मुफलिसी को मात देकर 21 साल की उम्र में आईएएस बनने वाले अंसार अहमद शेख
अंसार अहमद शेख, पंकज और गोविंद जायसवाल जैसे युवा जब गरीबी में बड़े-बड़ों को अपनी हैसियत से झुका देते हैं, उन किसी को गर्व ही नहीं होता बल्कि वह करोड़ों बेरोजगार युवाओं के बीच एक मिसाल बन जाते हैं। रिक्शा चालक के बेटे अंसार अहमद शेख को यूपीएससी परीक्षा में 371वीं रैंक मिली है।
संसाधनहीन श्रमिक परिवारों में पैदा होकर नाम रोशन करने वाली युवा प्रतिभाएं कभी-कभी अपनी कामयाबी से हर किसी को हैरत में डाल देती हैं। अंसार अहमद शेख एक वैसा ही नाम है। वह जालना (महाराष्ट्र) के एक रिक्शा चालक के बेटे हैं। जालना के एक छोटे से गांव में पैदा हुए 21 वर्षीय अंसार ने यूपीएससी परीक्षा में 371 वीं रैंक हासिल की है। इसी तरह गोविंद जायसवाल ने 2006 की आइएएस परीक्षा में 48वां रैंक हासिल किया था। हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वालों की श्रेणी में वह टॉपर रहे थे।
इस समय गोविंद ईस्ट दिल्ली एरिया के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हैं। गोविंद के अनपढ़ पिता नारायण जायसवाल रिक्शा चलाते थे। उन्होंने खेत बेचकर अपने बेटे का सपना पूरा किया था। गोविंद ने अपना खर्चा चलाने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाए। वह परीक्षा की तैयारी के दौरान अठारह-अठारह घंटे पढ़ाई करते थे। पैसा बचाने के लिए कभी-कभार भूखे पेट भी रह लेते थे। उनकी बड़ी बहन ने मां की मौत के बाद घर वालों की देखभाल के लिए अपनी पढ़ाई तक छोड़ दी थी। जब आइएएस का रिजल्ट आया था, उससे पहले कई दिनों तक उनके पिता चिंता के कारण सो नहीं पाए थे। जब रिजल्ट आया तो सबकी आंखें खुशी से छलक उठीं।
महाराष्ट्र के अंसार अहमद शेख अपनी कमजोर घरेलू आर्थिक स्थितियों के बावजूद शुरू से ही पढ़ाई में चैम्पियन रहे। उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए पुणे के एक बड़े कॉलेज में पॉलिटिकल सांइस में बीए में दाखिला लिया। कड़ी मेहनत और लगन के साथ लगातार तीन वर्ष तक वह प्रतिदिन बारह-बारह घंटे काम करने के साथ ही यूपीएससी की परीक्षा की तैयारियों में भी जुटे रहे और आखिरकार आज उस परिवार के लिए असंभव सी कामयाबी ने अंसार के कदम चूम लिए हैं।
अंसार की तरह ही पिछले साल फीरोजाबाद (उ.प्र.) के एक मजदूर परिवार में पैदा हुए पंकज, जिनकी पढ़ाई का खर्च उनके घर वाले नहीं उठा पा रहे थे, उनको इंटर के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। दिल्ली में एक प्राइवेट जॉब मिल गई। पचीस हजार रुपये में अपना और घर-परिवार का गुजारा करने लगे। पंकज का भी सपना आइएएस बनना था। वह दिन में नौकरी और रात में पढ़ाई करते रहे। वह दूसरे ही प्रयास में आइएएस परीक्षा में 782वीं रैंक हासिल कर गए।
अंसार अहमद शेख, पंकज और गोविंद जायसवाल जैसे युवा जब गरीबी में बड़े-बड़ों को अपनी हैसियत से झुका देते हैं, उन किसी को गर्व ही नहीं होता बल्कि वह करोड़ों बेरोजगार युवाओं के बीच एक मिसाल बन जाते हैं। वे उन तमाम बच्चों के लिए भी एक सबक हैं, जिन्हें बचपन से सुविधाएं तो खूब मिलती हैं, लेकिन लक्ष्य से चूक जाते हैं। पंकज के पिता भूरी सिंह यादव चूड़ी कारखाने में मजदूरी करते थे। संत शिवानंद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से 64 फीसद अंक के साथ हाईस्कूल तथा जेवी इंटर कॉलेज से 69 फीसद अंक के साथ इंटर पास करने के बाद पंकज पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी लेकिन वह हार नहीं माने।
दो छोटी बहनें थीं तो पिता की रोज की कमाई मात्र तीन सौ रुपये थी। खेत के नाम पर दो बीघे जमीन थी। गांव के अन्य युवकों की तरह पंकज नौकरी की तलाश में रहते थे। एयरपोर्ट पर प्राइवेट नौकरी देने वाली कंपनी का फॉर्म भरा तो ग्राउंड स्टाफ में सलेक्शन हुआ। किसी तरह पिता ने ट्रेनिंग में दी जाने वाली फीस जुटाई तो पंकज दिल्ली पहुंच गए और एक दिन उन्होंने नौकरी के साथ वह अजूबा कर दिखाया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।
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