सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्री में नौकरी करते हुए तमिलनाडु में पानी की किल्लत को दूर करने में जुटा हुआ है यह शख़्स
तमिलनाडु के कई ज़िले लंबे समय से पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। ज़िलों के कुंए और झीलें लगातार सूखती जा रही हैं और बारिश की कमी भी दर्ज हो रही है। राज्य की राजधानी चेन्नई में तो सूखे जैसे हालात हैं। ऐसे हालात सिर्फ़ चेन्नई तक ही सीमित नहीं हैं। पिछले कुछ सालों से तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में भी पानी की समस्या लगातार बनी हुई है।
तमिलनाडु के रहने वाले 36 वर्षीय सर्वानन तियागराजन भी लंबे समय से अपने गांव कोली हिल्स में पानी की कमी की समस्या को झेल रहे थे। ऐसे हालात देखकर उन्होंने ख़ुद से ही जल संरक्षण की जिम्मेदारी उठाने का फ़ैसला लिया। 2017 में उन्होंने झीलों के जीर्णोद्धार के लिए वेक अवर लेक' की शुरुआत की। यह पानी के स्रोतों के संरक्षण, झीलों और उसके आस-पास वनस्पतियों को संजोने के लिए दिशा-निर्देश देता है। 'वेक अवर लेक' की वेबसाइट इस संबंध में एक पूरा फ़्लोचार्ट मौजूद है।
अपनी इस मुहिम के माध्यम से 36 वर्षीय सर्वानन तियागराजन लोगों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। उदाहरण के तौर पर, तमिलनाडु के तेनी नामक ग्रामीण ज़िले में, सर्वानन निकासी वाले पानी को पौधों को सींचने के इस्तेमाल करने का प्रचलन स्थापित करने के प्रयास में लगे हुए हैं।
एडेक्स लाइव के साथ अपनी इस मुहिम के विषय में बात करते हुए उन्होंने कहा, "इन सभी कामों के लिए निकासी वाले पानी को प्राकृतिक तरीक़ों से फ़िल्टर किया जाता है। हम तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में झीलों के साथ-साथ जंगलों के संरक्षण के लिए भी काम कर रहे हैं और अब धीरे-धीरे बेंगलुरु के कुछ इलाकों में भी हमने इस तरह के प्रयास शुरू किए हैं। "
सर्वानन बेंगलुरु में सॉफ़्टवेयर सेक्टर में काम करते हैं। हर सप्ताह के अंत में वह अपने गांव ज़रूर जाते हैं। 2017 में तमिलनाडु के नरसिमन काडु गांव में उन्होंने थेंड्रल लेक प्रोजेक्ट नाम से अपनी पहली लेक रिवाइवल परियोजना को अंजाम दिया था।
इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत अपनी कार्यप्रणाली के बारे में बात करते हुए उन्होंने लॉजिकल इंडियन को बताया, "मैंने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर पास की पहाड़ी से झील तक एक किमी. लंबी नहर खोदी। शुरुआत में किसानों को बहुत संदेह हो रहा था और सिर्फ़ 10-20 किसानों ने ही इस काम में हमारा सहयोग किया, लेकिन जब बरसात हुई और रातों-रात झील पानी से भर गई, उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हुआ।"
इसके बाद संगठन ने दूसरे प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी ली। इस बार उन्हें पंजपट्टी झील का संरक्षण करना था। जलीय खरपतवार की अधिकता की वजह से यह झील पूरी तरह से सूख गई थी। इस वजह से आस-पास की वनस्पतियों का विकास भी रुक गया था। सर्वानन के अनुसार, गांव वालों को प्रेरित करने में वह और उनकी टीम पूरी तरह से विफल रही। इसके बाद उनकी टीम ने खरपतवार को निकालने और उन्हें दूसरे कामों में इस्तेमाल में लाने के लिए एक ख़ास तरह की क्रॉलर मशीन लगाई।
इस तरह के कई बड़े प्रोजेक्ट्स पूरे करने के बाद सर्वानन अब लोगों को ख़ुद से इस दिशा में प्रयास करने के लिए जागरूक होने की आशा कर रहे हैं। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस (आईआईएससी) के साथ भी करार कर रखा है। आईआईएससी के सहयोग से 'वेक अवर लेक' बंजर ज़मीनों में हरियाली बढ़ाने के लिए बीज (सीड बॉल्स) लगाता है।