डॉक्यूमेंटरी मेकर्स गौरव जानी और गिरिधर राव के जुनून और जज़्बे की कहानी
यात्रा और मोटरसाइक्लिंग के दो जुनूनियों गौरव जानी और पी.टी. गिरिधर राव ने की ‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ की स्थापना...‘राइडिंग सोलो टू द टाॅप आॅफ द वल्र्ड’, ‘वन क्रेज़ी राइड’ और ‘मोटरसाइकिल चांग पा’ नामक तीन फिल्मों का कर चुके हैं निर्माण...अपनी पहली ही फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार सहित 21 विभिन्न फिल्म समारोहों में मिले थे 11 पुरस्कार...लद्दाख के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले खानाबदोशों की मुश्किल जिंदगी पर फिल्म बनाने के लिए दोबारा की यात्रा
वर्ष 2006 में यात्रा के प्रति जुनूनी और उत्साही दो नौजवानों ने भारत के उस विशाल क्षेत्र को तलाशने और यात्रा करने का फैसला किया, जो अधिकतर लोगों की नजरों से दूर ही रहा है और उस समय तक लोग उन स्थानों के बारे में न के बराबर जानते थे। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए गौरव जानी और पी.टी. गिरिधर राव ने ‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ की स्थापना की। यात्रा और खोज की असीम संभावनाओं को सामने देखते हुए इन्होंने दुनिया की नज़रों से दूर के इन स्थानों के आसपास फैली रहस्यमता के साथ-साथ वहां निवास करने वाले लोगों के बारे में जानकारी उजागर करने का बीड़ा उठाया और अपनी इस अविश्वसनीय यात्रा को सहेजने का निर्णय किया।
वर्ष 2006 में ‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ अपना पहला वृत्तचित्र ‘राइडिंग सोलो टू द टाॅप आॅफ द वल्र्ड’ लेकर सामने आया जिसमें उन्होंने मुंबई से लद्दाख के चंगथंग के पठार तक की गौरव जानी की अकेले तय की गई यात्रा से दर्शकों को रूबरू करवाया। हालांकि उनकी यह यात्रा तमाम कठिनाइयों और अभिभूत करने वाले क्षणों से भरी हुई थी, लेकिन आखिर में गौरव को पूरे रास्ते में मिले अद्वितीय लोगों द्वारा छोड़ी गई अमिट छाप की कहानी बनकर रह गई और उनकी पूरी फिल्म में भी इसी का प्रभाव दिखाई देता है। इस वृत्तचित्र के माध्यम से ‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ देश में वृत्तचित्रों की श्रेणी में मिलने वाले सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार सहित 21 विभिन्न फिल्म समारोहों में 11 पुरस्कार जीतने में सफल रही।
अपनी पहली फिल्म की सफलता से प्रेरित होकर ये अपनी दूसरी फिल्म ‘वन क्रेज़ी राइड’ को तैयार करने में जुट गए, जिसमें गौरव के साथ मोटरसाइकिल के 4 अन्य जुनूनी इस दोपहिया से देश के एक और हिमालयी राज्य अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़े। इस संपूर्ण यात्रा के दौरान इन लोगों के सामने कई बार ऐसे पल आये, जब इन्होंने खुद को बिना किसी सड़क या रास्ते के पाया और वास्तव में इन्हें आगे बढ़ने के लिए खुदाई करके रास्ता तैयार तक करना पड़ा। आप सिर्फ इन फिल्म का 30 सेकेंड के ट्रेलर ही देखेंगे तो आप यह देखकर दंग रह जाएंगे कि कैसे एक मोटरसाइकिल के आगे लगा कैमरा एक जर्जर लकड़ी हो चुके लकड़ी के पुल से इनके सफर को दर्शाता है। इस एक दृश्य से ही आप इनकी यात्रा के प्रलेखित सौंदर्य और उत्साह को जान जाएंगे। यह फिल्म 14 विभिन्न फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की गई जिनमें इसने 3 पुरस्कार भी अपने नाम किये।
‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ की अगली फिल्म वर्ष 2013 में रीलीज हुई। ‘मोटरसाइकिल चांग पा’ नामक यह फिल्म गौरव को उसी गांव में एक बार फिर वापस ले आई जिसमें वे अपनी पहली फिल्म ‘राइडिंग सोलो टू द टाॅप आॅफ द वल्र्ड’ के दौरान आए थे। उन्हें इस दुर्गम इलाके में दोबारा लौटकर आने के लिये कई बातों ने प्रेरणा दी। पहला तो वे उन शानदार लोगों से दोबारा मिलना चाहते थे जो पहली ही मुलाकात में उनपर एक बहुत सकारात्मक प्रभाव छोड़ने में सफल हुए थे और दूसरे वो दुनिया के इस भाग में रहने वाले लोगों की जिंदगी को गहराई से समझना चाहते थे।
‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ की मार्केटिंग की वुमेन फ्राइडे इंचार्ज दीपा दीपा बताती हैं, ‘‘यह फिल्म मुंबई से से लेकर लद्दाख तक की एक वर्ष की यात्रा के दौरान एक खानाबदोश की जीवनशैली और मौसमों के विभिन्न चक्रों के बारे में है। हम यह दर्शाना चाहते थे कि लोग अभी भी इस प्रकार की जीवनशैली को जी रहे हैं मानवजाति की नजरों में सबसे कठिन परिस्थितियों वाले इलाकों में रहने के लिये खुद के लिए ऐसी जीवनशैली का चुनाव कर रहे हैं।’’
अपनी पहली यात्रा के दौरान गौरव इस गांव में गर्मियों के मौसम में आये थे और लद्दाख और आसपास के इलाकों में वह मौसम अपेक्षाकृत सुहावना होता है। हालांकि उसके बाद आने वाले 6 महीनों के लिये लद्दाख में रहने की स्थितियां विश्व की सबसे कठिन परिस्थितियों में से एक हो जाती हैं और गांव लंबी और कठाोर सर्दियों के चलते बाकी की दुनिया से कट जाते हैं। सर्दियों के इस मौसम के दौरान पारा गिरकर शून्य से भी 40 डिग्री नीचे तक गिर जाता है।
दीपा आगे कहती हैं, ‘‘यह हमारी सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है। बिना किसी सहायता के, बिना किसी पृष्ठभूमि के और आसपास में बिना किसी भी प्रकार की मदद के शून्य से 40 डिग्री नीचे के तापमान में अपने दम पर जीवित रहना और फिल्म शूट करना ........... मुझे नहीं लगता कि हमने इससे बड़ा कुछ किया है।’’
ऐसे इलाकों को अपने कैमरे में कैद करते जिनके बारे में शायद ही किसी ने सुना हो या पहले देखा हो मोटरसाइकिल चैंग पा किसी भी फिल्मप्रेमी के लिये एक अजूबा है। इस पूरी यात्रा के दौरान गौरव का सफर कठोर जलवायु और कठिन यात्रा परिस्थितियों से भरपूर रहा इसलिये यह फिल्म भी एक्शन, इमोशन और शारीरिक सघर्षों से भरी हुई है। यह सौंदर्य की दृष्टि से बेहद मनोरम है क्योंकि इसमें हिमालय के भारतीय क्षेत्रों की खूबसूरती को बेहद आकर्षक तरीके से वाइड-एंगल से शूट किया गया है।
दीपा आगे कहती हैं,
‘‘लोगों को लगता है कि शहरों में रहने वालों का जीवन बहुत कठिन होता है और हम तनाव इत्यादि के चलते मुश्किलों से जूझते रहते हैं, लेकिन खानाबदोश एक बहुत ही कठिन जीवन जीते हैं और इसके बारे में बिल्कुल भी दिखावा नहीं करते। यह एक कड़वा सत्य है और उन्हें अपने जीवन जीने के तरीके पर बहुत गर्व होता है। उनकी एक बहुत ही सरल जीवन शौली होती है जो हमारी शहरी भागदौड़ से बिल्कुल जुदा होती है।’’
फिलहाल मोटरसाइकिल चैंग पर पोस्टप्रोडक्शन के दौर से गुज़र रही है और ‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ की टीम आने वाले दिनों में दुनियाभर में आयोजित होने वाले कई फिल्म समारोहों में भाग लेने पर विचार कर रही है ताकि उनकी पहुंच अधिक से अधिक लोगों तक हो सके। इसके अलावा ‘डर्ट ट्रेक प्रोडक्शंस’ जल्द ही अपनी इस फिल्म को टीवी चैनल डिस्कवरी को देने के अलावा इसे आईट्यून्स पर भी रिलीज करने की तैयारी कर रही है जहां पर इनकी दो अन्य फिल्में भी उपलब्ध होंगी।
दीपा कहती हैं, ‘‘लोगों को ऐसा कुछ देखने और जानने के लिये इस फिल्म को जरूर देखना चाहिये जो उन्होंने अपने जीवन में सोचा भी न हो। उनके लिये यह वास्तव में एक बिल्कुल अनूठा अनुभव होगा। और अगर आप यात्रा के या मोटरसाइकिल के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपको एक ऐसी जगह की यात्रा करवाएगी जहां आप वास्तव में जाना चाहेंगे और इस फिल्म को देखते हुए आपको महसूस होगा कि आप वास्तव में वहां पहुंच गए हैं।’’