ग्रीन हाइड्रोजन: फायदे तो हैं लेकिन नुकसान भी न किये जाएं नज़रअंदाज़
हरित भविष्य के लिए हाइड्रोजन एनर्जी की अहमियत हर दिन बढ़ती ही जा रही है. ईंधन स्रोत के रूप में हाइड्रोजन की चर्चा दशकों से हो रही है, लेकिन अब इस तकनीक को उपयोग में लाते हुए कई प्रयास किये जा रहे हैं.
ग्रीन हाइड्रोजन ही क्यों?
दुनिया भर की कई कंपनियां, निवेशक, सरकारें और पर्यावरणवादी मानते हैं कि यह एक ऐसा ऊर्जा स्रोत है जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को खत्म करने में मददगार साबित होगा और दुनिया को और गर्म होने से बचाएगा. आज हमारे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली बिजली का ज्यादातर हिस्सा थर्मल एनर्जी प्लांट में पैदा होता है. बिजली पैदा करने की यह पूरी प्रक्रिया कोयले पर निर्भर होती है. ऐसे में हाइड्रोजन क्लीन एनर्जी का भंडार भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के लिए काफी उम्मीद जगाती है.
ऐसे में भारत सरकार ने देश को हाइड्रोजन पावर बनाने के लिए नई ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी (Green Hydrogen Policy) बनाई है, जिसका देश के उद्योगपतियों ने खुलकर स्वागत किया है. नई पॉलिसी के तहत 2030 तक 50 लाख टन हाइड्रोजन बनाने की योजना है, जिसके तहत कई इंसेंटिव भी दिए जाएंगे.
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन?
जब पानी से बिजली गुजारी जाती है तो हाइड्रोजन पैदा होती है. अगर हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली किसी रिन्यूएबल सोर्स से आती है, मतलब ऐसे सोर्स से आती है जिसमें बिजली बनाने में प्रदूषण नहीं होता है तो इस तरह बनी हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है. अब एक बड़ा सवाल ये है कि आखिर ग्रीन हाइड्रोजन की जरूरत पड़ी क्यों?
हाइड्रोजन का उत्पादन घरेलू स्रोतों जैसे कि प्राकृतिक गैस, नाभिकीय ऊर्जा, बायोमास और सौर एवं पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों से हो सकता है. ये क्षमताएं ही हाइड्रोजन को परिवहन और बिजली उत्पादन का एक आकर्षक विकल्प बनाती हैं और इसीलिए आज हम ग्रीन हाइड्रोजन को एक ऐसे विकल्प के रूप में देख पा रहे हैं जिसमें कई समस्याएं सुलझाने की क्षमता है.
क्या हो सकते हैं नुकसान?
ग्रीन हाइड्रोजन के तमाम फायदे हैं, लेकिन अगर इसे बिना प्लानिंग के इम्प्लीमेंट किया गया तो नुकसान कहीं गुणा ज्यादा होगी. क्योंकि ऐसे प्रोजेक्ट्स के साथ लोगों की सुरक्षा का रिस्क और अर्थव्यवस्था का रिस्क भी होता है. बात अगर सुरक्षा की करें तो हाइड्रोजन बहुत अधिक ज्वलनशील होती है. यानी अगर डीजल-पेट्रोल का टैंक लीक हो जाए तो वह जमीन पर फैल जाएगा, लेकिन हाइड्रोजन टैंक में एक छोटी सी चिंगारी या लीक का अंजाम भयानक हो सकता है. मानव इतिहास ने ऐसी हादसों की कई त्रासदियां झेली हैं. 1986 में चर्नोबिल परमाणु दुर्घटना ने भी हजारों लोगों की जान ले ली थी. साल 2011 में जापान में फुकुशिमा स्थित दायची के न्यूक्लियर प्लांट के रिऐक्टर में हाइड्रोजन विस्फोट होने के बाद फिर सूनामी का खतरा पैदा हो गया था. फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में यह दूसरा ब्लास्ट था. इस ब्लास्ट में ब्लास्ट में 11 लोगों घायल हुए थे और 7 लोग लापता थे. हाइड्रोजन विस्फोट की घटना से पहले 22 लोगों पर विकिरण का असर होने की पुष्टि भी की गयी थी.
इसके अलावा, इस बात को लेकर भी पर्याप्त रीसर्च नहीं हुई है कि हाइड्रोजन लीकेज ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा सकता है, और अगर पर्यावरण में हाइड्रोजन है तो इसका सीधा असर मीथेन और दुसरे ग्रीनहाउस गैसेस का पर्यावरण में बने रहने पर पड़ सकता है.
ग्रीन हाइड्रोजन पर जिस तरह सरकार उत्सुकता दिखा रही है, उससे एक बात तो साफ है कि सरकार को तमाम बड़ी कंपनियों को भारी सब्सिडी देनी होगी. ऐसे में अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ेगा, लेकिन अगर ग्रीन हाइड्रोजन पर खेला गया दाव सही निशाने पर लगा तो इकनॉमी में बड़ा बूम आएगा, लेकिन अगर यह सफल नहीं रहा तो अर्थव्यवस्था को गंभीर चोट पहुंचेगी.