Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT

स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत: दारू की नदियां और दवाओं का अकाल

स्वास्थ्य सुविधाओं की हकीकत: दारू की नदियां और दवाओं का अकाल

Thursday September 28, 2017 , 5 min Read

 अपनी जिंदगी से जूझ रहे देश के ऐसे लाखों करोड़ों लोगों के लिए ये सूचनाएं क्या कहती हैं, दवा नकली मिलती है, खुद डॉक्टर्स घटिया दवा लिखते हैं कमीशन की खातिर। 

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)


स्कूल हॉस्पिटल और खाने पीने का सामान बेचने वाले ही अगर किसी नियम गुणवत्ता के मापदंड पर खरे नहीं हैं तो फिर देश में सरकार क्या है।

जब तक एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) पर पूरी तरह पाबंदी नहीं लगाई जाती है और जब तक डॉक्टरों के लिए जैनरिक दवाएं लिखना कानूनन अनिवार्य नहीं होगा तब तक आम जनता के लिए सस्ती जैनरिक दवाइयां आसानी से उपलब्ध नहीं होगी।

चीन के बैक्टीरिया ही भारतीय मरीजों पर हमला नहीं कर रहे हैं, यह किसी सातवें आश्चर्य से कम नहीं कि इलाज के नाम पर बिक रही नकली दवाएं भी जान ले रही हैं। नवरात्र पर व्रती लोगों के लिए बाजारों में कुट्टू का नकली आटा तो धड़ल्ले से बिक ही रहा है, खान-पान के तमाम और भी तरह के नकली सामानों से बाजार पटे पड़े हैं, ग्राहक लुट रहे हैं, छानबीन के लिए जिम्मेदार अधिकारी ठाट से करोड़ों की पगार उठाते जा रहे हैं लेकिन सबसे तकलीफदेह है भारत के बाजारों में नकली दवाओं का कारोबार। सरकारी अस्पतालों में दवा हो, न हो, मरीज बचे अपनी बला से, न बचे तो भी। लेकिन हर शहर के बाजारों में दारू की नदियां बह रही हैं। दिल्ली चले जाइए और वहां शाम का नजारा देखिए। पता चलता है, हर तीसरा आदमी ठेके की ओर भागा जा रहा है। राजस्व के लिए बाकायदा ठेकों की नीलामियां हो रही हैं।

घूसखोरी के भरोसे डंके की चोट पर कोई जाली कागजात बनवाकर डॉक्टर बन जा रहा है, तो कोई नकली दवाएं बेचकर करोड़पति। और यह सब हमारे देश-प्रदेश की राजधानियों में हो रहा है। पिछले दिनो राजधानी नई दिल्ली में बड़ी चालाकी से फर्जी डिग्री बनवा लेने वाला दसवीं पास 'एमबीबीएस डॉक्टर' पकड़ा गया। राजस्थान की राजधानी जयपुर में सबसे बड़े अस्पताल एसएमएस के ठीक सामने नकली दवाओं के गोरखधंधे का भंडाफोड़ हुआ। फिर भी दुस्साहस तो देखिए। उन्हीं दिनो उदयपुर में यूनिवर्सिटी के फार्मेसी संकाय में भारतीय फार्मेसी स्नातक संगठन की राष्ट्रीय सेमीनार के दूसरे दिन वर्ल्ड फार्मासिस्ट डे में डीन डॉ. एमएस राणावत ने फार्मासिस्टों से कहा कि खुद के फायदे के लिए नकली नशे की दवाओं का बिकना सुनिश्चित करें।

