एक राजकुमारी की डायरी: पत्रकारिता और ब्रांडिंग से निकल कैसे उद्यमिता की राह पर चल पड़ीं अर्चना कुमारी सिंह
अर्चना कुमारी सिंह एक पूर्व शाही खानदान से आती हैं। उन्होंने बताया कि कैसे वह उद्यमी बनने की राह पर चल पड़ी और क्यों उन्होंने 'हाउस ऑफ बदनौर' के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।
अर्चना कुमारी सिंह जब राजस्थान के अपने शहर से निकलकर दिल्ली आईं, तो उन्होंने आजादी के साथ एक गुमनामी की भावना महसूस की, जो उन्हें पसंद आई। वह स्वर्गीय राजा अभय प्रताप सिंह और स्वर्गीय रानी आशा देवी की बेटी हैं और वो यूपी के प्रतापगढ़ में एक किले में पली-बढ़ीं हैं, जो उनका घर है।
अर्चना बताती हैं,
'घर को लेकर जो मेरी पुरानी यादें हैं, उसमें ढेर सारे लोगों, मेहमानों और वहां रहने वाले लोगों की हलचल और शानदार खुशबू और विशेष पकवानों को नियमित रूप से चखना याद आते हैं। वहां खूब बड़ी जगह थी, जहां हमें छिपने और लोगों की नजरों से बचने का पर्याप्त मौका मिलता था। कई सारे पालतू जानवर थे, जिसमें बाघ के बच्चों से लेकर हिरण, बंदर, कुत्ते और चिड़िया शामिल थे। से सभी हमारे मस्ती के साधन थे। एक और मजेदार बात यह है कि जब मेरी मां शादी कर प्रतापगढ़ आईं, तो वह अपने साथ एक पालतू भालू को भी लेकर आई थीं।'
अर्चना बताती हैं कि वे शिष्टता, अनुशासन और जिम्मेदारी की भावना के साथ बड़े हुए हैं; दया, करुणा और उदारता को सीखा है; और कला, सौंदर्यशास्त्र, संगीत और कविता को सम्मान करना सीखा है।
वो कहती हैं, "सबसे अहम बात, हमने किसी भी वातावरण में खुद को ढालकर उसमें सहजता के साथ रहने का कौशल सीखा है।"
एक अलग दुनिया
वह कहती हैं कि बड़े होने के साथ उन्होंने अपने माता-पिता से कई नए सबक सीखे, खासतौर से उन्हें सार्वजनिक जीवन में व्यवहार करते हुए खुद देखकर।
अर्चना कहती हैं, "प्रथम परिवार होने के नाते, उन्हें उदाहरण पेश करके अगुआई करना, भरोसेमंद बनना, विश्वास बनाना और परिवार को एकजुट रखने का काम करना होता था। परिवार नाम की संस्था में कई स्तर मौजूद थे, जिसके सबसे अंदरूनी दायरे की शुरुआत हमसे होती थी। फिर हमारे अंकल और आंटी, चचेरे भाई-बहन, दोस्त, रिश्तेदार और यह फिर बढ़ते हुए इसमें पूरा गांव शामिल हो जाता था। वे अपने परिवार से लेकर विस्तारित परिवार का ताना-बाना बुनते थे।"
अर्चना की शादी मेवाड़ के एक पूर्व राजघराने बदनौर में हुई है, जो राजस्थान में स्थित है। शादी के बाद अर्चना दिल्ली आ गई और यहीं उन्होंने रोजगार के साथ उद्यमिता में हाथ आजमाया।
अर्चना ने पत्रकारिता की पढ़ाई की थी, इसलिए उन्होंने कई प्रकाशनों के लिए स्वतंत्र लेखन की कोशिश की और मीडिया के विभिन्न शैलियों के साथ प्रयोग किया।
वह बताती हैं, “मेरा लेखन क्षेत्र बीट कला, संस्कृति, यात्रा, भोजन और लोगों से जुड़ा था। एक बार जब मेरी दोनों बेटियां स्कूल जाने लगीं, तो मैंने पूर्णकालिक तौर पर एक आभूषण पत्रिका के संपादक के रूप में भूमिका निभाई। वह उस वक्त इस विषय पर आने वाली इकलौती उपभोक्ता पत्रिका थी।”
अर्चना कहती हैं कि उस वक्त प्रिंट प्रकाशन के लिए सुनहरे दिन थे। लेकिन करीब 10 सालों तक वहां काम करने के बाद, अर्चना ने अपने करियर की राह बदल दी और ब्रिटिश सिल्वरवेयर ब्रांड 'फ्रेजर एंड हब्स' से जुड़ गईं। वहां वह प्रेसिडेंट पद की भूमिका तक पहुंची और उसके सभी कार्यों को देखती थीं। वह भारत में इस ब्रांड का चेहरा बन गई थीं।
