रिटायरमेंट की तैयारी में शुरू किया स्टार्टअप, वेस्ट मटीरियल से बनता है डिज़ाइनर फ़र्नीचर
आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने स्टार्टअप को ही 'द रिटायरमेंट प्लान' का नाम दे दिया और वह इसके माध्यम से वेस्ट मटीरियल से नए-नए डिज़ाइनर फ़र्नीचर तैयार करके बेच रही हैं, ताकि आने वाले समय में उन्हें अपनी इच्छा से अधूरे रहने का मलाल न हो।
हम बात कर रहे हैं, मुंबई की रहने वालीं, अनु टंडन विएरा की, जिन्होंने 2012 में द रिटायरमेंट प्लान नाम से एक स्टार्टअप की शुरूआत की। मुंबई के गोरेगांव स्थित, कंपनी के कारखाने में वेस्ट मटीरियल (जैसे कि पुराने टायर्स और प्लास्टिक आदि) से स्टाइलिश फ़र्नीचर तैयार किया जाता है।
अक्सर रिटायरमेंट के बाद लोग जब अपनी प्रोफ़ेशनल लाइफ़ को याद करते हैं तो उनके मन में अपने किसी पैशन को या सोच को पूरा नहीं कर पाने का मलाल होता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने स्टार्टअप को ही 'द रिटायरमेंट प्लान' का नाम दे दिया और वह इसके माध्यम से वेस्ट मटीरियल से नए-नए डिज़ाइनर फ़र्नीचर तैयार करके बेच रही हैं, ताकि आने वाले समय में उन्हें अपनी इच्छा के अधूरे रहने का मलाल न हो। हम बात कर रहे हैं, मुंबई की रहने वालीं, अनु टंडन विएरा की, जिन्होंने 2012 में द रिटायरमेंट प्लान नाम से एक स्टार्टअप की शुरूआत की। मुंबई के गोरेगांव स्थित, कंपनी के कारखाने में वेस्ट मटीरियल (जैसे कि पुराने टायर्स और प्लास्टिक आदि) से स्टाइलिश फ़र्नीचर तैयार किया जाता है।
एक फ़ैमिली ट्रिप ने बदली ज़िंदगी
अनु बताती हैं कि जब उनकी उम्र लगभग 50 साल हो चली थी, तब वह अपने पूरे परिवार के साथ ग्रीस की ट्रिप पर गई थीं। अनु बताती हैं कि इस ट्रिप ने उनकी ज़िंदगी को एक नया मोड़ दिया और 'द रिटारमेंट प्लान' की नींव भी इस ट्रिप ने ही रखी। एक पहाड़ी आइलैंड पर उन्होंने एक महिला को देखा, जिसकी उम्र लगभग 60 साल होगी। वह महिला फ़ैब्रिक पर कारीगरी करते हुए तरह-तरह की क्रिएटिव चीज़ें बना रही थी। अनु कहती हैं कि उस महिला को यह काम करते हुए देख, ऐसा लगा कि उसे इस काम से उसे इतनी ख़ुशी मिल रही है, जितनी उसे पहले कभी किसी काम से नहीं मिली। अनु बताती हैं कि ये सबकुछ देखकर, उन्होंने अपना रिटायरमेंट भी कुछ ऐसे ही प्लान करने का मन बना लिया।
इस ख़्याल के फलस्वरूप ही 'द रिटायरमेंट प्लान' की शुरूआत हुई। अनु ने जानकारी दी कि उनकी प्लानिंग थी कि 2011 के अंत तक इसकी शुरूआत हो जाए, लेकिन 2012 में कंपनी का पहला प्रोडक्ट आ सका। हाल में, 6 नियमित कर्मचारियों या यूं कहें कि कलाकारों और 12 पार्ट-टाइम काम करने वालों के साथ मिलकर, अनु का स्टार्टअप हर महीने वेस्ट मटीरियल से फ़र्नीचर की 100 यूनिट्स बनाता है। अनु के प्रोडक्ट्स की रेंज, 3,500 रुपए से शुरू होकर 35,000 रुपयों तक जाती है।
डिज़ाइनिंग का लंबा अनुभव
डिज़ाइनर फ़र्नीचर का स्टार्टअप शुरू करने के पीछे की एक वजह यह भी थी कि अनु डिज़ाइनिंग बैकग्राउंड से ताल्लुक रखती हैं। अनु ने दिल्ली के कॉलेज ऑफ़ आर्ट से ग्रैजुएशन किया है और इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद स्थित नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिज़ाइन से टेक्स्टाइल्स में मास्टर डिग्री भी ली है। अनु ने कभी भी नियमित तौर पर नौकरी नहीं की। वह ज़्यादातर फ़्रीलांस कामों से ही जुड़ी रहीं। उन्होंने साईं परांजपे की फ़िल्मों साज़ और पपीहा में आर्ट और कॉस्ट्यूम डिज़ाइन का काम भी किया था। वह एक आर्किटेक्चर स्कूल में पढ़ाने का काम भी कर चुकी हैं।
