कम क्यों पड़ जाता है बेटियों के हिस्से का आकाश!
बेटियां समाज का अटूट अंग हैं। आने वाला कल बेटियों से जुड़ा हुआ है मगर लड़कों के मुकाबले कम होती बेटियों की संख्या पर सोचने की जरूरत है...
बेटियां शुभकामनाएं हैं, बेटियां पावन दुआएं हैं, बेटियां जीनत हदीसों की, बेटियां जातक कथाएं हैं, बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी, बेटियां वैदिक ऋचाएं हैं, जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियां वे वन्दनाएं हैं, फिर भी हमारे समाज में बेटियों के हिस्से का आकाश इतना कम क्यों पड़ जाता है!
"बेटियां जीवित रहेंगी, तभी हमारा भविष्य जिंदा रहेगा। हमारे सामाजिक जन-मानस में बेटियों को जिस तरह द्वितीयक का दर्जा दिया जाता है, उसने पूरे सामाजिक ताने-बाने को बिखेर रखा है, उसके लिए चाहे जितने भी सनातनी उदाहरण दिए जाएं। इसीलिए बेटियों को अधिकार संपन्न करने के लिए हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने गत तीन फरवरी 2018 को एक ऐतिहासिक पहल की है। दो बहनों द्वारा दायर की गई एक याचिका पर आदेश सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि संपत्ति से जुड़े मामलों में बेटियों को बेटों के बराबर का दर्जा है।"
लाख आधुनिकता के बावजूद इस अजीबोगरीब दुनिया में बेटियों का फलसफा इतना रंग-बदरंग सा क्यों कर दिया गया है? कहीं उनको घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता है तो कहीं जब वह घर से बाहर जाती हैं, उनके घर में चोरी हो जाती है। कोई उसे राष्ट्रीय संपत्ति कहता है तो सुप्रीम कोर्ट को आगाह करना पड़ता है कि नहीं-नहीं, वह राष्ट्रीय संपत्ति नहीं हैं। कहीं 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' का नारा दिया जाता है तो कहीं स्कूल जाने पर उन्हे टाट-पट्टी तक मयस्सर नहीं होती, पेड़ के नीचे या खुले मैदान में ककहरा सीखने की मजबूरी होती है। सामाजिक लिंगानुपात बने या भाड़ में जाए, चीन में तो इकलौती संतान का नारा गूंज रहा है और ज्यादातर लोगों को बेटे की ख्वाहिश रहती है, सो बेटियां जनम से पहले ही अंतर्ध्यान कर दी जाती हैं।
सुना है कि उत्तरी वियतनाम में बेटियां चोरी होने लगी हैं। हमारे देश में तीन पहाड़ियों गारो, खासी और जयंतिया पहाड़ियों वाला एक राज्य है मेघालय, वहां की कुछ अलग ही कहानी है। परिवार की छोटी बेटी को किशोर वय होते ही उसे मां-बाप छिपा देते हैं। गौरतलब है कि इस राज्य में संपत्ति का अधिकार बेटियों के पास होता है। आम तौर पर छोटी बेटी संपत्ति की अधिकारी होती है। बताया जाता है कि संपत्ति के लालची लड़के ऐसी लड़कियों से पहले प्रेमालाप का ड्रामा करते हैं, फिर पूरी सम्पति पर काबिज हो बैठते हैं। लड़कियां भी उनके झांसे में आ जाती हैं। खुशहाल जिंदगी के स्वप्न देखती हुई अंततः दूसरी शादी रचाने के लिए विवश हो जाती हैं, लेकिन पूरी सम्पत्ति हड़प लिए जाने के बाद।