अपने काम करने के दिनों के अनुभव को याद करते हुए वह कहती हैं, “15 साल तक, मैंने लगातार काम सीखा। मैंने लग्जरी रिटेल, उत्पाद डिजाइन और उसका विकास, उत्पादन, बिक्री और मार्केटिंग, लोगों का प्रबंधन और उपभोक्ता व्यवहार के बारे में सब कुछ सीखा। हर दिन अपने साथ एक नई चुनौती लाता है और अधिक जानने और तेजी से बढ़ने के अवसर को भुनाने के लिए बहुत जरूरी था। सिल्वर यानी चांदी की बात करें तो यह इस धातु में काम करना काफी कठिन है। ऐसे में ड्राइंग बोर्ड में से लेकर फिनिश लाइन तक विचारों को अमलीजामा पहनाते हुए देखना और कस्टमर से मिलने वाली सराहना तक काफी शानदार था, जो अद्वितीय बना रहा।”
रिटेल एक्सप्लोरेशन और उसमें महारत हासिल करने के 15 सालों बाद, अर्चना ने एक नए साहसिक कार्य को शुरू करने का फैसला किया। वह कहती हैं, "मैंने एक उद्यमी बनने का फैसला किया है।"
हाउस ऑफ बदनौर
अर्चना ने 'हाउस ऑफ बदनौर' (House of Badnore) नाम से एक मल्टी प्रोडक्ट ब्रांड लॉन्च किया है। यह ब्रांड पुरुषों, महिलाओं और घर से जुड़े सामानों की एक श्रृंखला मुहैया करता है।
वह बताती हैं, "हमारा पैतृक घर राजस्थान के बदनौर में हैं। लेकिन हमारा परिवार करियर के लिए अपने पैतृक घर से दूर रह रहा हैं क्योंकि यह करियर ही हमारी व्यक्तिगत पहचान को परिभाषित करता है। मेरा परिवार चार पेशेवरों का घर हैं। मेरे पति रंजई सिंह एक अमेरिकन बाइंग हाउस के दिल्ली में हेड हैं। मेरी बड़ी बेटी अनंतिका लंदन में सिटी बैंक में वाइस प्रेसिडेंट एचआर है। मेरी दूसरी बेटी कृतिका एक कला इतिहासकार हैं, जो वर्तमान में म्यूजियम ऑफ आर्ट एंड फोटोग्राफी, बेंगलुरु के साथ काम कर रही है। हालांकि, इसके बावजूद हम अपनी जड़ों से गहराई से जुड़े हैं। यही कारण है कि मैंने अपने एंटरप्राइज के लिए यह ब्रांड नाम चुना। यह घर वापसी जैसा लगता है।”
अर्चना बताती हैं कि उनकी कंपनी पर्सनल स्टाइल, एक्सेसरीज, ज्वैलरी, होम इंटीरियर्स, दुल्हन के साज-सामान, गिफ्ट और भोजन से जुड़े बेजोड़ डिजाइन समाधान पेश करती है, जिसका लक्ष्य "विंटेज स्टाइल के साथ पुरानी यादों को फिर से बनाना है।"
अर्चना बताती हैं, “हमने प्रत्येक श्रेणी में डिजाइनों का ढेर तैयार किया है जो शानदार ठाठ वाले, सुरुचिपूर्ण और किफायती हैं। हम समकालीन शैली में विंटेज के एक सांकेतिक लुक के साथ लाते हैं ताकि एक्सेसरीज किसी भी पहनावे या घर के साथ फिट हो सकें। हाउस ऑफ बदनौर (एचओबी) के उत्पादों को जो चील अलग बनाती है, वो यह है कि हम विंटेज स्टाइल को दोहराते नहीं हैं; इसकी जगह हम अतीत से रूपांकनों और तत्वों को लेकर उन्हें आधुनिक समय के लिए प्रचलित और प्रासंगिक बनाते हैं। पैकेजिंग सहित हमारे सभी डिजाइनों के लिए थीम सुंदरता है।"
एचओबी की सभी कृतियों को ब्रांड के लिए विशेष रूप से डिजाइन और तैयार किया जाता है। वर्तमान में इसके दो आउटलेट्स हैं। पहला दिल्ली के बीकानेर हाउस के वायु में और दूसरा ऋषिकेश के आनंदा में। इनकी टीम फिलहाल भारत और विदेशों में कुछ और आउटलेट्स के लिए जगह पहचाने में लगी है जहां कंपनी के 'गिफ्ट या व्यक्तिगत इस्तेमाल वाले अपने प्रीमियम लग्जरी उत्पादों को नियंत्रित मूल्य बिंदुओं पर' बिक्री कर सके।
