अपने 'साइलेंट स्टेशन्स' के जरिए विकलांगों को रोजगार देकर समावेशिता को बढ़ावा दे रहा है अमेजन इंडिया
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ बहुत से लोग शारीरिक और मानसिक दिव्यांगता को एक बाधा के रूप में देखते हैं। वे अक्सर दिव्यांग समुदाय के अद्वितीय गुणों और क्षमता को पहचानने में विफल होते हैं। यही कारण है कि भारत में उद्योगों और संगठनों में दिव्यांग व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की 121-करोड़ की आबादी में लगभग 2.68 करोड़ लोगों के पास किसी न किसी प्रकार की दिव्यांगता है। लेकिन, उनमें से केवल एक-तिहाई हैं जो कार्यरत हैं। न केवल उन्हें आजीविका के अवसरों से वंचित किया जाता है, बल्कि उद्योग से उनका अलगाव उनके सामाजिक जीवन के साथ-साथ उनकी देखभाल करने वालों के लिए भी एक टोल लगता है।
देश की टॉप ऑनलाइन रिटेलर अमेजॉन इंडिया अब अपनी समावेशी कार्यस्थल नीति का गहनता से पालन कर रही है। ईकॉमर्स की ये दिग्गज कंपनी 2017 से पूरे मुंबई में 'साइलेंट स्टेशन' स्थापित कर रही है, जहां सभी ऑपरेशन और पैकेज डिलीवरी का पूरा काम श्रवण (सुनने) और वाणी (बोलने) की दुर्बलता वाले दिव्यांग करेंगे।
केवल यही नहीं - अमेजॉन इंडिया ने स्टेशनों में बुनियादी सुविधाओं और अन्य सुविधाओं को भी संशोधित किया है ताकि दिव्यांग लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके और उनकी सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित की जा सके। कंपनी ने हाल ही में सोल्स एआरसी (Sol's ARC) के साथ भागीदारी करके समावेशी हासिल करने के अपने प्रयासों को बढ़ाया है। यह एक गैर-सरकारी संगठन है जो दिव्यांग बच्चों के लिए सीखने की सामग्री के निर्माण के लिए काम कर रहा है। कोलैबोरेशन को 2019 में अंतिम रूप दिया गया, जिसका उद्देश्य आत्मकेंद्रित और अन्य बौद्धिक दिव्यांंग व्यक्तियों के लिए इंटर्नशिप के अवसर पैदा करना है।
योरस्टोरी से बात करते हुए, अमेजॉन इंडिया ऑपरेशंस की एचआर निदेशक, स्वाति रुस्तगी कहती हैं,
“देश में कई दिव्यांग लोगों को अपने कौशल और प्रतिभा दिखाने के अवसर प्रदान नहीं किए जाते हैं। वे कॉर्पोरेट सेटअप और व्यवसायों में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। हम, अमेजॉन इंडिया में, एक ऐसी संस्कृति बनाना चाहते हैं जो उन्हें प्रोत्साहित करे और उनका सर्वश्रेष्ठ बाहर लेकर आए।''
समावेशिता को चलाने का प्रयास
बदलाव लाने के किसी भी प्रयास में अपरिचितता और अज्ञानता शामिल होती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता है कि कोई बदलाव लाने का प्रयास ही न करें। अमेजॉन के साथ भी यही था जब अमेजॉन इंडिया ने साइलेंट स्टेशन स्थापित करने की अपनी पहल को शुरू किया। इस चुनौती को हल करने और स्टेशनों पर काम करने के उद्देश्य से दिव्यांगों की पहचान करने के लिए, कंपनी ने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) सहित कुछ एजेंसियों की मदद ली।
जहां पहला स्टेशन 2017 में विक्टोरिया टर्मिनस के पास स्थापित किया गया था, वहीं दूसरा स्टेशन साकी नाका में स्थापित किया गया। शुरुआत में, अमेजॉन के साइलेंट स्टेशनों के संचालन और वितरण प्रभागों में सहयोगी के रूप में 30 विकलांग व्यक्ति आगे आए। लेकिन संख्या दो साल के भीतर तेजी से बढ़ी। आज, अमेजॉन के फुलफिलमेंट नेटवर्क में 650 से अधिक लोग बोलने और सुनने की विकलांगता वाले हैं।
