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15 की उम्र में एनजीओ, 21 की उम्र में 48 हजार कि.मी. का सफर, मक्सद - समाज सुधार

21 साल में 48 हजार किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं आकाश।- अपने एनजीओ द गोल्डन बर्ड के माध्यम से कर रहे हैं बच्चों को शिक्षित और महिलाओं को बना रहे हैं आत्मनिर्भर।- पर्यावरण की दिशा में भी कुछ ठोस करने का रखते हैं इरादा।

15 की उम्र में एनजीओ, 21 की उम्र में 48 हजार कि.मी. का सफर, मक्सद - समाज सुधार

Thursday January 14, 2016 , 5 min Read

अक्सर कहा जाता है कि किसी का दर्द हम तभी बहुत गहराई से महसूस कर पाते हैं जब हम खुद उस दर्द से गुजरे होते हैं। यह बात सही भी है। किसी के दर्द व दुख में सहानुभूति रखना अलग बात होती है और किसी के दर्द को उसी फील के साथ महसूस करना अलग बात है। आकाश मिश्रा जोकि अब आकाश रानी सन के नाम से जाने जाते हैं के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। आकाश का बचपन गरीबी में बीता इसलिए वे उस गरीबी के दर्द को बहुत गहराई से समझते हैं। इसी दर्द ने उन्हें गरीब बच्चों व जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रेरित किया।

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आकाश अक्सर कहीं न कहीं की यात्रा पर होते हैं। भारत और भूटान में अब तक वे कुल 18 हजार किलोमीटर साइकिल यात्रा कर चुके हैं और अब तक वे कुल 48 हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। भारत और भूटान के लगभग 80 शहरों की यात्रा कर चुके आकाश का यह सफर सन 2013 से शुरु हुआ। आकाश 'द गोल्डन बर्डÓ फाउंडेशन जोकि एक एनजीओ है के संस्थापक और सीईओ हैं। यह एनजीओ गरीब व जरूरतमंद बच्चों के लिए, महिला शक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है। आकाश के अनुभवों को देखते हुए उन्हें कई संस्थाओं से अपने अनुभव शेयर करने के लिए बुलावा आता है। इसके अलावा आकाश एक ग्राफिक डिज़ाइनर इंजीनियर और तकनीक के शौकीन भी हैं। इसके अलावा उन्होंने सर्टिफाइड एथिकल हैकर के रूप में भी राजस्थान सरकार के साथ काम किया है। जब आकाश 15 साल के थे तब उन्होंने अपने एनजीओ की नीव रखी और अब वे 21 वर्ष के हो चुके हैं। एक बार आकाश अकेले चेन्नई से बैंगलोर की साइकिल यात्रा पर गए और यात्रा के अंत में उन्होंने अपना सरनेम बदल दिया। वे आकाश मिश्रा से आकाश रानी सन हो गए। वे अपने पिता और परिवार से कभी भी करीब नहीं थे लेकिन अपनी मां रानी के बहुत ज्यादा करीब हैं उनकी मां ने अकेले ही उन्हें बड़ी कठिनाईयों से पाला। इसलिए उन्होंने अपना नया सरनेम खुद बना दिया।

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बचपन से ही आकाश को घूमने का बहुत शौक रहा। जब आकाश 14 साल के थे तब उनकी कंप्यूटर की पढ़ाई करने की इच्छा हुई लेकिन आर्थिक हालात ठीक न होने की वजह से उस समय उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। इस घटना ने उन्हें यह सोचने का मौका दिया कि आखिर क्यों गरीबी के कारण उनके जैसे गरीब बच्चे बेसिक चीजें भी नहीं सीख पाते। जबकि कुछ नया सीखने पर सबका हक होना चाहिए। क्या इंसान की रुचियां उसके आर्थिक हालात पर निर्भर होनी चाहिए? और उन्होंने तय किया कि वे अपनी ओर से ऐसे प्रयास करेंगे जिससे इस धारणा को बदला जा सके। स्वामी विकेकानंद के विचारों ने भी आकाश को बहुत प्रभावित किया, उन्हें शक्ति दी। आकाश ने तक किया कि वे गरीब बच्चों के लिए सहारा बनकर खड़े होंगे। उनकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करेंगे। आकाश का उद्देश्य साफ था। गरीब बच्चों के सपनों को पूरा करने के दौरान आने वाली बाधाओं को दूर करना। इस सोच ने जन्म दिया 'द गोल्डन बर्डÓ फाउंडेशन को। जिसका उद्देश्य गरीब बच्चों को शिक्षा देना है। उस समय आकाश मात्र 15 साल के थे इस वजह से भी लोगों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। आकाश का मजाक भी बना।

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इस समय तक आकाश के पास न तो पैसा था, न ही कोई स्थाई इनकम और न ही किसी का सहयोग ही उन्हें मिल रहा था। एनजीओ चलाने के लिए कई कानूनी औपचारिकताओं की भी जरूरत होती है लेकिन अभी उनका साथ देने के लिए कोई नहीं था। आकाश बताते हैं कि नौकरी करके पैसा कमाने के अलावा अभी मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। एक इटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी तिकोना के साथ वे जुड़े सेल्स मैन की नौकरी की। यह काम बहुत मुश्किल रहा क्योंकि लोग बात सुनने से पहले ही अपना दरवाजा बंद कर देते थे लेकिन आकाश ने हार नहीं मानी और वे लगे रहे। इस नौकरी से उन्होंने थोड़ा बहुत पैसा जमा किया।

सन 2011 में वे अकेले दिल्ली आ गए। यहां आकर आकाश ने अपने एनजीओ का पंजीकरण कराया और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज आकाश एक सफल सामाजिक उद्यमी हैं। वे यात्राएं करते हैं और ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करते हैं। आकाश ने बीबीए किया है। वे कहते हैं जब भी वे यात्राएं करते हैं वे कुछ नया खोजते हैं और यह चीज़ उन्हें और नए नए काम करने के लिए जागृत करती हैं। इन यात्राओं ने उन्हें बहुत अच्छा अनुभव दिया और वे देश में काफी लोगों से मिले। लोगों की असल समस्याओं को देखने समझने का मौका मिला। आकाश सोशल इंटरप्रेन्योरशिप में मास्टर्स करना चाहते हैं।

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आकाश बताते हैं कि अपनी इन यात्राओं में वे अपना खर्च बहुत कम रखते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा घन एकत्र हो सके। अब उन्हें कुछ निवेशक भी मिलने लगे हैं जिनकी मदद से वे जरूरतमंद बच्चों के लिए पैसा एकत्र कर पा रहे हैं। आकाश बताते हैं कि शुरु में जब मैं साइकिल लेकर दूर पहाड़ों में निकल जाता था तब मेरी मां मेरे इन कामों से खुश नहीं थी। लेकिन अब मां को समझ आ गया है कि मैं यह सब क्यों करता हूं। भविष्य आकाश टैवल कंपनियों से जुड़कर काम करना चाहते हैं और अपने एनजीओ के माध्यम से उनके साथ जुड़कर समाज के लिए बहुत कुछ करना चाहता हैं। बच्चों के लिए एजुकेशन और महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ आकाश पर्यावरण के क्षेत्र में अपने कामों को विस्तार देना चाहते हैं।

आलेख- स्निग्धा सिन्हा

अनुवादक- आशुतोष खंतवाल