लॉकडाउन का एक साल: मिलें गरीब बच्चों को पढ़ाने वाले दस प्रेरक शिक्षकों से
महामारी के कारण स्कूल बंद हो जाने से, इन शिक्षकों ने सुनिश्चित किया कि बच्चों की शिक्षा रुकने न पाए। यहां तक कि, उनमें से कुछ लाचार लोगों की मदद करके मूकनायक बन गए और लोगों के लिए नियमित कक्षाओं का उपयुक्त विकल्प दिया।
जब पिछले साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, तो स्कूल रातोंरात बंद हो गए थे और इस बात को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी कि सीखना कैसे जारी रहेगा। इससे पहले कभी किसी को सार्वभौमिक स्तर पर शिक्षा प्रणाली में इस तरह के अभूतपूर्व ठहराव का सामना नहीं करना पड़ा था, और उचित रूप से, किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
जहां बच्चों ने व्यस्त स्कूल के काम से अचानक ब्रेक की खुशी मनाई, तो वहीं माता-पिता और शिक्षकों को एक नई चिंता थी - यह सुनिश्चित करना कि बच्चों को कैसे मोटिवेट और इंस्पायर किया जाए वो भी तब जब सब कुछ सामान्य होना कोसों दूर था?
अब जब किसी के पास कोई ठोस जवाब नहीं था कि चीजें कब 'सामान्य' होंगी तो ऐसे में सबसे बेस्ट था कि परिस्थिति के अनुकूल ढलना! और इस दौरान हमने जो चीज एडॉप्ट की वो थी वर्चुअल क्लासरूम और रिकॉर्ड की गई कक्षाएं।
हालांकि, यह एक प्रिविलेज था जो कई छात्र अफोर्ड नहीं कर सकते थे। हाल ही में YourStory के एक आर्टिकल के हवाले से बताया गया कि ज्यादातर कम आय वाले भारतीय परिवारों को 2020 में अपना पहला फोन मिला, जो वर्चुअल लर्निंग से जुड़े रहने का एक साधन था लेकिन फिर भी, कई ऐसे थे जो इसे वहन करने में सक्षम नहीं थे।
लेकिन कई व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों की बदौलत, पूरे भारत में बहुत सारे छात्र इसमें सफल रहे।
YourStory कुछ शिक्षकों और व्यक्तियों के प्रयासों को याद कर रहा है और सम्मानित करता है जो भारत के सबसे कमजोर वर्गों को शिक्षित करने के लिए अपने रास्ते पर आगे चले।
सुब्रत पाती
कोलकाता के सुब्रत पाती दो शिक्षण संस्थानों - एडम विश्वविद्यालय और आरआईसीई एजुकेशन में पढ़ाते हैं। उनका गाँव पश्चिम बंगाल के जंगलमहल इलाके में है, जहाँ इंटरनेट का कनेक्शन बहुत खराब है।
35 वर्षीय शिक्षक ने कई कनेक्टिविटी दिक्कतों का सामना करने के बाद, अपनी इंटरनेट की परेशानियों को दूर रखने के लिए अपने घर के पड़ोसी नीम के पेड़ पर चढ़ने का फैसला किया। हर सुबह, सुब्रत एक प्लेटफॉर्म पर बैठते थे जो पेड़ की शाखाओं पर टिकी हुई थी, जिसे उन्होंने अपने दोस्तों की मदद से बनाया था। बैठने के प्लेटफॉर्म को बांस, बोरियों और घास से बना है।
सुशील कुमार मीणा
अपने निर्भेद फाउंडेशन के माध्यम से, सुशील कुमार मीणा लंबे समय से अल्प वंचित बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उन्हें बुनियादी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान, उन क्षेत्रों की खराब कनेक्टिविटी के साथ ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करना लगभग असंभव था। इस स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए, उन्होंने 'मैं भी हूं शिक्षक' नामक एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जहां उन्होंने कक्षा 8 और उससे ऊपर के छात्रों को एक शिक्षक के रूप में प्रशिक्षित किया। ये बच्चे अपने घरों में और उसके आसपास छोटे बच्चों को पढ़ा सकते थे।
मुनीर आलम
कश्मीर में रहने वाले एक गणित शिक्षक, मुनीर आलम इन दिनों सुबह 4:30 बजे उठते हैं। वे श्रीनगर के ओल्ड टाउन क्षेत्र में एक व्हाइटबोर्ड स्टैंड के साथ ड्राइव कर जाते हैं और फिर 500 मीटर अंदर जंगल में पैदल चलते हैं। यहाँ, वह एक 'ओपन-एयर' गणित क्लास का संचालन करते हैं, जो शहर में और उसके आसपास कई छात्रों को आकर्षित करता है।
पहले, मुनीर ने अपने कोचिंग संस्थान में कक्षाएं संचालित कीं थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण, इसे अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया। जब केवल 2G इंटरनेट कनेक्शन के साथ ऑनलाइन शिक्षण भी विफल हो गया, तो उन्होंने कक्षाओं को ओपन-एयर लेना शुरू कर दिया।
मौमिता बी.
