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गांव की बेहतरी के लिए इस दलित नेता ने छोड़ दी अपनी सरकारी नौकरी

एक दलित नेता की कहानी, जिसने गांव को बदलने के लिए छोड़ दी थी सरकारी नौकरी

गांव की बेहतरी के लिए इस दलित नेता ने छोड़ दी अपनी सरकारी नौकरी

Monday November 27, 2017 , 4 min Read

रंगास्वामी के नेतृत्व में सन 2000 में 50 घरों की एक कॉलोनी बसाई गई। हर घर में दो अलग- अलग क्वॉर्टर थे। इस कॉलोनी की खासियत थी कि यहां हर घर में एक क्वॉर्टर में दलित परिवार रहता था तो वहीं दूसरे में गैर दलित परिवार। 

रंगास्वामी (फाइल फोटो)

रंगास्वामी (फाइल फोटो)


12 नवंबर 1960 को जन्में रंगास्वामी पहले ऑयल इंडिया में इंजिनियर के तौर पर सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन गांव पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। 

उन्होंने गांव में ही कई सारी संस्थाओं की स्थापना करवाई। उनका मानना है कि पंचायत नेता देश में और ज्यादा सशक्त हो सकते हैं। इसके लिए उन्होंने प्रधानों का एक नेटवर्क बनाया और पंचायत अकादमी की स्थापना भी की।

जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी गांवों को सशक्त करने के इरादे से देश में पंचायती राज को लागू कर रहे थे तभी तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले के कुठंबकम गांव में एक युवा व्यक्ति उनकी बातों को गंभीरता से ले रहा था। आज वह इंसान 57 साल का हो गया है और उसने उस पंचायती राज के सपने को साकार कर अपने गांव की तकदीर ही बदल दी है। रंगास्वामी के गांव में पहले जहरीली शराब की वजह से गरीबी और स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएं थीं। शराब की समस्या सबसे ज्यादा गांव के दलित परिवारों में थी। गांव की 50 फीसदी आबादी भी दलितों की ही थी। लेकिन रंगास्वामी ने अपनी सोच और सच्ची लगन से पूरे गांव को सुधार दिया।

रंगास्वामी के नेतृत्व में सन 2000 में 50 घरों की एक कॉलोनी बसाई गई। हर घर में दो अलग- अलग क्वॉर्टर थे। इस कॉलोनी की खासियत थी कि यहां हर घर में एक क्वॉर्टर में दलित परिवार रहता था तो वहीं दूसरे में गैर दलित परिवार। इस कॉलोनी का नाम रखा गया था, 'समाथुवापुरम' जिसका मतलब होता है (बराबरी वाली जगह)। इस पहल की इतनी सराहना हुई कि तमिलनाडु सरकार ने बाद में इसे अपनाते हुए पूरे राज्य में लागू किया। रंगास्वामी ने एसी कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग से केमिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई की है।

12 नवंबर 1960 को जन्में रंगास्वामी पहले ऑयल इंडिया में इंजिनियर के तौर पर सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन गांव पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में संसद में 73वें संशोधन के जरिए देश में पंचायती राज को लागू किया गया। उसी ऐक्ट के आधार पर 1996 में पहली बार पंचायत के चुनाव हुए। इसी साल रंगास्वामी ने चुनाव लड़ा और गांव में तीन चौथाई बहुमत के साथ जीत भी हासिल की। वे अपने गांव के पहले प्रधान बने।

देश में नए कानून के आने से उन्हें समाज में बदलाव करने का पूरा अधिकार मिला। उन्होंने अपनी ग्राम सभा में होने वाले कार्यों को पूरी तरह से पारदर्शी रखा। उन्होंने शराब की वजह से होने वाली सामाजिक कलह पर अंकुश लगाया और समाज में सामाजिक समरसता स्थापित करने पर जोर दिया। उन्होंने गांव में ही कई सारी संस्थाओं की स्थापना करवाई। उनका मानना है कि पंचायत नेता देश में और ज्यादा सशक्त हो सकते हैं। इसके लिए उन्होंने प्रधानों का एक नेटवर्क बनाया और पंचायत अकादमी की स्थापना भी की। इस अकादमी में प्रधानों को प्रशिक्षित किया जाता है। अभी तक कुल 700 ग्राम प्रधानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

रंगास्वामी बताते हैं, 'सिर्फ अकेले तमिलनाडु में मैंने निजी तौर पर 1,000 ईमानदार और सफल प्रधानों को चिह्नित किया है। हमने इन सभी प्रधानों का एक नेटवर्क बनाया ताकि जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद कर सकें। यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। दूसरे राज्यों के प्रधानों को भी हम जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।' वे कहते हैें कि भारत में लगभग 6 लाख ग्राम पंचायतें हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही आदर्श हैं। उनका मानना है कि देश में अधिक से अधिक आदर्श ग्राम पंचायतों की जरूरत हैं। 

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