किताबों की दुनिया में एक नन्ही सी मुस्कान
भोपाल (म.प्र.) के दुर्गा नगर झुग्गी क्षेत्र की मात्र दस वर्षीय मुस्काएन इस समय देश की सबसे कम उम्र की लॉयब्रेरियन है। मुस्कान की लॉयब्रेरी में दो हजार से अधिक किताबें हैं। वह झुग्गी-झोपड़ियों के बच्चों को पढ़ाती भी हैं। उन्हे दिल्ली में सम्मानित किया जा चुका है। भविष्य में वह आईएएस ऑफिसर बनना चाहती
किताबों का जीवन में कितना ऊंचा स्थान होता है, यह एक छोटे से वाकये से समझा जा सकता है, चुनौती और मुश्किलों के पल में अजेय योद्धा नेल्सन मंडेला जिस कविता को बहुत संभालकर रखते थे, बारबार पढ़ते थे, उसका नाम 'इन्विक्टस' है, जिसका अर्थ है अपराजेय। यह विक्टोरियन युग की 1875 में प्रकाशित कविता है, जिसे ब्रिटिश कवि विलियम अर्नेस्ट हेनली ने लिखी थी। हमारे देश में भी हर साल विश्व पुस्तक मेले की पदचाप सुनाई देने लगती है, पुस्तकें लिख-लिख कर तमाम लोग विश्व इतिहास में अमर हो चुके हैं।
ये तो रही बड़ी बात। एक और बात लगती तो बहुत छोटी है, क्योंकि एक छोटी उम्र की मासूम की अजीब सी कार्यनिष्ठा से जुड़ी है लेकिन वह हर देशवासी के लिए अत्यंत प्रेरक बड़ी बात हो सकती है। बात हो रही है, भोपाल (म.प्र.) के दुर्गा नगर झुग्गी क्षेत्र की दस वर्षीय मुस्कान अहिरवार की। मुस्कान खुद प्राइमरी कक्षा में पढ़ती हैं लेकिन झुग्गी-झोपड़ी में बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी चला रही हैं। मुस्कान की लाइब्रेरी में हजारों किताबें हैं। भविष्य में वह आईएएस ऑफिसर बनना चाहती हैं।
मुस्कान ने इस लाइब्रेरी की इसकी शुरुआत दिसंबर 2015 में की थी। उसके बाद जब राज्य शिक्षा केंद्र के अधिकारियों ने उनकी झुग्गी बस्ती का दौरा किया तो वहां सभी बच्चों को इकट्ठा कर एक क्विज प्रतियोगिता करवाई गई। उन दिनो तीसरी क्लास की छात्रा रहीं नन्ही मुस्कान प्रतियोगिता में फर्स्ट आईं तो अधिकारियों ने उन्हें 25 किताबों का सेट गिफ्ट किया। उस वक्त से ही उन्हे बच्चों की लायब्रेरी की धुन सवार हुई और आज भी वह स्कूल से लौटने के बाद लाइब्रेरी का काम संभालती हैं, जहां झुग्गी के गरीब बच्चे पढ़ने आते हैं। मुस्कान का मानना है कि, 'जब आप एक लड़के को पढ़ाते हैं तो सिर्फ एक व्यक्ति पढ़ता है लेकिन एक लड़की को पढ़ाने का मतलब है कि आप पूरे समाज को पढ़ा रहे हैं।'
बस्ती के बच्चे पढ़ने के लिए किताबें घर भी ले जाते हैं और फिर अगले दिन लौटा देते हैं। वह अपनी लाइब्रेरी के लिए एक रजिस्टर भी रखती हैं ताकि उनके पास किताबों का पूरा रिकॉर्ड रहे।
मुस्कान ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है। जिला अदालत के पास बसी इस बस्ती में लोगों को शिक्षित करने के लिए वह घर में ही लाइब्रेरी चला रही हैं। लाइब्रेरी के अधिकतर मेंबर उनसे उम्र में काफी बड़े हैं, लेकिन वह अपने काम को सबसे बड़ा मानती हैं। वह बाकायदा किताबें इश्यू करती हैं और तय समय पर वापस भी ले लेती हैं। देश की इस सबसे कम उम्र की 'लाइब्रेरियन' को शिक्षा की अलख जगाने के लिए नीति आयोग की ओर से 'थॉट लीडर्स' अवॉर्ड मिल चुका है। यह अवार्ड उन्हें ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक ने दिया था। मुस्कान की लाइब्रेरी में हैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रेरक प्रसंगों से भरी किताबें, कहानियां, राइम्स और पंचतंत्र की कहानियों की सीरिज।
मुस्कान की मां माया बताती हैं कि वह घर, स्कूल और खेल के मैदान में भी हर वक्त सिर्फ पढ़ने की बातें करती है। उसके दिन की शुरुआत किताबों के साथ ही होती है। पढ़ाई के प्रति उसके लगन को देखकर पाठ्य पुस्तक निगम और राज्य शिक्षा केंद्र की मदद से घर पर लाइब्रेरी बनी है।
नन्ही मुस्कान बताती हैं- 'जब 2015 में वह नौ साल की थीं, तीसरी-चौथी कक्षा में पढ़ रही थीं। उस दौरान घर के आस-पास बच्चों को ऐसे ही घूमते देखती थीं तो सोचने लगीं कि ये बच्चे खेलते रहते हैं या अपने मम्मी-पापा के साथ मिलकर उनके काम में हाथ बंटाते हैं लेकिन कभी पढ़ाई क्यों नहीं करते। तब उन्हे लगा कि जब सब बच्चे पढ़ते हैं तो ये क्यों नहीं? इन्हें भी पढ़ना-लिखना चाहिए, तभी एक दिन राज्य शिक्षा केंद्र के अधिकारियों ने हमारी बस्ती का दौरा किया, उस दिन के बाद से आज तक वह किताबों के मिशन में व्यस्त हैं।
शुरू में उनकी लायब्रेरी में कुछ बच्चे बैठकर पढ़ते तो कुछ देखकर वापस चले जाते थे। कुछ ऐसे थे जो रोजाना आने लगे। बस फिर क्या था, वहीं से एक-एक करके बच्चे बढ़ते चले गए। फिर बड़े लोग भी इस बारे में बात करने लगे और जो लोग अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेज पाते थे, वे मेरी किताबें पढ़ने भेजने लगे। इस तरह से धीरे-धीरे संख्या बढ़ने लगी। मैं अपने से छोटे बच्चों को पढ़ाती भी हूं। अच्छा लगता है। हर दिन यहां 30 से 35 बच्चे आते हैं। गर्मियों में संख्या और बढ़ जाती है। अब तो उऩकी लायब्रेरी में मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के भइया-दीदी आते हैं और यहां बच्चों को पढ़ाते भी हैं। वे बच्चों को सिंगिंग, डासिंग भी सिखाते हैं। उनकी लाइब्रेरी के लिए लोग देश के कोने-कोन से किताबें भेजते रहते हैं। बस, एक दुख उन्हे उदास कर देता है कि अब पापा (मनोहर अहिरवार) नहीं रहे। कम पढ़े- लिखे थे लेकिन मेरी तस्वीर अखबारों में देखकर वह बहुत खुश होते थे।'
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