विटामिन-D सप्लीमेंट से कम हो सकते हैं अवसाद और आत्महत्या के मामले : स्टडी
इस स्टडी के मुताबिक डिप्रेशन और आत्मघाती घटनाओं का सीधा संबंध विटामिन-डी की कमी से है.
विटामिन डी हमारे शरीर के लिए कितना बुनियादी और महत्वपूर्ण विटामिन है, इसे लेकर अतीत में बहुत सारे वैज्ञानिक अध्ययन हो चुके हैं. कई अध्ययन तो इस विटामिन के अवसाद, डिप्रेशन और एंग्जायटी के साथ सीधे संबंधों पर भी हैं, जैसेकि वर्ष 2012 में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में हुआ एक अध्ययन. तीन साल पहले दक्षिण कोरिया की एक स्टडी भी इसी विषय पर केंद्रित थी.
जनवरी, 2023 में विटामिन डी को लेकर हुई एक और साइंटिफिक स्टडी यह कह रही है कि इस विटामिन की कमी को दूर कर न सिर्फ अवसाद और डिप्रेशन बल्कि आत्महत्या की घटनाओं को भी कम किया जा सकता है. इस साइंटिफिक स्टडी का मुख्य केंद्र आर्मी वेटरंस हैं यानि वो लोग जो पहले सेना में थे, जिन्होंने युद्ध देखें हैं और वॉर जोन्स में समय बिताया है.
सेना के पुराने लोगों पर हुई इस स्टडी का कहना है कि विटामिन डी सप्लीमेंट के प्रयोग से इन लोगों में आत्महत्या की घटनाओं को कम किया जा सकता है. यहां यह बताना भी जरूरी है कि अमेरिका, मिडिल ईस्ट समेत दुनिया के कई देशों में सेना में अपनी सेवाएं दे चुके और खासतौर पर युद्ध में शमिल रहे लोगों में आत्महत्या की दर सामान्य नागरिकों के मुकाबले 4.5 फीसदी ज्यादा है.
यह स्टडी साइंस जरनल PLoS ONE में प्रकाशित हुई है. अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक भी विटामिन डी की कमी अवसाद को बढ़ाती है और सप्लीमेंट्स के जरिए इस कमी को पूरा करके सेल्फ हार्म की घटनाओं को कम किया जा सकता है.
हालांकि इस स्टडी की एक सीमा भी है. यह स्टडी सिर्फ दोनों चीजों के अंर्तसंबंधों पर रौशनी डालती है, लेकिन उसके कारणों की व्याख्या नहीं करती. जैसेकि इस अध्ययन से हमें यह तो पता चलता है कि विटामिन डी सप्लीमेंट नियमित रूप से लेने वाले लोगों में डिप्रेशन और सेल्फ हार्म की घटनाओं का अनुपात उन लोगों के मुकाबले कम पाया गया, जिनके शरीर में विटामिन डी की कमी थी और जो किसी तरह के सप्लीमेंट का सेवन नहीं कर रहे थे.
लेकिन यह स्टडी यह नहीं बताती कि विटामिन डी की कमी होने पर शरीर इंटर्नल हॉर्मोनल फंक्शनिंग में ऐसे कौन से बदलाव होते हैं, जिसकी वजह से अवसाद की दर बढ़ जाती है और इस विटामिन की शरीर में पर्याप्त मात्रा में मौजूदगी से कौन से बदलाव होते हैं, जो सकारात्मकता, ऊर्जा और पॉजिटिव हॉर्मोन ज्यादा बेहतर ढंग से अपना काम करते हैं.
इस रिसर्च की प्रक्रिया में शोधकर्ताओं ने अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ वेटरन अफेयर्स के डेटा में शामिल दस हजार आर्मी वेटरेन्स का डेटा एक जगह संकलित किया. उन्होंने उन सारे लोगों की मेडिकल हिस्ट्री निकाली और उन्हें डॉक्टर के द्वारा प्रिस्क्राइब की गई दवाइयां भी.
मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन के आधार पर उन्होंने लोगों को दो प्रमुख श्रेणियों में बांटा. एक श्रेणी वह, जिन्हें विटामिन डी सप्लीमेंट दिया गया था और दूसरी श्रेणी वह, जो किसी प्रकार के विटामिन डी सप्लीमेंट का सेवन नहीं कर रहे थे.
इसके बाद उन्होंने दोनों श्रेणियों के लोगों के डीटेल डेटा का मिलान किया और यह देखने की कोशिश की कि इसमें से किस श्रेणी के लोगों में आत्महत्या की कोशिश और सेल्फ हार्म की घटनाएं देखी गईं.
अपने अध्ययन में उन्होंने पाया कि जो समूह विटामिन डी सप्लीमेंट का नियमित रूप से सेवन कर रहा था, उसमें आत्महत्या और सेल्फ हार्म की दर 0.2 फीसदी थी. इसके उलट दूसरे समूह में यह दर 0.36 फीसदी थी. दोनों के बीच इस दर में तकरीबन 44 फीसदी का फर्क पाया गया.
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि विटामिन डी-2 से सुसाइड अटेम्प्ट की दर में 48.8 फीसदी और विटामिन डी-3 से 44.8 फीसदी की कमी आई.
हालांकि 2013 में इस तरह की एक और स्टडी आर्मी वेटरंस पर की गई थी. स्टडी में शामिल 1000 लोगों में से आधों की मृत्यु आत्महत्या के कारण हुई और स्टडी में पाया गया कि सबसे कम विटामिन डी स्तर वाले लोगों में आत्मघाती घटनाओं की दर सबसे ज्यादा थी. दक्षिण कोरिया में भी वर्ष 2020 में तकरीबन डेढ़ लाख आर्मी वेटरंस पर हुई एक स्टडी में पाया गया लोअर विटामिन डी स्तर वाले लोगों में सुसाइड अटेम्प्ट और आत्मघाती घटनाओं की दर सबसे ज्यादा थी.
Edited by Manisha Pandey