जान पर खेलकर लपटों को काबू करने वाली एयर होस्टेस राधिका
राधिका को ट्रेनिंग तो मिली थी फ्लाइट अटेंडेंट्स की, लेकिन जब उनकी पड़ोस की बिल्डिंग में आग लगी तो बिना लिफ्ट का सहारा लिए सीढ़ियां छलांगती हुई वह नौवीं मंजिल पर पहुंच गईं और अपने भाई व पड़ोसी की मदद से लपटों को काबू कर लिया।
जब भी कोई अनहोनी होती है, हमारी सामाजिक संवेदना एक-दूसरे को आपसी मददगार बना देती है। ऐसा भी होता है कि किसी अन्य जरूरत वश संचित हमारा अनुभव संसार ऐन मौके पर किसी और स्थिति में बड़े काम का साबित हो जाता है, जैसा कि मुंबई के एक हादसे में जेट एयरवेज़ की एयर होस्टेस राधिका अहिरे ने साबित कर दिया। उन्हे ट्रेनिंग तो मिली थी, फ्लाइट अटेंडेंट्स की, कि आपातकालीन स्थिति जैसे कि विमान में आग लग जाये तो क्या करें या फिर विमान में कोई तकनीकी खराबी आ जाए तो कैसे संभालें लेकिन जब उन्होंने अपने घर की बिल्डिंग के पास वाली गोकुल पंचवटी बिल्डिंग के नौवीं मंजिल पर एक अपार्टमेंट में आग लगे देखा तो उनकी फ्लाइट ट्रेनिंग वहां काम आ गई। घटना के समय वह अपने घर से कहीं बाहर जा रही थीं।
राधिका कहती हैं कि आग शायद किसी पटाखे की वजह से लगी थी। मैं बाहर जा रही थी और तभी मैंने देखा कि उस घर के बाहर सुखाने के लिए डाले गये कपड़ों में आग लगी हुई है। देखते ही देखते आग खिड़की से अंदर की ओर जाती दिखी। आग को फैलते देख वह तुरंत उस बिल्डिंग की ओर तेजी से दौड़ पड़ीं। जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ चढ़ती हुईं बिल्डिंग के उस नौवे तल पर पहुँच गईं, जहां लपटें उठ रही थीं। आग बुझाने के दौरान उनके भाई रोहित और एक पड़ोसी महेश बेलापुरकर ने भी उनका साथ दिया। उन्होंने हर एक माले के अग्निशामक तुरत-फुरत में तेजी से जुटा लिए। साथ ही अपनी दीप टावर बिल्डिंग से कुल्हाड़ी मंगा ली। उन्होंने अग्निकांड वाले घर का दरवाज़ा कुल्हाड़ी से खोला और फायरमैन के आने से पहले ही नौ अग्निशामकों की मदद से आग पर काबू पा लिया।
जिस समय आग लगी, वह अपार्टमेंट खाली था। अगर राधिका की नजर समय पर लपटों तक नहीं जाती तो शायद आग पूरी बिल्डिंग में फ़ैल जाती। घटना के वक्त राधिका की प्राथमिकता लोगों को बचाने की थी। राधिका ने जेट एयरवेज़ के साथ फायर फाइटिंग की ट्रेनिंग भी ले रखी है। वैसे ट्रेनिंग के दौरान बनावटी आपातकाल-स्थिति होती है और असल ज़िन्दगी में इस तरह अचानक किसी वाकये का सामना करना बहुत मुश्किल हो जाता है। यह वाकया काफी पहले हुआ था लेकिन राधिका आज भी अपने इलाके में एक मिसाल बनी हुई हैं।
उस वाकये को याद करते हुए जान पर खेल जाने वाली राधिका कहती हैं कि एक पल को उनके मन में आया कि लोगों को आवाज लगाएं लेकिन तभी उन्हे खुद की हिम्मत का बोध हुआ और घटनास्थल की ओर पूरे दमखम के साथ दौड़ गईं। उस वक्त लिफ्ट लेना भी जोखिम भरा काम था। इसलिए वह सीधे सीढ़ियों के सहारे मौके पर जा धमकीं। जिस समय उन्होंने घटना वाले घर का मुख्य द्वार किसी तरह खोला, लपटें एक और शयनकक्ष की ओर बढ़ चुकी थीं। उनको अपना चेहरा कपड़े से ढंकना पड़ा क्योंकि धुएं का दबाव भी बढ़ता जा रहा था।
राधिका कहती हैं कि उनके आग बुझाने के काम को भले भुला दिया जाए लेकिन यह सबक याद रखना होगा कि हमारा कोई भी हुनर, किसी भी वक्त दूसरों के काम आ सकता है और उसका इस्तेमाल करने में हमे साहस के साथ मनुष्यता का परिचय देना चाहिए। राधिका का साहस आज औरों का भी संबल बना रहता है। उनका मौजूद होना भरोसा देता है। राधिका की हिम्मत किसी भी तरह के खतरे से दो हाथ करने का माद्दा देती है। राधिका कहती हैं कि ऐसे हालात में डर से नहीं, विवेक और साहस से काम लेना चाहिए। उन्हें एक एयर होस्टेस के रूप में भी यही प्रशिक्षण मिला है।
उतने ऊंचे आसमान में रोजाना ही यात्रियों को हम इसी तरह की दृढ़ता का भरोसा देते हैं। औपचारिक रूप से सही, हर उड़ान से पहले हम साहस, जोखिम के वक्त बचने की तकनीक का प्रदर्शन करते हैं, ताकि उड़ान के वक्त किसी तरह का वाकया हो जाने पर लोग भयभीत न हों। यह कोई वीरतापूर्ण कार्य नहीं लेकिन हिम्मत का काम तो है ही। उस दिन वह नौ मंजिलों तक दौड़ीं और फायरमैन के आने से पहले ही लपटों को काबू में कर लिया। विमान में आग लग जाती है तो उड़ान परिचारकों को तेजी से सक्रिय होने के लिए ही प्रशिक्षित किया जाता है।
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