बिहार के भोजपुर में हाल ही में नारायणपुर की एक किराने की दुकान में 22 लाख रुपये की नकली कीट नाशक दवाएं बरामद हुईं। कुछ ही दिन पहले चंडीगढ़ में लैब टैस्ट में 30 दवाएं फेल पा गईं। इनमें से आर.डी.टी.एल. लैब द्वारा 7 दवाओं को नकली पाया गया, जबकि 23 दवाओं की जांच कोलकात्ता, मुंबई, चेन्नई और गुवाहटी की लैब्स में की गई थी। हरियाणा के ही झज्झर में आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली 22 फैक्ट्रियों पर दिनभर छापे पड़े। छोटे-बड़े अस्पतालों में जाइए, देखकर लगता है, जैसे पूरा मुल्क ही बीमार पड़ा हुआ है। कोई बेड पर लेटा मिलेगा, कोई पेड़ के नीचे या फर्श पर तो कोई दवा की पर्ची लेकर मेडिकल हॉल की दौड़ लगाता हुआ। अपनी जिंदगी से जूझ रहे देश के ऐसे लाखों करोड़ों लोगों के लिए ये सूचनाएं क्या कहती हैं। दवा नकली मिलती है, खुद डॉक्टर्स घटिया दवा लिखते हैं कमीशन की खातिर। 

स्कूल हॉस्पिटल और खाने पीने का सामान बेचने वाले ही अगर किसी नियम गुणवत्ता के मापदंड पर खरे नहीं हैं तो फिर देश में सरकार क्या है। सब विभाग और नेता भाईचारा निभाने में जनता के जीवन से खिलवाड़ करते हैं। और तो और, संपेरों और तस्करों की जुगलबंदी ने सांपों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर दिया है। सांपों के जहर और उसकी त्वचा की तस्करी कर करोड़ों का कारोबार चल रहा है। बिहार-पश्चिम बंगाल और बिहार-नेपाल की सीमा पर जिस तरह से सांपों के विष तस्कर पकड़े जा रहे हैं, उससे इस तरह के गंदे खेल को आसानी से समझा जा सकता है। इस बीच आंखों की बीमारियों से जुड़े एम्स के डॉक्टरों के एक हालिया शोध में चौंकाने वाली बातें पता चली हैं।

जैनरिक दवाओं के मामले में भारत की गिनती दुनिया के बेहतरीन देशों में होती है। वर्तमान में हमारा देश दुनिया का तीसरा सब से बड़ा उत्पादक देश बना हुआ है। हर साल लगभग 42 हजार करोड़ रुपए की जैनरिक दवाएं भारत से एक्सपोर्ट हो रही हैं। यूनिसेफ अपनी जरूरत की 50 फीसदी जैनरिक दवाइयां भारत से खरीदता है। इस सच का दूसरा पहलू ये है कि वर्ष 2013 में मैडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी डॉक्टरों से जैनरिक दवाएं लिखने को कहा था और यह ताकीद की थी कि ब्रैंडेड दवा सिर्फ उसी केस में लिखी जानी चाहिए जब उस का जैनरिक विकल्प मौजूद न हो।

इस बारे में संसद की एक स्थायी स्टैंडिंग कमेटी शांता कुमार की अध्यक्षता में बनाई गई थी, जिसने सरकार से कहा था कि वह डॉक्टरों के लिए केवल जैनरिक दवाएं लिखना अनिवार्य करे और इसके लिए जल्द से जल्द कानून बनाए। लेकिन आज सच क्या है, क्या फरमानों पर अमल हो रहा है? जब तक एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) पर पूरी तरह पाबंदी नहीं लगाई जाती है और जब तक डॉक्टरों के लिए जैनरिक दवाएं लिखना कानूनन अनिवार्य नहीं होगा तब तक आम जनता के लिए सस्ती जैनरिक दवाइयां आसानी से उपलब्ध नहीं होगी। कमीशनखोर डॉक्टर महंगी दवाओं की पर्चियां लिखते रहते हैं। तरह-तरह की जांच करवाते रहते हैं। टोकाटाकी पर मरने मारने को उठ खड़े होते हैं।

यह भी पढ़ें: प्लेबॉय के संस्थापक ह्यू हेफनर का कभी दिल टूटा था, अब सांसें टूटीं