फिल्मों के बाद ‘QuikWallet’ बनाने तक का सफर आसान नहीं था-सुमा भट्टाचार्य
‘QuikWallet’ की सह-संस्थापक हैं सुमापहले बैंकर, फिर कलाकार और अब उद्यमी हैं सुमाकई तेलगु और तमिल फिल्मों में कर चुकी हैं कामसलमान खान के साथ विज्ञापनों में किया काम
मंजिल तक पहुंचने के लिए मुश्किलों का सामना तो करना ही पड़ता है। सुमा भट्टाचार्य को भी लाख मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन कभी हार ना मानने वाली सुमा उन मुश्किल हालात में घबराई नहीं बल्कि आगे बढ़ती गई और आज वो ‘LivQuick Technology India Private Limited’ की सह-संस्थापक है। देश में पहला मोबाइल पेमेंट ऐप ‘QuikWallet’ लाने के श्रेय इसी कंपनी को जाता है।
सुमा का बचपन कोई खास अच्छा नहीं गुजरा था। जब सुमा सात साल की थीं तो उनके माता पिता में तलाक हो गया। इस दौरान उनके पिता ने उनको बड़ा करने में कोई रूचि नहीं दिखाई और उनकी मां को ही अकेले सारी जिम्मेदारी उठानी पड़ी। तब उनकी मां, सुमा से कहती थीं कि वो अपनी जिम्मेदारियों को पहचाने और अपने पिता के संपर्क में रहे। सुमा के पिता ब्रिटिश रेल में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे और सुमा की मां उनकी दूसरी पत्नी थी। उनकी मां कोलकाता की रहने वाली थीं और शादी के बाद वो भी यूके चली गईं। सुमा के पिता उनकी मां से 20 साल बड़े थे और सुमा का जन्म लंदन में ही हुआ था। साल 1990 में सुमा के पिता रिटायर हो गये जिसके बाद उनके माता-पिता के बीच चीजें बिगड़ती चली गई। ऐसे में उनकी मां सुमा को साथ लेकर अलग रहने लगीं। जिसके बाद सुमा के माता-पिता को लंदन की एक अदालत से तलाक की मंजूरी मिल गई।
30 साल की सुमा पुरानी यादों में खोते हुए बताती हैं कि जब लंदन की कोर्ट ने उनसे पूछा कि वो किसके साथ रहना चाहती हैं तो उन्होने अपनी मां के साथ रहना पसंद किया। सुमा की मां लंदन में एक डे-केयर सेंटर में काम करती थीं। इंपीरियल कॉलेज से भौतिक शास्त्र में स्नातक सुमा लंदन में ही पली बढ़ीं। सुमा पढ़ाई में बहुत अच्छी थी लेकिन एक बार उन्होने थियेटर के लिए काम करने का मन फैसला भी लिया था। सुमा एक प्रशिक्षित कथक नृत्यांगना भी हैं। सुमा ने साल 2006 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उस दौरान सभी इंजीनियर और वैज्ञानिक अपने करियर के तौर पर प्रबंधन और बैंकिंग की ओर देख रहे थे। क्योंकि इन दोनों क्षेत्रों में चीजें तेजी से बदल रही थीं। यही वजह है कि शुरूआत में उन्होने भी लंदन के क्रेडिट सुइस निवेश बैंक में इंटर्नशिप की। यहां उनको कई मजेदार अनुभव हुए।
लंदन के क्रेडिट सुइस निवेश बैंक में काम करते हुए सुमा ने देखा कि माइक्रो बैंकिंग में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। तब वो ग्राहकों को बताने लगे कि अपनी बैलेंस सीट में लिक्विडिटी कैसे बनाये रखें। इसके लिए वो बांड और दूसरी चीजों की जानकारी देने लगे। सुमा ने यहां पर चार साल काम किया। इस दौरान उनके पिता वापस कोलकाता लौट गए थे और उनकी तबियत भी खराब रहने लगी थी और एक दिन अचानक उनको स्ट्रोक पड़ा इस वजह से उनको दो महिने के लिए अपने पिता के पास आना पड़ा ताकि वो उनके साथ कुछ वक्त बिता सकें। तब तक सुमा क्रेडिट सुइस निवेश बैंक को भी छोड़ चुकी थीं। सुमा का कहना है कि वो जल्दीबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती क्योंकि उनको अच्छी खासी तनख्वाह मिल रही थी। लेकिन जब उन्होने कंपनी को अलविदा करने का फैसला लिया तो उसके बाद उस फैसले से पीछे हटने का सवाल ही नहीं था। इधर सुमा के पिता की तबीयत बिगड़ती जा रही थी और वो कोमा में चले गये थे।
