अमेरिका के बाद कनाडा में भी जातिगत भेदभाव के खिलाफ उठी आवाज, स्कूल बोर्ड बनाएगा कानून
टोरंटो का स्कूल बोर्ड कनाडा में पहला ऐसा स्कूल बन गया है जिसने शहर के स्कूलों में जातिगत भेदभाव को पहचाना है और इस मुद्दे को हल करने के लिए एक रूपरेखा बनाने में मदद करने के लिए एक प्रांतीय मानवाधिकार निकाय को कहा है.
भारत में पैदा हुए और फले-फुले जातिवाद ने विदेशों में भी इस कदर अपनी पैठ बना ली है कि अब वहां इस पर रोक लगाने के लिए सरकारों को आगे आकर कानून बनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. अमेरिका के बाद कनाडा में भी जातिगत भेदभाव के मामले देखे जाने के बाद वहां इस पर रोक लगाने की तैयारी की जा रही है.
दरअसल, टोरंटो का स्कूल बोर्ड कनाडा में पहला ऐसा स्कूल बन गया है जिसने शहर के स्कूलों में जातिगत भेदभाव को पहचाना है और इस मुद्दे को हल करने के लिए एक रूपरेखा बनाने में मदद करने के लिए एक प्रांतीय मानवाधिकार निकाय को कहा है.
टोरंटो के स्कूलों में जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए डिस्ट्रिक्ट स्कूल बोर्ड की ट्रस्टी यालिनी राजकुलासिंगम ने बुधवार को एक प्रस्ताव पेश किया, जिसके पक्ष में बहुमत सदस्यों ने मतदान किया. सोलह ट्रस्टियों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और पांच ने इसके खिलाफ मतदान किया. यह कदम क्षेत्र के दक्षिण एशियाई समुदाय, विशेष रूप से भारतीय और हिंदू समुदायों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करता है.
राजकुलासिंगम ने कहा कि यह प्रस्ताव विभाजन के बारे में नहीं है, यह उपचार करने और समुदायों को सशक्त बनाने और उन्हें सुरक्षित स्कूल प्रदान करने के बारे में है, जिसके छात्र हकदार हैं. इसके साथ ही, राजकुलासिंगम ने कनाडा के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत ओंटारियो के मानवाधिकार आयोग और टोरंटो के स्कूल बोर्ड के बीच साझेदारी का आह्वान किया.
अमेरिका में बन रहे हैं कानून
बता दें कि, कुछ हफ्तों पहले ही अमेरिकी शहर सिएटल ने जाति के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाया और इसके साथ ही वह ऐसा करने वाला पहला अमेरिका शहर बन गया था.
सिएटल सिटी काउंसिल द्वारा मंजूर किए गए अध्यादेश के मुताबिक अब नस्ल, धर्म और लैंगिक पहचान के साथ-साथ जाति के आधार पर भी किसी भी तरह के भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया गया है. साथ ही जातिगत श्रेणियों के आधार पर वंचित जाति समूहों को एक संरक्षित वर्ग के रूप में रेखांकित किया गया है.
वहीं, पिछले साल दिग्गज अमेरिकी टेक कंपनी
दुनिया की पहली ऐसी कंपनी बन गई, जिसनेकंपनी में जातिगत भेदभाव पर पाबंदी लगा दी. एप्पल ने अमेरिका में अपने मैनेजरों और कर्मचारियों को जाति को लेकर ट्रेनिंग भी देना शुरू कर दिया है ताकि वे कंपनी की नई नीति को बेहतर तरीके से समझ सकें.क्या है जातिगत भेदभाव?
बता दें कि, भारत की जाति व्यवस्था सामाजिक भेदभाव के दुनिया के सबसे पुराने रूपों में से एक है. हजारों सालों से मौजूद जाति व्यवस्था कुछ खास जाति के लोगों को विशेष अधिकार देती है और समाज के वंचित तबकों का दमन करती है. दलित समुदाय हिंदू जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर है और उन्हें "अछूत" माना जाता है.
70 साल पहले भारत में जातिगत भेदभाव को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था, फिर भी आज भी जाति व्यवस्था ने समाज से लेकर सिस्टम में अपनी गहरी पैठ बना रखी है. हाल के वर्षों में कई अध्ययनों के अनुसार, तथाकथित निम्न जातियों के लोगों को उच्च वेतन वाली नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व मिला.
भले ही भारत ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगा दिया है, फिर भी पूरे देश में दलितों को बड़े पैमाने पर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है, जहां सामाजिक उत्थान के उनके प्रयासों को कई बार हिंसक रूप से दबा दिया गया है.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जातिगत भेदभाव, नस्लवाद जैसे भेदभाव के अन्य रूपों से अलग नहीं है और इसलिए इसे गैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए.