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आनंद महिंद्रा के हौसले ने शिल्पा को कामयाबी की बुलंदी तक पहुंचाया

आनंद महिंद्रा के हौसले ने शिल्पा को कामयाबी की बुलंदी तक पहुंचाया

Wednesday September 18, 2019 , 4 min Read

"एक दिन अचानक पति के लापता हो जाने से लाचार मंगलौर (कर्नाटक) की शिल्पा ने संकल्प लिया कि अब वह घर की गाड़ी खुद खीचेंगी। कर्ज जुटाया, महिंद्रा ग्रुप के सीईओ आनंद महिंद्रा ने हौसलाआफजाई किया और बोलेरो ट्रक पर कन्नड़ फूड कोर्ट चल निकला। अब वह रोजाना हजारों की कमाई कर आराम से परिवार चला रही हैं।"

  

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आनंद महिंद्रा के साथ शिल्पा


जब बचपन से ही जिंदगी पटरी पर चल रही हो, मामूली कोशिशों से ऐसा कोई भी शख्स आगे की राह आसान और बड़ी कामयाबी हासिल कर सकता है, लेकिन जीवट तो उसे कहेंगे, जो विपरीत परिस्थितियों को पछाड़ कर अपनी रेत से तेल निकाल लेने जैसी हैसियत बना ले। मंगलौर (कर्नाटक) की महिला उद्यमी शिल्पा एक ऐसे ही जीवट वाली महिला हैं, जिनके संघर्ष ने महिंद्रा ग्रुप के सीईओ आनंद महिंद्रा को अपने बारे में लिखने ही नहीं, मदद तक करने के लिए विवश कर दिया।


ऐसा करते हुए आनंद महिंद्रा 'होली माने रॉटीज़' शीर्षक से शिल्पा के लिए कुछ इस तरह ट्विटर पर लिखते हैं,

'मुझे नहीं लगता कि वह मेरी चैरिटी चाहती हैं या जरूरत है। वह एक सफल उद्यमी हैं। मैं उनके रोजगार के विस्तार में निवेश करने की पेशकश कर रहा हूं। महिंद्रा के लिए उद्यमशीलता एक कठोर संघर्ष की कहानी है। यह एक कामयाब जिंदगी का नवोदय है, जिसमें महिंद्रा के बोलेरो ने एक छोटी सी भूमिका निभाई तो उन्हे बहुत खुशी मिली है। क्या कोई उन तक पहुंच सकता है और उन्हे बता सकता है कि मैं व्यक्तिगत रूप से उनके उद्यम के विस्तार में दूसरे आउटलेट के साथ निवेश के रूप में एक बोलेरो की आपूर्ति करना चाहता हूं। यह किसी प्रकार का दान नहीं, बल्कि एक निवेश है।'


चौतीस वर्षीय शिल्पा की कठिन जिंदगी का सफर 2008 से शुरू होता है। वह बताती हैं कि उन्हे अपने काम में सबसे ज्यादा खुशी तब हुई, जब बिजनेस टाइकून महिंद्रा एंड महिंद्रा के मालिक आनंद महिंद्रा ने उनके संघर्ष से प्रभावित होकर ट्वीट किया और हर संभव मदद का आश्वासन दिया। वह मंगलौर (कर्नाटक) की रहने वाली हैं। उन्हे बचपन से खाना बनाने का शौक जरूर रहा है, लेकिन व्यापार में अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि मजबूरी में उतरी हैं। वर्ष 2005 में उनकी शादी हुई। वह अपने घर-परिवार में उन दिनों काफी खुश थीं। उनके पति स्थानीय स्तर पर व्यापार-कारोबार में व्यस्त रहा करते थे। जिंदगी सही-सलामत कट रही थी।





वर्ष 2008 में, जब शिल्पा का बेटा मात्र तीन वर्ष का था, एक दिन उनके पति उनसे बोलकर गए कि वह अपने कारोबार के लिए लोन के सिलसिले में बंगलूरू जा रहे हैं और कुछ दिन में लौट आएंगे। वह इंतजार करती रहीं, छह महीने बीत जाने के बावजूद वह वापस नहीं आए। 


आखिर, पटरी से उतर चुकी घर की गाड़ी खींचने के लिए उन्हे अब स्वयं कुछ-न-कुछ करना था। अब अपनी और बच्चे की जिम्मेदारी पूरी तरह निभाने की बारी उनकी थी। उन दिनो वह कोई सेकंड हैंड वाहन खरीदकर उस पर मोबाइल वाहन पर कन्नड़ ढाबा चलाने के बारे में सोचने लगीं। उन्होंने पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद एक लाख रुपये इकठ्ठे किए। घर के ठीक सामने महिंद्रा का शोरूम था। उन्होंने सोचा कि क्यों न एक छोटा ट्रक लेकर उस पर ही अपना फूड कोर्ट शुरू कर दें। बिना कोई नफा-नुकसान सोचे ये आइडिया दिमाग में बैठ गया। चूंकि पुराना वाहन फाइनेंस पर नहीं निकलता, इसलिए उन्होंने नया ट्रक लेना ही तय किया, जो आराम से फाइनेंस पर मिल जाए।


शिल्पा ने सरकार की 'महिला रोजगार उद्योग योजना' में लोन ले लिया। साथ ही, अपने सोने के गहने भी बेच डाले। बेटे की पढ़ाई के एक लाख रुपए भी बैंक से निकाल लाईं और महिंद्रा बोलेरो मिनी ट्रक खरीदकर दरवाजे पर आ गया। वह उस पर खाना बनाने लगीं। रोजाना छह-सात सौ रुपए की कमाई होने लगी। जैसे ही आनंद महिंद्रा ने उनके बारे में ट्वीट किया, अचानक उनके यहां ग्राहक बढ़ने लगे।

 




शिल्पा बताती हैं कि उसी बीच उन्होंने सिक्योर्टी गॉर्ड की नौकरी कर रहे अपने भाई को भी अपने काम में जोड़ लिया। उन्ही दिनो कुछ छात्रों ने उनके फूड ट्रक को गूगल मैप्स पर डाल दिया। दूर-दूर से लोग कन्नड़ खाना खाने के लिए आने लगे। कारोबार चल निकला। अब रोजाना हजारो रुपए की कमाई हो रहा है। ठाट से उनकी घर-गृहस्थी पटरी पर आ चुकी है।


शिल्पा कहती हैं कि उतार-चढ़ावों भरी जिंदगी में बस हिम्मत नही हारने की जरूरत होती है, आगे की राह खुद निकल आती है। जो मुश्किलों पर पार पाना सीख लेता है, जिंदगी की लड़ाई जीत जाता है। उनके महिंद्रा बोलेरो वाले फूड कोर्ट पर ज्यादातर ग्राहक दक्षिण कन्नड़ के ही होते हैं, जिनमें डॉक्टर, छात्र और नौकरीपेशा लोग घर का बना खाना चाहते हैं। उनमें कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो उनकी मदद करना चाहते हैं। वह एकल माँ के रूप में अब उत्तर कन्नड़ व्यंजनों के लिए लोकप्रिय हो चुकी हैं।