अब तो पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रहीं आदिवासी लड़कियां
"खिलाड़ी आदिवासी लड़कियां अब पूरी दुनिया में परचम फहरा रही हैं। फिलिपींस की राजधानी मनीला में सिंगापुर को पछाड़ कर जिस भारतीय महिला रग्बी टीम ने भारत का अतंरराष्ट्रीय मान बढ़ाया है। भारतीय टीम को कांस्य पदक दिलाने वाली आदिवासी लड़कियों ने साबित कर दिया है कि वह भी किसी कम नहीं।"
आदिवासी समाज बेटियों के मामले में हमारे देश का मॉडल बनता जा रहा है। पिछले साल फरवरी में महाराष्ट्र की आदिवासी बालिका ताई बम्हाने ने 'खेलो इंडिया स्कूल गेम्स' में बालिकाओं की 800 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीत लिया था। छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी बच्चियों की हॉकी टीम में कई प्रतिभाएं निखर रही हैं। झारखंड की आदिवासी लड़कियां हर क्षेत्र में बदलाव की लकीर खींच रही हैं। गुमला (झारखंड) की उड़नपरी सगी बहनें फ्लोरेंस बारला और किरण बारला तो पीटी उषा बनने के सपने देख रही हैं।
इसी तरह पूर्वी सिंहभूम की रानी टुडू और मति मंडी, रांची की युक्ति प्रिया उरांव आदि लड़कियों ने भी अपने परचम फहराए हैं लेकिन फिलहाल, हम बात कर रहे हैं फिलिपींस की राजधानी मनीला में कल इतिहास रचने वाली भारतीय महिला रग्बी टीम की, जिसमें पांच लड़कियां आदिवासी परिवारों की हैं। ये पाँचों लड़कियां भुवनेश्वर के 'कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज' की छात्राएं हैं। बेहद ग़रीब परिवार से पहुंचीं इन लड़कियों ने रग्बी खेल के बहाने अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर भारतवर्ष का मान-सम्मान उज्ज्वल किया है।
चैंपियनशिप के आख़िरी मैच में सिंगापुर की टीम को पेनल्टी ठोककर जिस सुमित्रा नायक ने जीत हासिल कराई है, वह जाजपुर के एक निर्धन आदिवासी परिवार से हैं। अपने चार भाई-बहनों में एक सुमित्रा की मां की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी। पिता के लिए परिवार संभालना मुश्किल हो रहा था तो वर्ष 2006 में उनको कहीं से 'कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज' के बारे में पता चला। वे अपने भाई-बहनों के साथ इंस्टिट्यूट से जुड़ गईं। अगले साल ही लंदन में उन्होंने कम आयु वर्ग की विश्व चैंपियनशिप का ख़िताब जीता, उसके बाद खेल में महारत हासिल करने में वह जी जान से जुट गईं।
इसी तरह केओन्झर जकी मीनारानी हेम्ब्रम अपने पिता की मृत्यु के बाद मां के साथ रोज़गार की तलाश में भुवनेश्वर पहुंच गई थीं। घरों में बर्तन मांजकर गुज़ारा होने लगा। उन्ही दिनो किसी ने उनका भी कलिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला करा दिया। जीत की 'स्टार' सुमित्रा कहती हैं कि प्रशिक्षण से सभी खिलाड़ियों को काफ़ी फ़ायदा हुआ है। वह उम्मीद जताती हैं कि खेलकूद की दुनिया में 27 हज़ार आदिवासी बच्चों के बीच से कई और सितारे उभरने वाले हैं। टीम की एक अन्य खिलाड़ी हुपी माझी बताती हैं कि हमारी मेहनत ने रग्बी जैसे खेल को विश्व मंच पर प्रतिष्ठित कर दिया है।
बहुत से लोगों को रग्बी खेल के बारे में पता नहीं है। दरअसल, मणिपुर के पारंपरिक खेल यूबी लक्पी के बारे में स्थांनीय लोगों का दावा है कि रग्बीष गेम का जन्मम इसी खेल से हुआ है। रग्बी एक ऐसा खेल है, जिसमें खिलाड़ी विरोधियों के बीच से बॉल गोल लाइन तक ले जाता है और अंकों के लिए इसे जमीन पर पकटता है। इसमे केवल एक कैच करना होता है। आगे जाने के लिए, बॉल को पीछे पास करना ज़रूरी होता है। बॉल को आगे किक किया जा सकता है लेकिन किक मारने वाले की टीम के साथी बॉल को किक मारते समय बॉल के पीछे होने चाहिए।
टीम में कड़े अनुशासन की ज़रूरत होती है। हमारे देश में आज भी रग्बी बहुत लोकप्रिय खेल नहीं है। इससे खासकर आदिवासी प्रतिभाओं को विकसित होने का मौक़ा मिला है। देश के दूसरे हिस्सों में, जहां रग्बी खेला जाता है, उन खिलाड़ियों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में अभी भी काफी कमियां हैं। फिलीपिंस में 19 से 23 जून तक चलने वाले एशिया वीमेंस 15 साइड रग्बी फुटबॉल चैंपियनशिप के सिंगापुर से सेमीफाइनल मुकाबले में इंडिया को कांस्य पदक के साथ थर्ड पोजीशन मिली है। रग्बी की इंडियन टीम में बिहार की श्वेता शाही और स्वीटी कुमारी भी शामिल हैं।
रग्बी गेम एक आयताकार घास के मैदान पर तेरह खिलाड़ियों की दो टीमों द्वारा खेला जाता है। यह 100 मीटर लंबे और 68 मीटर चौड़े अंडाकार मैदान पर खेला जाता है, जिसमें प्रत्येक गोल रेखा पर अंग्रेजी वर्णमाला के एच वर्णाक्षर के आकार के गोल पोस्ट होते हैं। रग्बी की तरह ही मणिपुर में यूबी लक्पी एक लोकप्रिय खेल है, जो नारियल से खेला जाता है। इंग्लैंड के रग्बीी स्कूल ने मणिपुर के लक्पी खेल से इंस्पायर होकर अपने खेल को डिजाइन किया है। इसका मूल नाम है मेइती, जिसका मतलब होता है नारियल छीलना। वास्त व में इस खेल और आधुनिक रग्बी में बहुत ज्याबदा समानताएं हैं।
यूबी लक्पी खेल समुद्र मंथन की प्राचीन कथा से इंस्पायर बताया जाता है, जिसमें समुद्र मंथन के बाद अमृत के घड़े पर कब्जार पाने के लिए देवों और असुरों के बीच छीना छपटी होती है। इस खेल में दोनों टीमों में सात-सात खिलाड़ी होते हैं पर विजेता कोई एक होता है, जो जीतने के बाद नारियल सीनियर जज को सौंप देता है। इसे तेल लगे नारियल के साथ खेला जाता है। एक खिलाड़ी नारियल लेकर भागता है और बाकी खिलाड़ी उसका पीछा करके गेंद छीनने का प्रयास करते हैं। गेंद उठाने वाला खिलाड़ी बाकी खिलाड़ियों के साथ छीना-झपटी या धक्कार नहीं दे सकता है। खिलाड़ी बिना जूतों के नंगे पैर केवल शर्ट पहन कर खेलते हैं। सबके बदन पर तेल लगा होता है।