बेटे के अधूरे ख्वाबों को पूरा कर रहे है 75 साल के ‘मास्टर साहब’…. तैयार कर रहे हैं हॉकी की नई पौध....
ओलंपियन बेटे विवेक सिंह की मौत ने अंदर तक झकझोराहॉकी अकादमी के जरिए तैयार कर रहे हैं खिलाड़ीपूरा परिवार खेल के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ा
वो मास्टर साहब के नाम से मशहूर हैं.....75 साल की उम्र हो चूकी है....लेकिन शरीर में फूर्ति अब भी ऐसी की अच्छे अच्छे एथलीट भी मात खा जाए....किसी नवजवान की तरह आज भी वो सुबह शाम 5-8 किमी की दौड़ लगाते हैं....जिम और योग सेंटर में घंटों समय गुजारते हैं.....लेकिन ठहरिए....मास्टर साहब की सिर्फ यही पहचान नहीं है.....अब हम मास्टर साहब की जिंदगी के उस पहलू से वाकिफ कराने जा रहे हैं.....जो आज समाज में एक नजीर बन चूका है.....खुद को फिट रखने के साथ मास्टर साहब बनारस में हॉकी खिलाड़ियों की एक पौध तैयार करने में जुटे हैं.....उन्होंने हॉकी को ही अपनी जिंदगी का मिशन बना लिया है.....वो चाहते हैं कि भारतीय हॉकी का एक बार फिर से पूरी दुनिया में डंका बजे.....हॉकी में फिर से हिंदुस्तान की बादशाहत कायम हो....
खुद भी हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी रह चुके मास्टर साहब यानि गौरीशंकर के इस मिशन की शुरूआत 2005 में तब हुई जब महज 34 साल की उम्र में उनके बेटे विवेक सिंह की कैंसर की वजह से मौत हो गई....विवेक सिंह की गिनती भारत के धाकड़ हॉकी खिलाड़ियों में होती थी.... विवेक सिंह उस वक्त के खिलाड़ी थे जब दुनिया भारत के हॉकी खेल की मुरीद थी....जब ओलंपिक और विश्व कप में भारत का परचम लहराता था......सिर्फ भारत ही नहीं पूरे बनारस को हॉकी के इस होनहार पर नाज था.....वो चाहते थे कि बनारस हॉकी का हब बने.....यहां से निकलने वाले खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे.....उन्होंने बनारस को लेकर कई सपने पाल रखे थे....लेकिन भगवान को शायद ये मंजूर नहीं था......34 साल की उम्र में विवेक इस दुनिया को छोड़ गए....विवेक अचानक इस दुनिया को अलविदा कह देंगे ..... किसी को भरोसा नहीं हुआ.....ऐसा लगा विवेक के जाने के साथ उनके सपने भी दम तोड़ देंगे...लेकिन ऐसा नहीं हुआ.....विवेक के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए आगे आए उनके पिता गौरीशंकर सिंह.....75 साल की उम्र में भी मास्टर साहब पूरी शिद्दत से हॉकी को बुलंदियों पर पहुंचाने में लगे हैं.....
बेटे की याद में मास्टर साहब ने साल 2006 में विवेक सिंह हॉकी अकादमी बनाई....भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्लै ने इसका उद्धाटन किया ....महज कुछ सालों में ही इस अकादमी ने यूपी में अपनी अलग पहचान बना ली है....यहां से निकलने वाले खिलाड़ियों का डंका पूरे देश में बज रहा है....इस अकादमी में खिलाड़ियों को पूरी तरह से फ्री ट्रेनिंग दी जाती है....सबसे खास बात ये है कि ट्रेनिंग में आधुनिकता का खासा ख्याल रखा जाता है.....क्योंकि मास्टर साहब जानते हैं कि अब हॉकी का लेवल काफी ऊपर जा चूका है....ऐसे में खिलाड़ियों को परंपरागत के बजाय आधुनिकता के दांव पेंच सिखाने की जरुरत है.....मास्टर साहब खुद अकादमी के हर खिलाड़ी के तकनीक पर खासा ध्यान रखते हैं.....
गौरीशंकर सिंह का खेल घराना भी अपने आप में अजूबा है....उनके छह बेटे हैं....विवेक अब दुनिया में नहीं है...लेकिन उनके भाईयों राहुल और प्रशांत सिंह ने भी हॉकी में अपनी धाक जमाई....इसके अलावा राजन सिंह और अनन्य सिंह बैडमिंटन में तो सीमांत सिंह क्रिकेट में अपना जलवा बिखेर चूके हैं...साल 2014 में इस परिवार पर बनी डॉक्यूमेंट्री एंड वी प्ले ऑन को खिताब मिल चूका है....
गौरीशंकर सिंह बताते हैं कि ‘’ वह अपने बेटों के चलने के तरीके पर बड़ा ध्यान देते थे....उसके तौर-तरीके को देखकर ही फैसला करते थे कि वह हॉकी, बैडमिंटन या किक्रेट खेलेगा ’’
यही नहीं पत्नी पद्मा सिंह भी राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन खिलाड़ी रही हैं....पोते सानिध्य, साहिल और रिशिका अंडर 14 में बैडमिंटन और फुटबाल में धाक जमा रहे हैं....पूरी फैमली ही खेल के अलग अलग क्षेत्र से जुड़ी है....लेकिन गौरीशंकर सिंह को आज भी अपने बेटे विवेक सिंह की याद सालती है....विवेक के बगैर आज भी वो खुद को अधूरा महसूस करते हैं....लेकिन खेल को लेकर उनका जज्बा ही है कि वो खुद को कभी कमजोर महसूस नहीं करते....
गौरीशंकर सिंह कहते हैं कि ‘’ हॉकी को नई बुलंदी तक पहुंचाना ही उनकी जिंदगी का मकसद है.....बनारस में हॉकी को लेकर बहुत संभावनाएं हैं बस उसे तराशने की जरुरत है...अगर यहां के खिलाड़ियों को बेतहर सुविधाएं दी जाए तो नतीजा काफी बेहतर होग ‘’….
गौरीशंकर सिंह की कोशिशों का नतीजा है कि विवेक हॉकी अकादमी से निकले खिलाड़ियों की डिमांड बढ़ती जा रही है....नेशनल लेवल से लेकर एचपीएल में भी ये खिलाड़ी अपना लोहा मनवा रहे हैं....खेल के क्षेत्र में सराहनीय काम करने के कारण गौरीशंकर सिंह को कई अवॉर्ड भी मिल चूके हैं....