पिता को खोने के बाद बेघरों की मदद कर दिल्ली को सुंदर बना रहे इर्तिजा कुरैशी
देश दुनिया के बड़े संस्थानों द्वारा जारी की जाने वाली रिपोर्टों में देश की राजधानी दिल्ली को सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार किया जाता है। किसी भी शहर को साफ-सुथरा रखने के लिए वहां की सरकार और प्रशासन के साथ-साथ नागरिकों का भी अहम योगदान होता है। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि सरकार और जनता दोनों प्रदूषण को लेकर गंभीर नहीं दिखते। हालांकि कई ऐसे संगठन और जागरूक नागरिक हैं जो अपने स्तर पर दिल्ली को साफ करने के प्रयासों में लगे हैं। ऐसा ही एक संगठन है 'मरहम' जिसकी स्थापना दो साल पहले इर्तिजा कुरैशी ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर की थी।
पुरानी दिल्ली की गलियां काफी संकरी और तंग हैं। यहीं पर कटरा गोकुलशाह इलाके में आप पहुंचेंगे तो आपको कचरे के ढेर और गंदगी से बजबजाती नालियां नहीं बल्कि घरों पर लटके पौधों के गमले और उनसे आती खुशबू महसूस होगी। आज यह पूरी सड़क साफ-सुथरी और रंग-बिरंगी नजर आती है। इसका पूरा योगदान जाता है 'मरहम' और उसके संस्थापक सदस्यों को। गली में ही दुकान रखने वाले मोहसिन रज़ा कहते हैं, 'अब इस गली में आने पर आपको अपनी नाक नहीं बंद करनी पड़ेगी।'
'मरहम' के संस्थापक सदस्यों में इर्तिजा कुरैशी, वकार अहमद, अनाम हसन और सदिया सैयद शामिल हैं। ये पहाड़ी इमली इलाके में स्थित लाइब्रेरी से अपना संगठन चलाते हैं। पहले 'मरहम' की शुरुआत बेघरों की मदद करने के उद्देश्य से शुरू हुई थी। लेकिन बाद में ग्रुप के सदस्यों ने साफ-सफाई पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया और आज नतीजा सामने है। 'सफाई आधा ईमान है' नाम से पहल को शुरू किया गया और गलियों, दुकानों और मकानों पर इस बात को लिखा भी गया ताकि लोगों में जागरूकता लाई जा सके।
इर्तिज़ा कुरैशी बताते हैं कि जब उन्होंने सड़कों, नालियों को साफ करने और दीवारों को रंगकर उन पर अच्छी बातें लिखने का काम शुरू करने की योजना बनाई तो लोगों ने उन्हें पागल करार दे दिया था। लेकिन कटरा गोकुलशाह इलाके में उनके काम को देखकर आज वही लोग उनकी तारीफें करते नहीं थकते। इर्तिजा अभी दूसरे इलाके में ऐसे ही काम कर रहे हैं।
'मरहम' ग्रुप में शामिल लोग अलग-अलग बैकग्राउंड से आते हैं और सबकी उम्र 20 से 30 के बीच में है। इर्तिजा कुरैशी पहले अमेरिकन एक्सप्रेस में नौकरी करते थे, सैयद एक थियेटर कलाकार हैं, अहमद बिजनेस चलाते हैं तो वहीं हसन राजीव गांधी फाउंडेशन से जुड़कर काम करते हैं। वे बताते हैं कि पहले जिस गोकुलशाह इलाके में लोग अपनी बेटियों की शादी करने से डरते थे वहीं अब साफ-सफाई के बाद प्रॉपर्टी की कीमतों में काफी उछाल आ गया है।
अब यह गली काफी सुंदर दिखने लगी है। घरों की दीवारों को पेंट कर दिया गया है। नालियां लगभग साफ हैं। रास्ते में चलते हुए घरों पर लटके वर्टिकल गार्डेन दिख जाएंगे और लोग भी साफ-सफाई का काफी ध्यान रखते हैं। इसीलिए हर घर के पास में कूड़ेदान भी दिख जाएगा। इर्तिजा कुरैशी का मानना है कि सिर्फ नगर निगम प्रशासन की बदौलत शहर साफ नहीं रह पाएगा इसके लिए वहां रहने वाले लोगों को भी अपनी आदतें बदलनी होंगी और पूरा सहयोग देना होगा।
आज दूसरों की मदद करने के लिए हरदम तैयार रहने वाले इर्तिजा की कहानी प्रेरणा देने वाली है। 2005 की बात है जब उनके पिता कहीं चले गए और फिर कभी वापस नहीं मिले। काफी खोजबीन करने के बाद जब घरवाले थक गए तो उन्होंने उन्हें खोजना बंद कर दिया। 2012 में इर्तिजा से किसी ने कहा कि हो सकता है कि उनका एक्सिडेंट हो गया हो या वे अपनी याददाश्त खो बैठे हों। इसके बाद उन्होंने बेसहारों के ठिकानों पर अपने पिता को खोजना शुरू किया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने बेघरों की सेवा करनी शुरू कर दी जो अब तक जारी है।
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