ऐसे निकालें खुद को अकेलेपन की दलदल से
अकेलापन एक ऐसी बीमारी है जो हमें शारीरिक तौर पर होने वाले कष्ट जैसा ही परेशान कर सकती है। ये जितना ज्यादा परेशान करती है उतनी ही आसानी से इससे लड़ा जा सकता है। आईये जानें क्या कहती है हालिया रिसर्च...
ज्यादातर स्पेशलिस्ट मानते हैं कि अकेलापन अनचाहा और दुख देने वाला एक ऐसा एहसास है जो मानसिक और शारीरिक सेहत पर असर करता है। 45 साल और उससे ज्यादा के कुछ लोगों पर जब सर्वे किया गया, तो पाया गया कि उनमें से एक तिहाई लोग अकेलेपन के शिकार थे।
अकेलापन एक ऐसी बीमारी है जो शारीरिक तौर पर होने वाले कष्ट की तरह ही परेशान कर सकती है। नए साल का पहला महीना आधा निकल चुका है, आप काम पर वापिस लौट चुके हैं। छुट्टियों के बाद जैसे ही आप काम पर लौटते हैं, वह शुरू शुरू में तो लुभाता है लेकिन धीरे धीरे दिनचर्या उबाऊ और बोरिंग हो जाती है। ये बोरिंग कब अकेलेपन में बदल जाती है, मालूम भी नहीं चलता। इंग्लिश लेखक फैनी डोवे कहते हैं, 'अकेलापन बिना बताए कब चुपके से आपकी ज़िदगी में बिन बुलाए आकर हमारा साथी बन जाता है, हमें पता नहीं चलता।'
साइकोलॉजिसट बताते हैं कि दुनिया में अकेलेपन के भी कई प्रकार हैं। सबकी अलग समय सीमा है। हालांकि ज्यादातर स्पेशलिस्ट मानते हैं कि अकेलापन एक अनचाहा और दुख देने वाला एक ऐसा एहसास है जो हमारे मानसिक और शारीरिक सेहत पर असर करता है। इतना ही नहीं इसका सीधा असर हमारे इम्यून सिस्टम, नींद और दिल की सेहत पर भी असर करता है। इतनी परेशनियों के बाद पिछले साल एक और बात एक स्टडी में निकल कर सामने आई कि अकेलेपन की वजह से लोगों की मौत भी वक्त से पहले हो जाती है।
यूएस में 45 साल और उससे ज्यादा के कुछ लोगों पर जब सर्वे किया गया यूएस में तो पाया गया कि उनमें से एक तिहाई लोग अकेलेपन के शिकार थे। फिर बच्चों और युवाओं पर रिपोर्ट ने प्रकाश डालास मालूम हुआ कि 17-25 साल से युवा ज्यादातर अकेलेपन से ही जूझ रहे थे।
पहचान कैसे करें और क्या करें?
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एक प्रोफेसर जॉन कैसिओपो, जिन्होंने अकेलेपन के विषय पर स्पेशलाइज़ेशन किया है ने बताया कि हमें आखिक किन कारणों से अकेलापन होता है, कैसे हम पर असर करता है, और इससे निपटने के लिये हमें क्या करना चाहिये। प्रोफेसर कहते हैं कि आजकल कि दुनिया एक व्यक्ति और सिर्फ खुद के लिये जाने वालों की हो गई है। ऐसा व्यक्तित्व ही अकेला हो जाता है, और समझ नहीं पाता कि उसके खुद के साथ दिक्कत क्या है ।
उनके मुताबिक, 'आप अक्सर लोगों को ये कहते सुनेंगे नहीं कि वो अकेलेपन के शिकार हैं, और यहीं पर इस बिमारी को बढ़त मिल जाती है। क्योंकि लोग इसे लांछन के रूप में देखते हैं। यही सोच हमें कमज़ोर, बदकिस्मत और लूज़र बनाती है। हम इस बात को स्वीकारना ही नहीं चाहते कि हम अकेले हैं। ये ठीक वैसा ही है जैसे हम इस बात को नकार दें, कि हमें भूख लगी हैं, दर्द हो रहा है, या प्यास लगी है।'
इसलिये प्रोफेसर इस बात पर जोर देते हैं कि सबसे पहले हमें समझना होगा कि हम अकेलेपन से जूझ रहे हैं। दूसरी बात ये कि समझना जरूरी है कि इस परेशानी से हमारे दिमाग पर क्या असर पड़ रहा है। आपके व्यवहार में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं। एक बार हम इस निर्णय पर पहुंच गए कि हमारी ज़िदगी पर एकाकीपन हावी है तो इससे निपटने के लिये हमें नए रिश्ते, मजबूत दोस्ती बनानी शुरू कर देनी चाहिये।
किसी ऐसे व्यक्ति के साथ अपने संबंध मजबूत हों, जिन पर आप भरोसा कर सकते हैं, जो आपको आपके बारे में बता सकें कि आपमें क्या बदलाव आ रहे हैं। क्या गलत है और क्या सही है आपमें। परिवार और दोस्तों के साथ ज्यादा समय बिता कर देखें। पर इस दौरान भी ध्यान रहे कि आपका ध्यान भटके नहीं। अपने आप से ऊपर उठ कर समूह में लोगों के साथ जीना सीखें। कुछ ऐसा करें जिससे आप खुशी महसूस करें।
सोशल मीडिया से दूरी बनाएं। हमें आजकल सबसे पहले अपने एकाकीपन को दूर करने के लिये सोशलमीडिया सहारे से कम नहीं लगता। पर रिसर्च बताती है कि ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिताने वाले लोग सबसे ज्याजा अकेलेपन के शिकार होते हैं। हम आज सोशल मीडिया से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रखने लगे हैं, जबकि एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। जरूरत हैं कि हम अपने कम्प्यूटर के बाहर की दुनिया से संपर्क साधे, लोगों से अपनापन बढ़ाएं। परिवार, दोस्त और समाज के बीच ज्यादा वक्च बिताएं। और हम पाएंगे कि अकेलापन हम पर हावी नहीं हो पाएगा।
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