‘ग्रीनसोल’ से दुनिया को हरा-भरा बनाए रखने का प्रयास
हम चाहते हैं कि स्पोर्ट्स शूज़ को चप्पलों में परिवर्तित करने का काम पहले सारे भारत में शुरू करें और उसके बाद दुनिया के दूसरे देशों में भी इसका विस्तार करें।
मेरा नाम श्रीयांस भंडारी है और मैं जयहिंद कॉलेज, मुंबई में बैचलर मैनेजमेंट स्टडीज़ का तीसरे वर्ष का विद्यार्थी हूँ। मेरा दोस्त, रमेश धामी राष्ट्रीय स्तर का भारतीय खिलाड़ी है, जिसने कोई औपचारिक पढ़ाई नहीं की है और जो उत्तराखंड का रहने वाला है। हमने मिलकर ग्रीनसोल (GreenSole) की स्थापना की है-एक ऐसा उद्यम, जो न सिर्फ जूते-चप्पल रिसाइकल करके चप्पलें बनाकर उनकी मार्केटिंग करता है बल्कि उन्हें उन करोड़ों लोगों तक पहुँचाना चाहता है, जो उन्हें खरीदने में असमर्थ हैं। स्पोर्ट्स शूज़ का नवीनीकरण करके उन्हें चप्पलों में तब्दील करने वाले हम पहले उद्यमी हैं।
ग्रीनसोल ही क्यों?
एक अनुमान के अनुसार हर साल 35 करोड़ स्पोर्ट्स शूज फेंक दिए जाते हैं और लगभग 1.2 बिलियन यानी भारत की आबादी के बराबर लोग सबेरे उठते हैं तो उनके पास पहनने के लिए जूते नहीं होते!
इस विचार की शुरुआत कैसे हुई?
क्योंकि रमेश और मैं, दोनों ही खिलाड़ी हैं, हमें हर साल तीन से चार जोड़ी जूते अत्यधिक इस्तेमाल के कारण फेंकने पड़ते हैं। और क्योंकि हमारे दिमाग काफी सृजनशील हैं, हम दोनों ने अपने टूटे-फूटे जूतों को चप्पलों में तब्दील करके पहनना शुरू कर दिया। जल्द ही हमें समझ में आ गया कि इस प्रयास में एक बहुत रोचक उद्यम के बीज छिपे हुए हैं, जिसकी सहायता से हम लाखों-करोड़ों लोगों को लाभ पहुँचा सकते हैं। यही ग्रीनसोल (GreenSole) की शुरुआत की कहानी है।
अब तक लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही?
हमारे अनोखे विचार पर कुछ बेहतरीन टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं। अपनी शुरूआती कोशिश में हम 50 जोड़ी चप्पलें बेचने में कामयाब रहे और 100 चप्पलें हमने मुंबई में नंगे पैर रहने वाले ज़रूरतमंद गरीबों में बाँट दीं। अब हमारे पास जूतों-चप्पलों के दो डिज़ाइन पेटेंट (D262161 & D262162) हैं और हमारे उत्पादों में इन दोनों डिज़ाइनों की झलक देखी जा सकती है।
इस छोटी सी यात्रा में, सौभाग्य से, हमें कुछ बेहतरीन प्रतिपालकों और परामर्शदाताओं का सहयोग मिला, जिनमें प्रमुख रूप से मैं उदय वांकावाला ((NEN सलाहकार, मुंबई क्षेत्र), यदुवेंद्र माथुर (अध्यक्ष, एक्सिम बैंक, भारत), असद आर रहमानी (संचालक, BNHS, जिन्हें कई विभिन्न परियोजनाओं में मुख्य वैज्ञानिक के रूप में काम करने का अनुभव प्राप्त है) और मेजर जनरल के व्ही एस ललोत्रा (पूर्व प्रधानाध्यापक, मेयो कॉलेज, अजमेर) का उल्लेख करना चाहता हूँ।
इस अभिनव यात्रा ने हमें पर्याप्त पहचान भी दिलाई है, जैसे कुछ सप्ताह पहले संपन्न राइड ए नेशनल बी प्लान प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान। इस साल की शुरुआत में हमने यूरेका द्वारा आईआईटी मुंबई में आयोजित एशिया की सबसे बड़ी बी प्लान प्रतियोगिता में टेक्नोलोजी और सस्टेनेबिलिटी पुरस्कार जीता। टाटा फ़र्स्ट डॉट द्वारा हमें देश के 25 स्टार्टअप्स में शामिल किया गया और ईडीआईआई अहमदाबाद (EDII, Ahmedabad) द्वारा तैयार प्रवर्तकों की सूची में भी हम भारत के 30 प्रमुख प्रवर्तकों (innovators) में शामिल किए गए हैं। इसके अलावा पिछले साल हम जयहिंद कॉलेज और NEN द्वारा आयोजित बी प्लान (B-Plan) प्रतियोगिता भी जीत चुके हैं। फिर भी कुल मिलाकर काम उतना आसान भी नहीं था। हमें बहुत से व्यवधानों को पार करना पड़ा और परिवार वालों को, दोस्तों, रिश्तेदारों, कॉलेज के अधिकारियों और दूसरे हितचिंतकों को उद्यम को लेकर अपनी गम्भीरता के बारे में विश्वास दिलाना भी बड़ा कठिन काम साबित हुआ।
आपका अगला प्लान क्या है?