दोनों साइलेंट स्टेशनों को कर्मचारियों की सुरक्षा और सहूलियत पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकसित किया गया है। एचआर टीम सुबह और शाम की शिफ्ट के दौरान स्टेशनों पर दुभाषिया (interpreter) की उपस्थिति सुनिश्चित करती है।
इसके अलावा, विकलांग को बिना किसी दिक्कत के अपने से ऊंचे पद पर बैठे व्यक्तियों के साथ बातचीत करने में सक्षम बनाने के लिए, कंपनी ने मैनेजर्स को सांकेतिक भाषा में प्रशिक्षित किया है।
स्वाती बताती हैं,
"एसोसिएट्स को भी ग्राहकों की शिकायतों और डिलीवरी, मैप नेविगेट करने, रूट ऑप्टिमाइजेशन से संबंधित कुछ समस्याओं को दूर करने के लिए लर्निंग मॉड्यूल्स के जरिए प्रशिक्षित किया गया है। टीम ने आपातकालीन निकासी (emergency evacuations) की स्थिति से निपटने के लिए विकलांगों के लिए विशेष प्रोटोकॉल भी स्थापित किए हैं।"
इन सुविधाओं के अलावा, हर साइलेंट स्टेशन पर एक व्हाइट बोर्ड होता है, जिस पर कर्मचारी किसी भी मुद्दे या परेशानी का जिसका उन्होंने सामना किया हो उस पर अपने विचारों और सुझावों को लिख सकते हैं। दिव्यांगों की आवश्यकताओं के अनुसार वर्क एनवायरनमेंट को लगातार सुधारने का लक्ष्य है।
इन सबके बाद एक बार अमेजॉन इंडिया टीम ने साइलेंट स्टेशनों के कर्मचारियों की उत्पादकता का आकलन करने के लिए एक अध्ययन कराया और पाया कि वे अन्य स्टेशनों पर काम करने वालों की तुलना में पाँच प्रतिशत अधिक उत्पादकता दे रहे हैं।
एनजीओ SoI's ARC के साथ कंपनी की हालिया साझेदारी के बारे में बोलते हुए, स्वाति कहती हैं,
“इस पहल के हिस्से के रूप में, हम मानसिक विकलांग लोगों के प्रशिक्षण और रोजगार दोनों को शामिल करते हुए एक मॉडल विकसित करने की प्रक्रिया में हैं। हम डेटा एंट्री, स्टोविंग, लोडिंग और अनलोडिंग और स्टेजिंग जैसे क्षेत्रों में उनके लिए रोजगार प्रदान करने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि ये कुछ ऐसे कार्य हैं जो वे अपनी फुर्ती के बिना कर पाएंगे।"
दिव्यांगों के जीवन को बदल रही है ये पहल
नीलम तन्ना जब बहुत छोटी थीं, तब से उन्हें सुनने में मुश्किल हो रही थी।
चूँकि नीलम अपने पिछले वर्कप्लेस में एकमात्र विकलांग कर्मचारी थीं, इसलिए उन्हें अपने सहयोगियों से काफी भेदभाव और बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ा।
हालांकि, उनके लिए चीजों ने एक सकारात्मक मोड़ लिया जब उन्होंने विक्टोरिया टर्मिनस के पास अमेजॉन के साइलेंट स्टेशन में एक सहयोगी के रूप में नौकरी हासिल की।
नीलम बताती हैं,
“मुझे स्टेशन पर काम करने में बहुत मजा आता है। यहां मेरे सभी सहयोगियों ने मुझे आराम दिया और मैं सेट-अप में वास्तव में सुरक्षित और आरामदायक महसूस करती हूं। अमेजॉन ने मुझे कंप्यूटर का इस्तेमाल करने के लिए ट्रेनिंग भी दी है। इसे मैं लंबे समय से सीखना चाहती थी। इसके अलावा, मेरी वित्तीय स्थिरता में सुधार हुआ है और मेरे वेतन में भी लगातार वृद्धि हुई है। मैं और क्या माँग सकती हूँ?”
अमेजॉन इंडिया अपने वर्कप्लेस को अधिक समावेशी बनाने के लिए और अपने प्रयासों को बढ़ाने के लिए कमर कस रहा है और विकलांगों को सशक्त बनाने और उन्हें अपने जीवन में प्रगति के लिए एक अवसर प्रदान कर रहा है।
अंत में स्वाति कहती हैं,
''आज के समय में समावेशिता की जरूरत है और मुझे उम्मीद है कि अमेजॉन अन्य फर्मों और संगठनों के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकेगा।''