रामलीला में सीता का किरदार निभाने वाले केएल सहगल कैसे बने भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार
देश का पहला सुपरस्टार...
कुंदन लाल सहगल, भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार। एक ऐसे शख्स जिन्हें गायिकी में महारथ हासिल थी, जिनके गाने 1930-40 में सबसे ज्यादा सुने जाते थे...
केएल सहगल के गीत 47 बरस तक रेडियो सीलोन पर हर सुबह बजते रहे। सहगल के गाने का जादू ऐसा था कि किशोर कुमार और मुकेश ने भी अपने करियर के दौरान उनके जैसा गाने की कोशिश की थी।
दिखने में कुछ खास नहीं, विग लगाकर अपने कम बालों को छुपाने की कोशिश करने वाले इस कलाकार को लोगों ने अपने दिलों में जगह दी। जब वो सुर लगाते तो जैसे दिल से आवाज़ निकलती, जब डायलॉग बोलते तो लोग दीवाने हो जाते उनके।
अपनी जिंदगी को किसी रंगमंच की तरह शानदार तरीके से जीने वाले लोग विरले ही होते हैं। अपनी मेहनत और लगन से अपना मनचाहा मुकाम हासिल करने वाले ही लोग इतिहास रचते हैं। कुंदन लाल सहगल, भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार। एक ऐसे शख्स जिन्हें गायिकी में महारथ हासिल था, जिनके गाने 1930-40 में सबसे ज्यादा सुने जाते थे। केएल सहगल के गीत 47 बरस तक रेडियो सीलोन पर हर सुबह बजते रहे।
दिखने में कुछ खास नहीं, विग लगाकर अपने कम बालों को छुपाने की कोशिश करने वाले इस कलाकार को लोगों ने अपने दिलों में जगह दी। जब वो सुर लगाते तो जैसे दिल से आवाज़ निकलती, जब डायलॉग बोलते तो लोग दीवाने हो जाते उनके। 11 अप्रैल 1904 को जम्मू में जन्मे कुंदन बचपन में रामलीला के दौरान सीता भी बना करते थे। थोड़े कम पहचान वाले सूफी पीर उनके पहले ट्रेनर थे। जिस गायिकी को उन्होंने अपनाया वैसे तो वो क्लासिकल ही कही जाएगी पर उसमें कविताओं जैसी रचनाएं होती थीं। ठुमरी और ग़ज़ल उनकी विशेषताएं थीं।
इसके पहले की बीएन सरकार उनको न्यू थियेटर के लिये चुनते सहगल ने रेलवे में टाइम-कीपर की नौकर की, फिर रेमिंगटन टाइपराइटर सेल्समैन भी बनेय़ इसके बाद ही उनकी ज़िंदगी बदली आर सी बोरल, पंकज मल्लिक और तिमिर बरान की बदौलत। 1932 में बनी मोहब्ब्त के आंसू में पहली बार उन्होंने पहली बार अपनी आवाज़ दी। सफलता मिली 1934 में चंदीदास से।
इसके बाद सहगल नहीं रुके 1935 में आई फिल्म देवदास ने उनकी ज़िंदगी ही बदल दी। पीसी बरुआ की इस फिल्म में देवदास के उनके ट्रैजिक हीरो के कैरेक्टर को काफी सराहना मिली। उनके चेहरे पर लटकी बालों का लट, उदासी और गंभीर आवाज़ ने पूरे देश भर के लोगों को उनका कायल बना दिया। फिल्म में उनके गाने बालम आए, बसो मेरे मन में और दुख के अब दिन भी सुपरहिट हुए। बाद में उनके इस कैरेक्टर को दिलीप कुमार, ए नागेश्वर राव और शाहरूख खान ने भी निभाया, पर सबसे ज्यादा चर्चा अगर किसी की इस रोल के लिये होती है तो वो हैं कुंदन सहगल।
सहगल की किस्मत ने उनका सबसे ज्यादा साथ दिया, क्योंकि उन्हें न्यू थियेटर जैसा प्लैटफॉर्म मिला, जिसके नाम क्वालिटी फिल्म मेकिंग के लिये जाना जाता था। सहगल की कई मास्टरपीसों में से दीदी(बंगाली), प्रेसीडेंट(हिंदी) 1937 में, साथी(बंगाली), स्ट्रीट सिंगर(हिंदी) 1938 में और 1940 की ज़िंदगी के अलावा कई और शामिल हैं। स्ट्रीट सिंगर का एक गाना बाबुल मोरा कैमरे के सामने लाइव फिल्माया गया था। सहगल की सफलता को देखते हुए, सागर मूवीटोन ने सुरेंदर को सहगल के मुकाबले में मैदान में ला खड़ा किया। सुरेंद्र पहले से ही अपनी गायिकी के लिये काफी मशहूर थे। पर सहगल के सामने वो भी ख़ड़े नहीं हो सके।
1940 में कुंदन सहगल मुंबई आ गए, और रंजीत मूवीटोन के साथ काम करना शुरू कर दिया। 1942 में बनी सूपरदास और 1943 में बनी तानसेन उनकी बड़ी हिट फिल्में साबित हुईं। 1944 में मेरी बहन के लिये काम करने के लिये वापस न्यू थियेटर का रुख किया कुंदन सहगल ने। फिल्म जबदस्त हिट हुई, और सबसे ज्यादा इसके गाने लोगों को पसंद आ गए। फिल्म के 2 नैना मतवारे और क़ातिब-ए-त़क़दीर मुझे इतना बता दे सबसे बड़े हिट के तौर पर सामने आए। इस वक्त तक आते आते शराब ने सहगल को बुरी तरह से जकड़ लिया ।डॉक्टरों ने उनसे ये तक कह दिया कि गाना अगर उन्हें गाना है तो शराब छोड़ना होगा। उनकी सेहत लगातार खराब होती चली गई। और आखिरकार 1947 में 18 जनवरी को जलंदर में उनका निधन हो गया।
उनकी मौत से पहले उन्होंने हमें मेरे सपनों की रानी, ऐ दिल-ए-बेक़रार झूम, जब दिल ही टूट गया जैसे गाने तोहफे में दिये। 1947 में रिलीज़ हुई फिल्म परवाना सहगल की आखिरी मूवी थी। सहगल के गाने का जादू ऐसा था कि किशोर कुमार और औक मुकेश ने भी उनके जैसा गाने की कोशिश की अपने करियर के दौरान। ज़माना हो गया कुंदन सहगल को गए हुए पर उनके गाए गाने आज भी सुबह सुबह बज जाएं रेडियो पर तो लोग रुके बिना नहीं रह पाते।
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