अनु बताती हैं कि ग्रीस की ट्रिप के दौरान ही उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि वह डिज़ाइनिंग इंडस्ट्री को 30 साल दे चुकी हैं, लेकिन क्या कुछ ऐसा तो नहीं रह गया, जिसे न कर पाने का मलाल उन्हें आने वाली ज़िंदगी में हो। उन्होंने तय किया कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेंगी और आगे पूरी तैयारी के साथ कुछ ऐसा करेंगी, जो उनके ही लिए नहीं औरों के लिए भी उपयोगी हो। अनु मानती हैं कि उन्हें स्प्रेडशीट या प्रेज़ेंटेशन से ज़्यादा कारीगरों के साथ मिलकर काम करने में मज़ा आता है।
रिटायरमेंट के लिए चुना ‘रिटायर्ड मटीरियल’
अनु कहती हैं कि अपने रिटायरमेंट प्लान के लिए भी उन्होंने उन चीज़ों को चुना, जो रिटायर (वेस्ट मटीरियल) हो चुकी हैं। अनु का कहना है कि उन्हें हमेशा फ़ैक्ट्रीज़ के बाहर रखे हुए डस्टबिन्स में ज़्यादा दिलचस्पी रही है, बजाय उन उत्पादों के, जो फ़ैक्ट्री के अंदर बन रहे हैं। मुंबई एक बहुत बड़ा इंडस्ट्रियल शहर है और इसलिए अनु को रॉ-मटीरियल के कोई ख़ास चिंता नहीं करनी थी। साथ ही, इस आइडिया से उनके स्टार्टअप को एक इनोवेटिव ऐंगल भी मिल रहा था।
ग्रीस ट्रिप से आने के बाद वह अपने कॉलेज एनआईडी पहुंची। एनआईडी में वह विज़िटिंग फ़ैकल्टी के तौर पर जाती रहती हैं। कॉलेज में उन्होंने देखा कि टेक्स्टाइल के वेस्ट से बुनाई के लिए रंगीन सामग्री तैयार की गई है। इससे उन्हें संभावनाओं का अंदाज़ा हुआ और वह प्लास्टिक और टेक्स्टाइल के 50 किलो के वेस्ट के साथ घर आईं और उनपर प्रयोग शुरू किया।
अनु की एक दोस्त ने उन्हें मझगांव के पास एक डॉक पर ख़ाली जगह दे दी और यहीं पर अनु ने वेस्ट मटीरियल्स पर अपने प्रयोग शुरू किए। हाल में अनु, ऑटो शॉप्स से पुराने टायर, गुजरात-राजस्थान से चिंदी और फ़ैक्ट्रियों से इस्तेमाल की हुई प्लास्टिक ख़रीदती हैं। इन बेकार हो चुकी चीज़ों से ही कुछ नया बनाया जाता है। अनु कहती हैं कि उन्हें ऐसा लगता है कि इस काम के माध्यम से वह नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल रही हैं।
नहीं है बड़ा बनने की ख़्वाहिश!
अनु कहती हैं कि जहां तक उनकी ग्रोथ का सवाल है तो उसकी दर अच्छी है। जबकि अनु ने अभी तक पब्लिकसिटी पर पैसा खर्च नहीं किया है। एक इंसान से दूसरे इंसान के मारफत ही उनका बिज़नेस बढ़ रहा है। 'द रिटायरमेंट प्लान' को कोलकाता के द इंडिया स्टोरी (2015 और 2016); दिल्ली के इंडिया डिज़ाइन आईडी (2015) और लंदन के डिज़ाइन फ़ेस्टिवल (2016) में एग्ज़िबिशन्स लगाने के मौके मिल चुके हैं।
चेन्नई, बेंगलुरु, पुदुचेरी, मुंबई, अहमदाबाद, हैदराबाद और पुणे को मिलाकर, 'द रिटायरमेंट प्लान' ने देशभर में 15 डिज़ाइन स्टोर्स के साथ करार कर रखा है। अनु बताती हैं कि उनके कारीगर भी अपने काम से ख़ुश हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वे कुछ नया कर रहे हैं और उनके बनाए उत्पाद पर उनका हक़ है। अनु कहती हैं कि उनकी कंपनी के कारीगर अपनी तरफ़ से भी आइडिया लेकर आते हैं और उनके सुझावों का पूरा ख़्याल रखा जाता है।
अनु ने रिटायरमेंट प्लान से जुड़ी भविष्य की योजनाओं के संदर्भ में कहा कि वह इसे बहुत बड़ा नहीं बनाना चाहतीं क्योंकि यह सिर्फ़ पैसों के लिए नहीं है बल्कि यह काम वह अपनी और दूसरों की संतुष्टि के लिए और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए कर रही हैं। वह चाहती हैं कि उनके कारीगर एक ही प्रोडक्ट डिज़ाइन को दोहराने के बजाय नए-नए प्रयोग करते रहें। अनु कहती हैं कि बड़े स्तर पर जाने के बारे में वह तब ही सोचेंगी, जब ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को उनकी कंपनी के ज़रिए काम मिल रहा होगा।
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