अर्चना की पहली चुनौती उत्पाद लाइन के बारे में सोचना था। वह कहती हैं कि आमतौर पर लोग उस चीज की दोबारा शुरुआत करते हैं, जो उन्होंने सीखा होता है, लेकिन यहां उनके लिए यह विकल्प नहीं था।
अर्चना कहती हैं, “एक सिल्वर ब्रांड के साथ काम कर चुके होने के कारण, यह मेरे लिए आसान था कि मैं इसी फील्ड का चयन करूं और अपना खुद का सिल्वर ब्रांड लॉन्च कर दूं। लेकिन मेरी नैतिकता इसकी गवाही नहीं दे रही थी। यह एक बहुत बड़ी दुविधा थी और तभी मेरे दिमाग में यह सारा सौंदर्यशास्त्र आया, जिसके साथ मैं बड़ी हुई थी। मैं धातुओं और कपड़ों के साथ विभिन्न श्रेणियों में कई विकल्पों को आसानी से बना सकता हूं। यहां तक चांदी के साथ भी।”
हाउस ऑफ बदनौर आपको सिल्क, कैशमीर्स, पश्मीना, वेलवेट्स, ज्वैलरी सहित वेगन लेदर, जूत, और परिष्कृत पीईटी यार्न से बने सामानों की एक पूरी रेंज उपलब्ध कराता है।
'राजकुमारियां प्रदा पहनती हैं'
अर्चना कहती है कुछ बनाने का रोमांच कभी खत्म नहीं होता और प्रोडक्ट और डिजाइन में वो उतनी ही सहज है जितनी कि सेल्स और मार्केटिंग में।
अर्चना कहती है, 'एक चुनौती उत्पादों को दिखाने और बिक्री के लिए एक वर्चुअल स्पेस बनाने की थी। साथ ही यह वक्त की मांग थी। आज हमारे पोर्टल पर सबसे अधिक ट्रैफिक सोशल मीडिया अकाउंट्स से आते हैं। लोग वर्चुअल प्लेटफॉर्म से खरीदने को तैयार हैं और हम ग्राहकों को अपने से जोड़े रखने के लिए लगातार खुद को बेहतर कर रहे हैं।'
वह बताती हैं हाउस ऑफ बदनौर इसका झलक देता है कि यह परिवार वास्तव में कौन है और वह है, "अतीत के साथ संवेदनशीलता के साथ जुड़ते हुए अपने नजरिए को वर्तमान समय के साथ समन्वयित करना।"
वह बताती हैं, 'हमारे कलेक्शन को एक लाइन में समझना चाहे तो वह यह है कि 'राजकुमारियां प्रदा पहनती हैं।' यह लाइन जैसी सुनने में लगती है, वैसे ही यह पूरी अहमियत के साथ बदलते समय को बताती है, जहां राजकुमारियां अब अपने महलों तक सीमित नहीं हैं या अपने काम के लिए नौकरानियों के आने की प्रतीक्षा नहीं कर रही हैं। वे इसके बजाय दुनिया की यात्रा कर रही हैं, अपने सपनों और जुनून का पीछा कर रही हैं और अपने जीवन में अधिक मायने जोड़ रही हैं।"
अर्चना कहती हैं, “वे वास्तव में वैश्विक नागरिक हैं और वे जहां भी जाती हैं, अपनी जड़ों को भी साथ ले जाती हैं। यह एचओबी और इसके उत्पाद की पेशकश के पीछे की प्रेरणा है। हम पास्ट फॉरवर्ड हैं।”
एचओबी की योजना इस साल अपने स्वयं का आउटलेट लॉन्च करने की थी, लेकिन महामारी से यह योजना पटरी से उतर गई। जब तक स्थिति में सुधार नहीं होता, तब तक टीम अपनी उत्पाद लाइन और अधिक उत्पादों, डिजाइन और सामग्रियों, तकनीकों और कौशल के साथ लेयरिंग श्रेणियों का विस्तार करती रहेगी।
अर्चना सभी महिला उद्यमियों को सलाह देते हुए कहती हैं, “उद्यमियों के रूप में महिलाओं को एक से अधिक कौशलों की जन्मजात गुण, मल्टीटास्क करने की प्राकृतिक क्षमता के साथ काम करना चाहिए। साथ ही उन्हें अपनी समझ, ज्ञान और करुणा के साथ आगे बढ़ना चाहिए, जो हमारे लिंग के डीएनए में है।"
Edited by Ranjana Tripathi