एक ओर पिता की हालत गंभीर हो रही थी तो दूसरी ओर वो कुछ काम करना चाहती थीं हालांकि वो कोलकाता में कुछ काम करने की इच्छुक नहीं क्योंकि उनका मानना था कि वहां पर लोगों के काम करने का तरीका पेशेवर नहीं है। तब उन्होने ग्लैमर की दुनिया मुंबई की ओर रूख किया। सुमा मुंबई आ गई ताकि वो कुछ पैसे कमा सकें। किस्मत ने उनका साथ दिया और वो ग्लैमर की दुनिया से जुड़ गईं। इस दौरान उन्होने कई प्रोजेक्ट किये। इनमें फिल्मों के अलावा विज्ञापन भी शामिल थे। सुमा ने कुछ विज्ञापनों में सलमान खान के साथ भी काम किया था। सुमा मुंबई में वो अपने दोस्तों के साथ रहने लगीं।
एक ओर सुमा का करियर परवान चढ़ रहा था तो दूसरी ओर उनके पिता इस दुनिया को छोड़कर चले गये थे। खास बात ये हैं सुमा को इस बात का पता तब चला जब उनके पिता का अंतिम संस्कार भी हो चुका था। सुमा का कहना है कि वो गुस्से में थी उन रिश्तेदारों को लेकर जिन्होने उनके पिता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी और उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया जबकि वो खुद भारत में ही थीं। सुमा के लिए मुंबई कोई सपनों का ठिकाना नहीं था। वो वहां के खराब मौसम और दूसरी कई चीजों से परेशान रहने लगी। एक दिन मुंबई के घरेलू हवाई अड्डे के पास रात 11 बजे कुछ मनचलों ने उनका अपहरण करने की कोशिश की। सुमा के मुताबिक वो एक शूट से लौट रही थीं तभी दो मोटरसाइकिल सवार लोगों ने उनको ऑटोरिक्शा से खींचने की कोशिश की तब वो ये समझ नहीं पाई की इस हालात से कैसे निपटा जाए और अब तक ये घटना उनके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है। ये उनके जीवन का अब तक का सबसे भयावह प्रकरण है।
साल 2011 में उनकी मां लंदन से भारत लौट आई थीं। तब तक सुमा ने तेलगु और तमिल फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होने देखा कि क्षेत्रिय फिल्मों में पुरूषों का वर्चस्व कायम है और वो जिसको चाहें उसे ही फिल्म में हीरोइन लेना पसंद करते हैं। इतना ही नहीं फिल्मों में महिलाएं ज्यादा से ज्यादा सपोर्टिंग रोल ही निभा पाती हैं। इस बीच सुमा ने देखा कि देश में स्टार्ट-अप का माहौल तेजी से बढ़ रहा है। तो वो ‘Samena Capital’ से जुड़ गई। ये संगठन स्थापित व्यवसायों के लिए पैसा उधार देता है। एक निवेशक के तौर एक दिन सुमा की मुलाकात मोहित लालवानी से हुई। उनके विचार जानकर वो उनसे काफी प्रभावित हुईं। जिसके बाद उन्होने उनके साथ मिलकर काम करने का फैसला लिया और साल 2012 में ‘QuikWallet’ का विचार उनको आया। जिसके बाद इन लोगों ने इस पर काम करना शुरू कर दिया। तब इन लोगों के पास पैसे की कमी थी और समय गुजरता जा रहा था। तब सुमा ने महसूस किया कि कंपनी को रणनीतिक दृष्टिकोण की जरूरत है जिसके बाद उन्होने इसमें गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे मजबूत टीम का गठन हुआ। सुमा का शौक कला प्रदर्शन पर आज भी है तभी तो डांस प्रोडक्शन कंपनी के साथ काम करना चाहती हैं। सुमा का मानना है कि वो अच्छी कोरियोग्राफी कर सकती हैं। अपने इसी शौक को पूरा करने के लिए हाल ही में उन्होने एक वर्कशॉप में भी हिस्सा लिया। सुमा का मानना है कि इंसान को समग्र विकास के बारे में सोचना चाहिए।