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उम्र सिर्फ़ 22 साल, इरादा है भारत में ऑर्गेनिक खेती के भविष्य को संवारने का

उम्र सिर्फ़ 22 साल, इरादा है भारत में ऑर्गेनिक खेती के भविष्य को संवारने का

Monday July 15, 2019 , 4 min Read

"केरल के रहने वाले सूरज ने ऐग्रीकल्चर में बीएससी की डिग्री ली है। उनके पास अपनी करीबन साढ़े चार एकड़ की ज़मीन है और वह पिछले 9 सालों से ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग कर रहे हैं। कमाल की बात तो ये है कि 22 वर्षीय सूरज बिना किसी केमिकल फ़र्टिलाइज़र या कीटनाशक के इस्तेमाल के विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियां, चावल और फल उगा रहे हैं।"



सूरज

सूरज पिछले 9 सालों से ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग कर रहे हैं



हम सभी स्वस्थ रहना चाहते हैं और ताज़े फल-सब्ज़ियां खाना चाहते हैं, लेकिन हम में से कितने लोग ऐसे हैं, जो पलभर ठहरकर यह सोचने की ज़हमत उठाते हैं कि हम जिन ऑर्गेनिक पदार्थों की खपत चाहते हैं, उनके उत्पादन की जिम्मेदारी कौन उठा रहा है और क्या मिलावट के इस बाज़ार में ऑर्गेनिक उत्पादों की उपलब्धता को बनाए रखने के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारी नहीं बनती। आइए जानते हैं, सूरज सीएस के बारे में, जिनकी उम्र महज़ 22 साल है, जो बिना किसी केमिकल फ़र्टिलाइज़र या कीटनाशक के इस्तेमाल के विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियां, चावल और फल आदि उगा रहे हैं, ताकि स्वस्थ रहने और ताज़े फल-सब्ज़ियां खाने की इच्छा रखने वालों की प्लेट तक ये उत्पाद पहुंच सकें।


सूरज केरल के वायनाड के रहने वाले हैं और उन्होंने ऐग्रीकल्चर विषय में बीएससी की डिग्री ली है। उनके पास अपनी करीबन साढ़े चार एकड़ की ज़मीन है और वह पिछले 9 सालों से ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग कर रहे हैं। वह कीटनाशकों के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ मुहिम भी चलाते हैं और अपने साथी किसानों को ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग और ईको-फ़्रेडली पेस्टिसाइड्स के महत्व के बारे में जागरूक भी करते हैं। 


एडेक्स लाइव के साथ बातचीत में सूरज ने कहा, "पौधों को विकास के लिए मुख्य रूप से माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की ज़रूरत पड़ती है। उन्हें पोटैशियम और फ़ॉस्फ़ोरस की भी आवश्यकता होती है, लेकिन इन्हें सिर्फ़ सॉल्यूशन के रूप में ही सोख सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए केमिकल फ़र्टिलाइज़र्स के स्थान पर माइक्रोऑर्गेनिज़म्स को मिट्टी में मिलाया जा सकता है। बहुत से लोगों का ऐसा मानना है कि फ़र्टिलाइज़र्स के इस्तेमाल से आसानी से अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है। दरअसल, हालात ही ऐसे पैदा कर दिए जाते हैं कि उनकी ऐसी मान्यता स्वाभाविक हो जाती है, लेकिन यह सच नहीं है। हमारे पास और भी बहुत से ऐसे विकल्प हैं, जो पर्यावरण को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाते।"




ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग की तरफ़ सूरज का रुझान बचपन से ही रहा है। जब वह सिर्फ़ 13 साल के थे, उन्हें अपनी माता जी से प्रेरणा मिली कि वह सिर्फ़ पानी का इस्तेमाल करते हुए टमाटर के बीज लगाएं और समय-समय पर खाद की आपूर्ति करते रहें। अपनी मां के बताए नुस्ख़ों पर चलते-चलते ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग उनका शौक़ और  पैशन बन गई। अपनी मां के अलावा, सूरज सुभाष पालेकर के भी समर्थक रहे हैं। सुभाष पालेकर ज़ीरो-बजट नैचुरल फ़ार्मिंग के प्रमोटर रहे हैं।  


सिर्फ़ 17 साल की उम्र में ही सूरज को कर्ष्का ज्योति पुरस्कार मिल चुका था और उन्हें बेस्ट स्टूडेंट फ़ार्मर का ख़िताब दिया गया था। यह पुरस्कार राज्य सरकार की ओर से दिया जाता है। इसके बाद सूरज ने फ़ेसबुक पेज बनाया और इसके माध्यम से स्वस्थ भोजन की प्रवृत्ति का प्रचार करना शुरू किया। 


तिरुवनंतपुरम फ़र्स्ट की रिपोर्ट्स के मुताबिक़, सूरज का कहना है, "जो आदमी अपनी खपत के लिए फल और सब्ज़ियां उगाता है, वह कोई ख़ास काम नहीं करता, लेकिन आमतौर पर ऐसा ही माना जाता है। इस बात से यह पता चलता है कि खेती के बारे में समाज में कितनी ग़लत अवधारणाएं हैं। हर आदमी अपने-अपने स्तर पर सहजता के साथ ऑर्गेनिक तरीक़ों से फल-सब्ज़ियां उगा सकता है।"


हाल में, सूरज अपने खेत में 50 से ज़्यादा क़िस्म के फल, 60 क़िस्म के मेडिसिनल प्लान्ट्स और तमाम क़िस्म की सब्ज़ियां उगा रहे हैं।