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ओडिशा के हस्तशिल्प को नए मुकाम पर पहुंचा रहीं ये दो बहनें

ओडिशा के हस्तशिल्प को नए मुकाम पर पहुंचा रहीं ये दो बहनें

Wednesday October 31, 2018 , 5 min Read

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म कलाघर दस्तकारों के साथ काम करता है और उनके उत्पादों को सही बाजार मुहैया कराता है। ओडिशा के शिल्प बाजार पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए शिप्रा और मेघा ने 2016 में कलाघर (KalaGhar) की स्थापना की। यह एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है जो कि ‘arte util’ के कॉन्सेप्ट से प्रभावित है। ‘arte util’ का मतलब स्पैनिश में उपयोगी कला होता है।

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मेघा और शिप्रा का स्टार्टअप ढोकरा और सूखे फाइबर घास से बने उत्पादों पर केंद्रित है। इसमें ढेंकनाल, बाड़ीपाड़ा और बालिपाल जिले के कारीगार काम कर रहे हैं। अपने स्टार्टअप के माध्यम से वे बाजार की मांग और उत्पादन के बीच ज्ञान अंतर को कम कर रहे हैं। 

अगर आपको हस्तशिल्प और कला से जुड़ी चीजें पसंद हैं तो ओडिशा आपके लिए एकदम सही जगह है। यहां पिपिली के सजावटी काम से लेकर जटिल पैटर्न पट्टचित्र पेंटिंग्स, नाजुक चांदी की रस्सी वाली ज्वैलरी, परखेलमुंडी की सींग का काम और आदिवासी ढोकरा की मूर्तियां बनती हैं। राज्य में इस काम में 1.3 लाख दस्तकार हैं, लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। इन्हीं चुनौतियों को दूर करने का काम कर रही हैं दो बहनें, शिप्रा और मेघा अग्रवाल।

शिप्रा कहती हैं, 'बडे़ प्रॉडक्शन हाउस अपने उत्पादों को बनाने के लिए आधुनिक व नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे लेकिन हस्तशिल्प उद्योग में तकनीक का आभाव है। सबसे पहले तो यह सेक्टर असंगठित है और इस वजह से यहां तकनीक नहीं पहुंच पाई है। इसीलिए ये सेक्टर बाकी के क्षेत्रों से मुकाबला करने में सक्षम नहीं है। मार्केटिंग सुविधाओं का आभाव, खराब बुनियादी ढांचा की वजह से यह क्षेत्र लकवाग्रस्त है।

इसलिए ओडिशा के शिल्प बाजार पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए शिप्रा और मेघा ने 2016 में कलाघर (KalaGhar) की स्थापना की। यह एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है जो कि ‘arte util’ के कॉन्सेप्ट से प्रभावित है। ‘arte util’ का मतलब स्पैनिश में उपयोगी कला होती है। अपनी पहल के माध्यम से ये दोनों बहनें ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के हस्तशिल्प उद्योग को नए उत्पाद विचारों और डिजाइनों के साथ पुनर्जीवित करने की जुगत में लगी हैं। इतना ही नहीं अपने काम को और ऊंचाई पर ले जाने के लिए उन्होंने मयूरभंज जिले की बारीपाड़ा जेल में सात दिनों की वर्कशॉप ली और कैदियों को भी इस पहल में शामिल किया। अभी ये 25 कारीगरों के साथ काम कर रही हैं, लेकिन आने वाले समय में वे 25 और कारीगरों को अपने साथ जोड़ेंगी।

शुरुआत

दरअसल शिप्रा और मेघा एक मारवाड़ी परिवार में पैदा हुई थीं इसलिए व्यापार तो उनके खून में ही था। लेकिन दोनों बहनें कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जिसका सामाजिक प्रभााव भी पड़े। काफी वक्त पहले मेघा 'मिलाप' नाम के एक संगठन के साथ काम कर रही थीं जो कि सूक्ष्म ऋण उपलब्ध कराने वाला स्टार्टअप है। यहां काम करने के दौरान उन्हें ग्रामीण महिलाओं और स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की समस्याओं के बारे में पता चला। जब दोनों बहनों ने मिलकर बात की तो उन्हें सभी स्वयं सहायता समूह, एनजीओ और कारीगरों को एक साथ जोड़ने का विचार आया।

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मेघा कहती हैं, 'ओडिशा एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य है और यहां देश की सबसे पुरातन कलाएं अभी भी जीवित हैं। हम यहीं पले बढ़े और इसलिए हमें राज्य की संस्कृतियों के बारे में बारीकी से पता है। इससे हमें अपनी आपूर्ति श्रंखला के भीतर एक पारदर्शी प्रतिक्रिया मिलने में फायदा हो जाता है।'

मेघा और शिप्रा का स्टार्टअप ढोकरा और सूखे फाइबर घास से बने उत्पादों पर केंद्रित है। इसमें ढेंकनाल, बाड़ीपाड़ा और बालिपाल जिले के कारीगार काम कर रहे हैं। अपने स्टार्टअप के माध्यम से वे बाजार की मांग और उत्पादन के बीच ज्ञान अंतर को कम कर रहे हैं। अनुसंधान और गुणवत्ता नियंत्रण के माध्यम से, वे हस्तशिल्प अनुभाग में मानकीकरण ला रही हैं। इतना ही नहीं वे भुगतान की समस्या को भी दूर कर रही हैं। उनका मुख्य मकसद गुणवत्तापूर्ण उत्पादों को बनाना है न कि अधिक संख्या में उत्पादों को बनाना।

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हालांकि ओडिशा में और भी कई स्टार्टअप हैं जो हस्तशिल्प कला के लिए काम कर रहे हैं इनमें MITHILAsmita, iTokri, और Thoomri का नाम लिया जा सकता है। लेकिन ये सिर्फ कलाकारों को ग्राहक तक पहुंचाने का काम करते हैं, वहीं KalaGhar मार्केटिंग की समस्या को दूर करने के साथ उनके उत्पादों को भी बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहा है। शिप्रा बताती हैं, कि वे उत्पाद को अच्छा बनाने में इसलिए ध्यान लगाती हैं ताकि वे दूसरों से बेहतर कर सकें। कलाघर सिंधु घाटी सभ्यता के वक्त की कला को पुनर्जीवित करने का भी काम कर रहा है।

आमतौर पर हस्तशिल्प को ओडिशा के आदिवासियों के लिए मनीप्लांट की संज्ञा दी जाती है। आदिवासी समाज के लोग सबाई घास से अच्छी गुणवत्ता की कलाकारी कर दिखाते हैं और नए उत्पादों का निर्माण करते हैं। बताया जाता है कि ये कला 5000 साल पुरानी है। शिप्रा कहती हैं, 'हमें काफी अच्छा लगता है ये जानकर कि सरकार भी हमारे प्रयास को प्रोत्साहित कर रही है और कैदियों के साथ हमारे काम को बढ़ावा दे रही है।' दोनों बहनों को उम्मीद है कि ये कला आने वाले समय में ओडिशा को एक नए मुकाम तक ले जाएगी।

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