अब यह देखकर ख़ुशी होती है और उत्साह मिलता है कि हमारी योजनाओं से हमारे चाहने वाले भी जुड़े हुए हैं और वे भी उससे खुश हैं और गौरव महसूस करते हैं। हम सोचते हैं कि हम इसे अपने जीवन का ध्येय बनाएँगे। अपने अभियान की विशालता हमें प्रेरणा देती है कि हम उसे पूरा करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दें और सभी गरीबों और जरूरतमंदों को चप्पलें मुहैया कराने के अपने काम में जी-जान से जुट जाएँ और लंबे समय तक उसे व्यवहार्य बनाए रखने की कोशिश करें। बाज़ार के दृष्टिकोण से हम चाहते हैं कि स्पोर्ट्स शूज़ को चप्पलों में परिवर्तित करने का काम पहले सारे भारत में शुरू करें और उसके बाद दुनिया के दूसरे देशों में भी इसका विस्तार करें।
यह बात हजम करना मुश्किल है कि दुनिया की आधी आबादी 150 रुपए प्रतिदिन की आमदनी पर गुज़र-बसर करती है और यह जानकार तो और भी पीड़ा होती है कि करोड़ों लोग कई तरह के संक्रमणों से ग्रसित हैं और हर साल उन बीमारियों से जान गँवा बैठते हैं, जो अरक्षित पैरों के कारण संक्रमित होती हैं। अभी कैटापूल्ट (Catapooolt) नामक एजेंसी के ज़रिए हम हजारों बिखरे हुए लोगों की सहायता से छोटी-छोटी निधियाँ एकत्र करने के अभियान में जुटे हुए हैं और व्यापक समाज को हमारे इस अभियान की ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
और अब, जब कि हमें प्रचुर मात्रा में समाज का उदार समर्थन प्राप्त हो रहा है, हम समझते हैं कि अपने स्पोर्ट्स शूज़ का हम बेहतर उपयोग कर पाएँगे, अपनी रिसाइकिल्ड चप्पलों को ज़्यादा से ज़्यादा मात्रा में बेच पाएँगे, उन्हें उन जरूरतमंदों तक पहुँचा पाएँगे, जो उन्हें खरीद नहीं सकते और सबसे मुख्य बात, नई चप्पलों के निर्माण से होने वाले कार्बन प्रदूषण को कम करने में अपना अल्प योगदान दे पाएँगे। सहयोगियों और दानदाताओं को प्रेरित करने के उद्देश्य से ग्रीनसोल के कुछ हिस्सों की मिल्कियत की पेशकश के साथ ही हमने कुछ रोचक पुरस्कार भी घोषित किए हैं-जैसे एक या अधिक चप्पलें, 'बर्ड्स ऑफ़ अरावली' (Birds of Aravallis) नामक मेरी किताब आदि-जिससे बड़े दानदाता हमारी परियोजना के ज़रिए भारत के गाँवों को गोद ले सकें, जहाँ हम उन गाँव के ज़रूरतमंदों को 40 चप्पलें मुफ़्त उपलब्ध कराएँगे।
यह परियोजना वाकई हमारे दिल के बहुत करीब है और हम आशा करते हैं कि आप उदारतापूर्वक हमारी मदद करेंगे, जिससे हम सब मिलकर छोटे पैमाने पर ही सही, समाज में बदलाव ला पाएँ। मैं यह भी आशा करता हूँ कि हमारा कार्य कई दूसरे लोगों को भी नए और चुनौतीपूर्ण कामों को हाथ में लेने और उन्हें व्यापक समाज के सहयोग से पूरा करने की प्रेरणा देगा-आखिर इस संसार में सबको जीना-मरना साथ ही है। आखिर इस संसार में हम सबको एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए जीवन बिताना है।
- श्रीयांस भंडारी