भारत में अधिकतर स्टार्टअप क्यों हो जाते हैं फेल, मिल गया है बड़ा कारण
वर्तमान की बात करें तो बीते एक हफ्ते में ही भारत में 6 स्टार्टअप्स को यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर से अधिक की वैल्यूएशन वाले स्टार्टअप) का तमगा हासिल हुआ है
ऐसा अधिकतर देखने को मिलता है कि भारतीय स्टार्टअप्स फंडिंग स्कोर करने पर अधिक ध्यान लगाते हैं जबकि उनका ध्यान उनके ग्राहको से इस दौरान फिसल सा जाता है। फंडिंग जुटाना कॉम्पटीशन में बने रहने के लिए बेहद जरूरी हो सकता है, लेकिन कंपनी ग्राहक के बल पर आगे बढ़ती है। आइये जानें, ऐसी ही उन तमाम बातों के बारे में जो बनती हैं स्टार्टअप्स के फेल होने की सबसे बड़ी वजह...
बीते साल सामने आए आईबीएम इंस्टीट्यूट फॉर बिजनेस वैल्यू और ऑक्सफोर्ड इकनॉमिक्स के अध्ययन के अनुसार भारत में करीब 90 प्रतिशत स्टार्टअप पाँच सालों के भीतर ही फेल होकर बंद हो जाते हैं। गौरतलब है कि बीते एक दशक से अधिक समय के बीच भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में अप्रत्याशित बूम देखने को मिला है।
वर्तमान की बात करें तो बीते एक हफ्ते में ही भारत में 6 स्टार्टअप्स को यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर से अधिक की वैल्यूएशन वाले स्टार्टअप) का तमगा हासिल हुआ है, लेकिन इसके बावजूद उन स्टार्टअप्स की सख्या इससे कहीं अधिक है जो इस समय आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं या जो बंद होने की कगार पर खड़े हैं।
रिपोर्ट क्या कहती है?
बीते साल मार्च में सामने आई स्टार्टअप वैल्यूएशन पर KPMG की रिपोर्ट के अनुसार देश में बड़ी संख्या में स्टार्टअप के फेल होने की कुछ वजहें बेहद कॉमन हैं। रिपोर्ट के अनुसार इसमें से 14 प्रतिशत स्टार्टअप अपने औसत प्रॉडक्ट, कमजोर बिजनेस मॉडल और मार्केटिंग की कमी के चलते फेल हो रहे हैं, जबकि 19 प्रतिशत स्टार्टअप कंपटीशन, 23 प्रतिशत स्टार्टअप सही टीम की कमी और 29 प्रतिशत स्टार्टअप पैसे की कमी के चलते फेल हो रहे हैं।
इन सब से अलग कोरोना महामारी ने जो स्टार्टअप का बुरा हाल किया है सो अलग। महामारी के दौरान एक ओर जहां स्टार्टअप के पास पैसों की तंगी हुई वहीं दूसरी ओर उनके राजस्व में भी 80 प्रतिशत तक की कमी दर्ज़ की गई। इस स्थिति में इन स्टार्टअप्स के लिए यह सब एक बेहद बुरे सपने जैसा है।
कौन से चैलेंज हैं सामने?
स्टार्टअप्स के सामने कुछ चुनौतियाँ हैं और आगे बढ़ने के लिए इन स्टार्टअप्स के जरूरी है कि वो इन चुनौतियों से पार पा लें। भारत में अधिकतर स्टार्टअप्स सही टैलेंट को हायर करने में फेल होते नज़र आ रहे हैं, इसी के साथ वह अपने उत्पाद या सेवा की मांग को भी बाज़ार बढ़ा या बरकरार नहीं रख पा रहे हैं। ये स्टार्टअप्स मुनाफे से भी कोसों दूर हैं, जबकि कस्टमर रिटेन्शन (ग्राहक को बरकरार रखना) और फंडिंग का ना मिलना भी बड़ी चुनौतियों में शामिल हैं।
कई बार यह देखा गया है कि भारतीय स्टार्टअप्स फंडिंग स्कोर करने पर अधिक ध्यान लगाते हैं जबकि उनका ध्यान उनके ग्राहको से इस दौरान फिसल सा जाता है। फंडिंग जुटाना कंपटीशन में बने रहने के लिए बेहद जरूरी हो सकता है, लेकिन कंपनी तो ग्राहकों के बल पर ही आगे बढ़ सकती है।
नकल भी हो सकती है घातक
भारत में कई स्टार्टअप फाउंडर ऐसे बिजनेस मॉडल की नकल करने की कोशिश करते हैं जो विदेशी बाज़ारों में सफल होता है, हालांकि भारतीय बाज़ार को देखते हुए यह कहना हर बार सही नहीं हो सकता है कि वह बिजनेस मॉडल यहाँ भी काम कर जाएगा।
इस तरह से आगे बढ़ने वाले स्टार्टअप्स के साथ देखा गया है कि वह शुरुआती निवेश का इंतजाम कर लेते हैं, लेकिन कुछ ही समय बाद उनके लिए ग्राहकों को अपने प्रॉडक्ट या सेवा के साथ जोड़े रख पाना मुश्किल होता जाता है। इसका मुख्य कारण यह हो सकता है कि उन सेवाओं या प्रॉडक्ट का दायरा विदेशी बाज़ार की तुलना में भारत में सीमित हो।
Edited by Ranjana Tripathi