे जे.आर.डी को पीएम आवास आने का न्योता देते हुए लिखा है कि आप जब भी मुझसे मिलना चाहें अवश्य मिलें. आप अपने विचार व्यक्त करने के लिए मुझसे मिलने आ सकते हैं, चाहे वो मेरी पसंद के हों या फिर मेरी आलोचना के. आपको और थेली (जेआरडी की पत्नी) को शुभकामनाओं के साथ. आपकी विश्वस्त, इंदिरा गांधी.
एक और ख़ास बात यह है कि इंदिरा गांधी टाटा को न्योता देते हुए न सिर्फ़ अपनी आलोचना को लेकर ओपन हैं बल्कि एक तरह से आलोचना को आमंत्रित कर रही हैं. किसी भी मुकम्मल बातचीत में पसंद या आलोचना दोनों का होना ज़रूरी होता है. अगर आप एक शक्तिशाली पद पर आसीन हों, तब आप सिर्फ अपनी पसंद की बातचीत पर ध्यान नहीं दे सकते, आपको आलोचनाओं का स्वागत करना ही चाहिए.
ट्विट्टर के ज़माने में हाथ से लखी गयी चिठठी या टैग करने के ज़माने में पर्सनल लेटर लिखा हुआ देखना हम सब को नॉस्टैल्जिक कर देता है. फोन कॉल और ई-मेल के इस दौर में याद नहीं आता कि हाथ में ख़त लिए हुए टहलते हुए आखिर बार पोस्ट-ऑफिस कब जाना हुआ था.
पर्सनल चिठठी उस दौर में अक्सरहां लिखी जाती थी. एक उदाहरण तो महात्मा गांधी स्वयं हैं. हर दिन सुबह 4 बजे उठकर उनके पास पहुंचे खतों का जवाब खुद से लिखते थे . वह देश के गरीब किसान से लेकर किसी गृहणी जो अपने बच्चे के स्कूल नहीं जाने से परेशान थी-उन सब को जवाब लिखते थे. और नेहरु और पटेल को लिखे ख़त के बारे में तो हम सब जानते ही हैं.
इंदिरा गांधी और जे.आर.डी के पत्राचार का एक और किस्सा भी इस सिलसिले में उल्लेखनीय है.
बैंकों के साथ-साथ उद्यमों का राष्ट्रीयकरण करने के इंदिरा गांधी के निर्णय के परिणामस्वरूप एयर इंडिया टाटा के हाथ से छिटक कर सरकार के अधीन हो गयी थी. लेकिन एयर इंडिया के सरकारी हो जाने के बाद भी जे.आर.डी टाटा उसके चेयरमैन बने रहे.
जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने एयर इंडिया की फ्लाइट में शराब परोसे जाने का विरोध किया. टाटा इस निर्णय से सहमत नहीं थे. यही असहमति एयर इंडिया से टाटा की विदाई का कारण बन गई.
तब इंदिरा गांधी ने टाटा को ख़त लिखकर खेद व्यक्त किया था. उस ख़त में इंदिरा ने लिखा था ‘‘मुझे इस बात का दुख है कि आप अब एयर इंडिया के साथ नहीं हैं। इस अलगाव से एयर इंडिया को भी आपके जैसा दुख हुआ होगा। आप महज चेयरमैन नहीं थे, बल्कि आप इसके संस्थापक थे और आपने इसकी परवरिश की थी.’’
गाँधी ने इस पत्र में यह भी बताया है कि कैसे जे.आर.डी. एयर इंडिया से जुड़ी हर छोटी बात का ध्यान रखते थे. विमानों के डेकोरेशन से लेकर एयर होस्टेस के पहनावे तक पर जे.आर.डी. क्वालिटी का ध्यान रखते थे. वह लिखती हैं, ‘‘हम सभी को आपके और एयर इंडिया के ऊपर गर्व है. आपसे यह सम्मान कोई नहीं छीन सकता है और न ही सरकार के ऊपर आपका कर्ज इससे कम हो जाता है.’’
बात यहीं ख़त्म नहीं होती. अपने हाथ से चेयरमैनशिप जाने के बावजूद टाटा इंदिरा के ख़त का जवाब देते हैं. अपने ख़त में टाटा इंदिरा गाँधी का आभार प्रकट करते हुए कहते हैं कि एयर इंडिया के साथ काम करना उनका सौभाग्य था. वह लिखते हैं, ‘‘मैं एयर इंडिया के सहकर्मियों, कर्मचारियों और सरकार के समर्थन के बिना कुछ नहीं था.”
जब इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं, तो जेआरडी वापस एयर इंडिया के चेयरमैन बने. उसके चालीस साल बाद अब एयर इंडिया भी वापस टाटा ग्रुप के पास गयी है. ऐसा होते हुए देखने के लिए लेकिन न अब इंदिरा गांधी हैं ना जे. आर. डी.