21 साल बाद ऑस्कर के लिए शॉर्टलिस्ट हुई है कोई भारतीय फिल्म
ऑस्कर के इतिहास में पहली बार दो भारतीय फिल्में एकेडमी अवॉर्ड के लिए हुईं शॉर्टलिस्ट.
भारत की तरफ से इस बार ऑस्कर में बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी के लिए भेजी गई फिल्म ‘छेलो शो’ को शॉर्टलिस्ट कर लिया गया है. यह 21 साल बाद हो रहा है कि भारत की किसी फिल्म को इस कैटेगरी में शॉर्टलिस्ट किया गया है. इसके पहले वर्ष 2001 में भारत की ऑफिशियल एंट्री, आशुतोष गोवारिकर निर्देशित फिल्म लगान को यह गौरव हासिल हुआ था.
इतना ही नहीं, ऑस्कर के इतिहास में ये पहली बार हो रहा है कि भारत की दो फिल्मों को आगामी एकेडमी अवॉर्ड्स में दो श्रेणियों में शामिल किया गया है. यह दूसरी फिल्म है आरआरआर, जिसके गाने नाटू-नाटू (नाचो-नाचो) को बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग की कैटेगरी में शॉर्टलिस्ट किया गया है.
छेलो शो मूलत: गुजराती भाषा में बनी फिल्म है, जिसके निर्देशक हैं पैन नलिन. फिल्म आरआरआर का निर्देशन दक्षिण भारत के जाने-माने फिल्मकार एस. एस. राजामौली ने किया है.
भारत और ऑस्कर के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि देश की दो फिल्मों को एक प्रतिष्ठित इंटरनेशनल अवॉर्ड में न सिर्फ जगह मिली है, बल्कि दो अलग-अलग श्रेणियों के लिए उन्हें शॉर्टलिस्ट भी किया गया है.
21 दिसंबर को एकेडमी कमेटी ने शॉर्टलिस्ट की गई फिल्मों की फाइनल सूची जारी की थी. इनमें से जो फिल्में लास्ट 5 में पहुंचेंगी, उनके ऑस्कर जीतने की संभावना ज्यादा प्रबल हो जाएगी. 95वां ऑस्कर अवॉर्ड सरामोह अगले साल 12 मार्च को लॉस एंजिलिस के फेमस डॉलबी थिएटर में आयोजित होगा.
फिल्म आरआरआर को इस साल दर्शकों ने खूब सराहा है. इस फिल्म ने न सिर्फ भारत, बल्कि विदेशों में भी काफी हड़कंप मचाया. ये देखना काफी चकित करने वाला है कि न्यूयॉर्क टाइम्स और वैनिटी फेयर जैसी पत्रिकाओं ने इस साल ऑस्कर जीतने की काबिलियत रखने वाली संभावित फिल्मों की सूची में आरआरआर का नाम भी शामिल किया था.
ये बात दीगर है कि भारत की तरफ से ऑस्कर की ऑफिशियल एंट्री के लिए जब आरआरआर का चयन नहीं हुआ तो निर्देशक राजामौली ने इस फिल्म को ऑस्कर तक पहुंचाने के लिए अपनी ओर से पूरा इंटरनेशनल कैंपेन खड़ा कर दिया था.
दक्षिण भारत के कलाकारों के अलावा इस फिल्म में बॉलीवुड के दो सितारों अजय देवगन और आलिया भट्ट ने भी प्रमुख भूमिका निभाई थी.
वहीं गुजराती फिल्म छेलो शो एक तरह से निर्देशक पैन नलिन की सेमी ऑटोबायोग्राफिकल फिल्म है. रेलवे स्टेशन पर चाय का स्टॉल लगाने वाले एक सामान्य गरीब, लेकिन ब्राम्हण व्यक्ति के छोटे बच्चे की कहानी. पिता को फिल्में पसंद नहीं और बेटा सिनेमा की जादुई और रूहानी दुनिया का बिलकुल दीवाना है.
पूरी फिल्म इसी छोटे बच्चे के नजरिए से सिनेमाई पर्दे को और आसपास के संसार में मौजूद सिनेमा को देखने और दिखाने की कोशिश है. शुरू-शुरू में कहा जा रहा था कि यह फिल्म इलालवी फिल्म ‘सिनेमा पैरादिसो’ से प्रेरित है. लेकिन फिल्म के रिलीज होने और अब ओटीटी पर भी उपलब्ध होने के बाद यह दावा पूरी तरह गलत साबित हो गया है.
Edited by Manisha Pandey