दिवालिया कंपनियों की संपत्ति से नहीं हो रही कर्ज की भरपाई, 165 कंपनियों की संपत्ति की कीमत 94 फीसदी तक गिरी
दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत साल 2016 में की गई थी. उसके बाद से कर्ज लेने वाली 165 कंपनियों में से प्रत्येक को 1000 करोड़ रुपये चुकाने थे. इसकी कुल कीमत 6 लाख 94 हजार करोड़ रुपये थी.
ऐसी कंपनियां जो दिवालिया होने के बाद लिक्विडेशन यानि कर्जदारों को चुकाने और कारोबार को बंद करने के लिए संपत्ति बेचने की प्रक्रिया के लिए फाइल करने वाली कंपनियों की संपत्ति में 94 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (IBBI) के आंकड़ों से यह जानकारी दी है.
बता दें कि, दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत साल 2016 में की गई थी. उसके बाद से कर्ज लेने वाली 165 कंपनियों में से प्रत्येक को 1000 करोड़ रुपये चुकाने थे. इसकी कुल कीमत 6 लाख 94 हजार करोड़ रुपये थी. हालांकि, इन कर्जधारकों की संपत्तियों की कुल मौजूदा कीमत केवल 40 हजार करोड़ रुपये गई है.
रिपोर्ट में कहा गया कि यह आश्चर्यजनक है क्योंकि कर्जदाता ज्यादातर मार्जिन और प्रमोटर के योगदान को ध्यान में रखकर कर्ज देते हैं. यदि कर्ज को लेकर कोई गारंटी नहीं है, तो वे सुनिश्चित करते हैं कि कारोबार में कैश फ्लो बरकरार हो. बैंकर यह सुनिश्चित करते हैं कि कारोबार का वैल्यूएशन कर्ज की राशि से कम न हो.
UV ARC के डायरेक्टर हरीहरा मिश्रा ने कहा, एक बार जब कोई खाता एनपीए हो जाता है, तो उसकी संपत्ति का मूल्यांकन बिगड़ना शुरू हो जाता है जबकि ब्याज जैसे दावे चक्रवृद्धि दर से बढ़ते रहते हैं. एसेट कवरेज अनुपात कई कारणों से गिर जाता है, जिसमें वे मामले भी शामिल हैं, जहां मंजूरी के समय एसेट का वैल्यूएशन बढ़ा हुआ हो सकता है या बेईमान उधारकर्ताओं द्वारा यूनिट का नियंत्रण खोने का पूर्वाभास होने पर एसेट्स को गबन कर लिया गया. क्रेडिट निगरानी और वसूली प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए विभिन्न अंतरालों पर संपत्ति कवरेज में गिरावट में विभिन्न कारकों की भूमिका की जांच करना स्टडी करने के लिए एक अच्छा मामला होगा.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दिवाला के लिए जाने वाले ज्यादातर मामले अब लिक्विडेशन में समाप्त हो जाते हैं. 2016 से IBC के तहत हल किए गए 4,198 मामलों में से 1,901 का लिक्विडेशन हो चुका है. इनमें से 1,229 का लिक्विडेशन इसलिए हुआ क्योंकि उधारदाताओं को वैध बोलियां नहीं मिलीं. 600 मामलों में समाधान योजना ही नहीं थी.
Edited by Vishal Jaiswal