पहाड़ तोड़ नहर बनाने वाले एक बुजुर्ग महानायक को दो जून की रोटी के लाले
क्योंझर (ओडिशा) के गांव बैतारानी के एक आदिवासी महानायक दैतारी जब पहाड़ तोड़कर तीन किलो मीटर लंबी नहर खोद निकालते हैं, उन्हे पद्मश्री से नवाज़ा जाता है लेकिन उन्हे लोग ये कहते हुए आज काम पर नहीं रखते हैं कि ऐसी शख्सियत से मजदूरी कराने पर उनकी बेइज्जती हो जाएगी। उन्हे दो जून की रोटी के लाले पड़े हैं।
इन दिनो एक सवाल सुर्खियों में है कि 'ओडिशा का मांझी' और 'कैनाल मैन' कहे जाने वाले आदिवासी योद्धा दैतारी नायक अपना पद्मश्री अवार्ड क्यों लौटाना चाहते हैं? ये वही दैतारी हैं, जिन्होंने सत्तर साल की उम्र में अपने गांव के खेतों की सिंचाई के लिए तीन साल में पहाड़ तोड़ तीन किलोमीटर लंबी नहर खोद डाली थी। इस पुरुषार्थ के लिए ही उनको सरकार ने पद्मश्री से विभूषित किया था।
पहाड़ काट-काट कर तीन किलो मीटर लंबी नहर बनाने के बाद आज 75 साल की उम्र में भी बुजुर्ग दैतारी देश की नजरों में तो महानायक बने हुए हैं, उनकी खोदी नहर के पानी से जिला क्योंझर के उनके गांव बैतारानी की फसलें भी लहलहा रही हैं लेकिन उनकी खुद की नैया डगमगा उठी। अपनी जिंदगी के सबसे खराब दिनो से गुजर रहे दैतारी नायक इस वक़्त तेंदू के पत्ते और आम पापड़ बेचकर बमुश्किल घर की गाड़ी खींच रहे हैं।
सरकार की ओर से उनको सात सौ रुपये पेंशन मिलती है। उनको इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत एक मकान भी आवंटित हुआ था जो अभी अधूरा पड़ा है, सो पूरे परिवार के साथ कच्चे मकान में रहते हैं। लेकिन जिस नहर को खोदने के लिए उनको पद्मश्री मिला था, वह उसे पक्का कराने के लिए पिछले एक साल से प्रशासन से गुहार कर रहे हैं लेकिन अभी तक उनकी गुजारिश पर कोई सुनवाई नहीं हुई है।
पद्मश्री दैतारी नायक देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने के बावजूद गरीबी में ज़िंदगी बसर कर रहे हैं। इन हालात ने ही उन्हे विवश किया है कि जब खुद की जिंदगी ऐसी सांसत में आ फंसी हो, फिर ऐसे सम्मान को लेकर वो क्या करें! लोग उनकी इज़्ज़त तो करते हैं लेकिन कोई उनको रोजी-रोटी नहीं देता है। वह और उनके परिवार के लोग आज आर्थिक तंगी में चीटिंयों के अंडे खाने को विवश हैं। अपने गांव में अस्पताल न होने से बीमारी की हालत में उन्हें सात किलोमीटर पैदल चलकर इलाज करवाने जाना पड़ता है। इतना ही नहीं, उनके गांव में न तो पेयजल का कोई इंतजाम है, न गांव से कोई पक्की सड़क जुड़ी है।
दैतारी के बेटे अलेखा नायक बताते हैं कि पहले तो उनके पिता को दिहाड़ी मजदूरी का काम मिल भी जाता था लेकिन जब से उनको पद्मश्री सम्मान मिला है, प्रतिष्ठा के ढोंग में लोक-लाज वश उनसे कोई मजदूरी नहीं कराना चाहता था। काम मांगने पर लोग कहते हैं, ऐसे प्रतिष्ठित आदमी से वे भला मजदूरी कैसे करा सकते हैं। उनको जब पद्मश्री मिला था, गांव वालों की भी लगा था कि अब उनके क्षेत्र का भी कायाकल्प हो जाएगा, लेकिन आज तक सारी संसाधनहीनता पहले जैसी जस की तस है।
हां, इस बुजुर्ग 'कैनाल मैन' के कारण इतना जरूर हुआ है कि कभी सिर्फ बरसात के पानी पर निर्भर रहने वाले क्योंझर (ओडिशा) के बांसपाल ब्लॉक स्थित उनके सूखे, बिहड़ गांव बैतारानी के खेतों को अब नहर से पानी मिल जाता है। सिंचाई का संकट नहीं रहता है। इस क्षेत्र के तीन गांवों बांसपाल, तेलकोई और हरिचंदपुर को गंभीर जल संकट से गुजरना पड़ा है। आज भी यहां के लोग पीने के पानी की दुर्दशा झेल रहे हैं। दैतारी नायक जंगल क्षेत्र में रह रहे हैं। बुढ़ापे में अपनी जिंदगी के तीन कीमती-दुष्कर वर्ष उन्होंने पहाड़ काटने में बिता दिए, उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया, लेकिन अब तो उनके पूरे परिवार के सामने सवालों का हुजूम लगा हुआ है।
हालात उन्हें तिल-तिल मार रहा है। कोई उनकी खोज-खबर लेने वाला नहीं है। बड़े दुखी मन से दैतारी कहते हैं- 'सम्मान ने तो मेरा सब कुछ ले लिया है। मैं इसे वापस लौटाना चाहता हूं, जिससे मुझे फिर से काम मिल सके। सिर्फ सात सौ की पेंशन से पेंशन से उनके पूरे परिवार का जीवनयापन करना मुश्किल हो रहा है।' उन्होंने पद्मश्री सम्मान का मेडल बकरी के बाड़े में टांग रखा है। फिलहाल, क्योंझर के कलेक्टर आशीष ठाकरे ने पद्मश्री सम्मान न लौटाने के आग्रह के साथ उनकी समस्या सुनने का भरोसा दिया है।