इसीलिए अभिभावक अपनी सबसे छोटी बेटी को तब तक किसी गोपनीय स्थान पर छिपाए रखते हैं, जबतक कि वह समझदार न हो जाए। शादी लायक वांछित वर ढूंढने और उससे शादी रचा देने के बाद ही बेटियों को खुला माहौल नसीब हो पाता है। यद्यपि इस राज्य में महिलाओं को कहने के लिए तो खुली आजादी है, लेकिन यहां की महिलाएं भी उसी तरह पुरुषों के शोषण की शिकार हैं जैसे कि अन्यत्र। इस राज्य में परिवार में कोई महिला सदस्य न होने की स्थिति में लड़कियों को गोद लेने की परंपरा है ताकि वंश प्रक्रिया की निरंतरता बनी रहे। पुरुषों को शादी से पहले अपनी पूरी कमाई परिवार की बुजुर्ग महिला सदस्य को देनी होती है तथा शादी के बाद अपनी पत्नी को देना होता है। पति नशे में पत्नियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। प्रायः नौबत तलाक तक पहुंच जाती है।
बेटियां समाज का अटूट अंग हैं। आने वाला कल बेटियों से जुड़ा हुआ है मगर लड़कों के मुकाबले कम होती बेटियों की संख्या पर सोचने की जरूरत है। अगर बेटियां जीवित रहेंगी, तभी हमारा भविष्य जिंदा रहेगा। हमारे सामाजिक जन-मानस में बेटियों को जिस तरह द्वितीयक का दर्जा दिया जाता है, उसने पूरे सामाजिक ताने-बाने को बिखेर रखा है, उसके लिए चाहे जितने भी सनातनी उदाहरण दिए जाएं। इसीलिए बेटियों को अधिकार संपन्न करने के लिए हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने गत तीन फरवरी 2018 को एक ऐतिहासिक पहल की है। दो बहनों द्वारा दायर की गई एक याचिका पर आदेश सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि संपत्ति से जुड़े मामलों में बेटियों को बेटों के बराबर का दर्जा है।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए लड़कियों की एक अपील पर सहमति जताते हुए कहा है कि लड़की कब पैदा हुई है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ए के सीकरी और अशोक भूषण की पीठ के मुताबिक संशोधित कानून कहता है कि बेटी जन्म से अविभाजित पैतृक संपत्ति में हमवारिस होगी। संपत्ति में उसके हिस्से से यह कह कर इनकार नहीं किया जा सकता कि वह कानून पारित होने से पहले पैदा हुई थी। गौरतलब है कि वर्ष 2005 में केंद्र सरकार भी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन कर चुकी है। इसके तहत पैतृक संपत्ति में बेटियों को भी बराबर का हिस्सा देना अनिवार्य हो गया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में आदेश देते हुए साफ किया है कि यह आदेश 2005 से पहले पैदा हुई लड़कियों पर भी लागू होगा।
बेटियों को हमारा समाज आखिर क्यों इतना कमतर कर आंकता है। देखिए न आदिवासी महिला लक्ष्मीकुट्टी अपनी स्मृति का इस्तेमाल करते हुए जड़ी-बूटी से 500 दवाएं तैयार कर चुकी हैं। वह हजारों लोगों की मदद करती हैं, विशेष तौर पर सांप और कीड़ों के काटने के मामलों में। वह दक्षिण भारत के राज्यों में विभिन्न संस्थानों में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पर व्याख्यान देती हैं। उन्हें हाल ही में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इसी तरह विजयलक्ष्मी नवनीतकृष्णन तमिल लोक संगीत और आदिवासी संगीत के संग्रह, दस्तावेजीकरण और संरक्षण में अपना जीवन समर्पित कर रही हैं। पद्म श्री सितत्व जोद्दादी महिला विकास एवं सशक्तीकरण, खासतौर पर देवदासी एवं दलितों के हितों की पैराकार हैं।