पुणे की रहने वाली रसायन विज्ञान की शिक्षक, मौमिता बी के पास ट्राइपॉड तक नहीं था। लेकिन इसके बजाय उन्होंने कक्षा के माहौल को बनाने के लिए इनोवेशन का सहारा लिया। 'जुगाड़' से उन्होंने एक 'मेकशिफ्ट स्टैंड' बनाया जिसमें कपड़े हैंगर और कपड़े के कुछ टुकड़े शामिल थे। उनका ये इनोवेशन इंटरनेट सनसनी था। उनका एकमात्र मकसद एक बोर्ड के साथ इंटरैक्टिव कक्षा का माहौल बनाना था, ताकि उनके छात्र पाठ को फलीभूत कर सकें।
केरल के पुलिस अधिकारी
केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में विथुरा पुलिस स्टेशन का हिस्सा पुलिस अधिकारी अपनी ड्यूटी से आगे बढ़ते हुए पास के जंगल में एक आदिवासी छोटे गांव में जाकर बच्चों को पढ़ाते थे। इन पुलिसवालों ने कठिन इलाकों और पहाड़ियों के माध्यम से गुजरते हुए क्षेत्र में छात्रों को शिक्षा प्रदान की। यहां तक कि पुलिस स्टेशनों में से एक को बाल-सुलभ भी बनाया गया था। इसका उद्घाटन केरल के पुलिस महानिदेशक लोकनाथ बेहरा ने किया था।
झारखंड के शिक्षक
झारखंड के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने ऐसे छात्रों को 'अपनाया', जिनके पास इंटरनेट कनेक्शन नहीं था या स्मार्टफोन तक उनकी पहुँच नहीं थी। डिजिटल कंटेंट को उपलब्ध कराने के लिए वे हर हफ्ते उन बच्चों के पास जाते थे।
शिक्षकों ने इन छात्रों को व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन करने का भी प्रयास किया ताकि वे इंटरनेट कनेक्शन वाले छात्रों के बराबर रहें। छात्रों को विशिष्ट शिक्षकों के तहत रखा गया था, जिन्होंने आगे उन्हें अलग-अलग समूहों में विभाजित किया और उनके अनुसार मार्गदर्शन किया।
तमिलनाडु के इंजीनियर
तमिलनाडु के चार इंजीनियर और दोस्तों - अरविंद, विग्नेश, भवानीशंकर, और सरतास महामारी के दौरान शिक्षकों बन गए। उन्होंने लॉकडाउन के दौरान किसानों के बच्चों को उनकी शिक्षा जारी रखने में मदद की।
तमिलनाडु के पुदुकोट्टई में थोंडिमन ओरानी के एक अनोखे छोटे से गांव में, इन चार सिविल एस्पिरेंट्स ने डिजिटल अंतर को पाटने के लिए कड़ी मेहनत की। इस गांव में 1,500 से अधिक निवासी हैं, जिनमें से अधिकांश खेत मजदूर और मनरेगा मजदूर हैं, जिनके लिए स्मार्टफोन रखना दूर की बात है।
शांताप्पा जदम्मनवर
एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपनी दिन की नौकरी के अलावा, शांताप्पा जदम्मनवर एक शिक्षक की भूमिका भी निभा रहे हैं। रोज सुबह 7 बजे, शांताप्पा बेंगलुरु के नगरभवी में एक प्रवासी श्रमिक बस्ती में लगभग 30 बच्चों को पढ़ाते हैं। वह लगभग 8.30 बजे ड्यूटी के लिए जाने से पहले लगभग एक घंटे तक वैदिक गणित, सामान्य ज्ञान और नैतिक शिक्षा की कक्षाएं लेते हैं।
विनोद दीक्षित
कई भारतीय छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं एक दूर का सपना थीं, और इंदौर के 12 वर्षीय राज, जो पुलिस बनने की इच्छा रखते थे, उनमें से एक था। इंदौर के पलासिया के एक स्टेशन हाउस ऑफिसर, विनोद दीक्षित ने राज के लिए एक ट्यूटर बन गए। वे उस बच्चे को पढ़ाते थे। अपनी ड्यूटी समाप्त होने के बाद, उन्होंने लगभग दो घंटे इस युवा लड़के को अंग्रेजी और गणित पढ़ाने में बिताए।
विनोद ने अपने वाहन के बोनट को एक स्टडी टेबल के रूप में बदलकर खुली हवा में एक आकर्षक कक्षा बनाई। कक्षाएं सड़क के किनारे, स्ट्रीट लाइट के नीचे या एटीएम के सामने होती थीं।
रोहित कुमार यादव
उन्नाव में तैनात एक सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) के सिपाही रोहित कुमार यादव का सपना था कि वे कम उम्र के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाएं। उन्होंने उन्नाव स्टेशन के रेलवे ट्रैक के पास आदर्श वाक्य, 'हर हांथ में कलाम' के साथ एक ओपन-एयर स्कूल खोला।
शुरुआत में कक्षा में लगभग पाँच छात्र आए लेकिन उस महीने के अंत तक, उन्होंने लगभग 15 छात्रों को आकर्षित किया था। हालाँकि, रोहित इन बच्चों के लिए एकमात्र शिक्षक थे।