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक गांव है रठौड़ा। यहां की बेटियां अपने खेल की चमक बिखेरने लगी हैं। वह राष्ट्रीय स्तर पर अब तक कई पदक जीत चुकी हैं। अभी हाल ही में केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना ‘खेलो इंडिया’ के लिए रठौडा शूटिंग रेंज की खिलाड़ी विधि चौहान का चयन हुआ है। इसी जिले की कक्षा 11 की छात्रा शहनाज ने इसी साल जौनपुर में यूपी स्टेट इंटर स्कूल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है। जयपुर में खेली गई डॉ कर्णी सिंह शूटिंग प्रतियोगिता में शहनाज को राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक मिला था। सौम्या ने डॉ. कर्णी सिंह शूटिंग प्रतियोगिता जयपुर में सिल्वर पदक जीत चुकी हैं। एयर पिस्टल में विधि चौहान को सिल्वर पदक मिल चुका है।
जौहड़ी गांव की निशानेबाज रूबी तोमर ऑल इंडिया पुलिस चैंपियनशिप में दो पदकों पर निशाना साध चुकी हैं। यहां की रूबी तोमर की बड़ी बहन सीमा तोमर अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज हैं। राजस्थान के चुरू जिले में तो 24 फरवरी को सुबह 10 बजे से बेटियां बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, नव मतदाता जागरूकता अभियान और स्वच्छ भारत अभियान के प्रति आमजन को जागरूक करने के लिए111 किलो मीटर की मानव श्रृंखला बनाने जा रही हैं।
किसी कवि ने कहा है कि बेटियां शुभकामनाएं हैं, बेटियां पावन दुआएं हैं। बेटियां जीनत हदीसों की, बेटियां जातक कथाएं हैं। बेटियां गुरुग्रंथ की वाणी, बेटियां वैदिक ऋचाएं हैं। जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियां वे वन्दनाएं हैं। फिर भी ज़्यादातर परिवारों में बेटियों के जन्म पर आज भी मायूसी छा जाती है। दुनिया में सबसे प्यारा रिश्ता होता है मां बेटी का। मां बेटी की सबसे अच्छी दोस्त कहलाती हैं। बेटियां वह सब अपनी मां से शेयर करती हैं जो वह अपने दोस्तों से करती हैं लेकिन नोंक-झोक हर रिश्ते में होती है।
कई बार मां की डांट बेटियों को बुरी लग जाती है और वह नाराज़ होकर बैठ जाती हैं लेकिन वह यह नहीं समझ पातीं कि गुस्सा इंसान उसी पर करता है, जिससे वह प्यार करता है। वह समाज और देश हमेशा तरक्की करता है जहाँ बेटियों को बराबरी का हक मिलता है। इसलिए बेटी को बेटो से कम न समझे और तब तो बिलकुल भी नहीं जब शिक्षा और सुविधाओं की बात हो क्योंकि बेटी में इतने गुण होते है कि वह सबका मन आकर्षित कर सकती है। बेटी घर, समाज तथा दुनिया में सहनशील एवं सद्गुणों का भंडार है और जो हीरे – मोती से भी अधिक मूल्यवान है। मेरी भी तीन बेटियां हैं। उन पर कभी अचानक इस तरह शब्द बरसने लगे थे -
उड़ गई तीनो एक-एक कर
पतंगें चली गई हों जैसे
अपने अपने हिस्से के आकाशों की ओर।
क्षितिज के इस पार रह गया मैं,
और कटी डोर जैसी मां उनकी।
आकाश उतना बड़ा सा, पतंगें ऊंचे
और ऊंचे उड़ती गई थीं, उड़ती गईं निःशब्द,
चुपचाप उड़ते जाना था उन्हे।
भावविह्वल, नियतिवत कहने भर के लिए
ऊंचे, और ऊंचे किंतु अपने-अपने अतल में
अस्ताचल-सी आधी-आधी दुनियाओं के
पीछे छिप जाते हुए।
छुटकी.....झटपट चढ़ जाती थी पिछवाड़े के कलमी अमरूद पर,
कच्चे फल-किचोई समेत नोच लेती थी गांछें।
मझली....पीटी उषा जैसी दौड़ती थी तीनो में सबसे तेज
ओझल हो जाती थी दूर तक फैले खेतों के पार
या पोखर की ओर कहीं।
बड़की....न ढीठ थी, न गुमसुम, हवा चलने पर
जैसे हल्के-हल्के हिलती हैं जामुन की पत्तियां
बस उतनी भर तेज-मद्धिम।
फिर न लौटीं पतंगें, अपनी डोर तक,
ले गये तीनो को उनके-उनके हिस्से के आकाश,
रह गया घर, बेघर-सा।
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