73 साल के थॉमस अपने बगीचे में उगाते हैं 210 तरह के कटहल
केरल के छक्कमपुझा कट्टाक्कयम गांव में 73 वर्षीय बुजुर्ग थॉमस दिलचस्प तरीके से उगा रहे हैं कटहल की अनेकों किस्में...
कटहल से केरल के लोगों का आत्मीय लगाव है। सरकार ने इसे स्टेट फ्रूट का दर्जा दे रखा है। इसकी खुशबू मदहोश कर देती है। केरल के छक्कमपुझा कट्टाक्कयम गांव में तिहत्तर साल के बुजुर्ग थॉमस अपने डेढ़ एकड़ के बाग में दो सौ दस तरह के कटहल पैदा कर रहे हैं। इसको संरक्षित करना वह अपने जीवन का एकमात्र ध्येय बना चुके हैं। इस राज्य में कटहल की किसानी ने आम, केला, अन्ननास, नारियल की खेतीबाड़ी को पीछे छोड़ दिया है।
कटहल के वृक्ष की छाया में कॉफी, इलाइची, काली मिर्च, जिमीकंद हल्दी, अदरक इत्यादि की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। स्वाद एवं पौष्टिकता की दृष्टि से कटहल का फल अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके फल बसंत ऋतु से वर्षा ऋतु तक उपलब्ध होते हैं।
भारत के बाकी लोगों के लिए तो कटहल (प्लावा) मात्र सब्जी भर है लेकिन केरल में इसे (प्लावा)स्टेट फ्रूट का दर्जा प्राप्त है। राज्य में इसकी दो सौ दस तरह की अलग प्रजातियां हैं। कटहल का बोटेनिकल नाम है आर्टोकरपस, जो दो ग्रीक शब्दों artos यानी रोटी और carpos यानी फल से बनता है। jackfruit पुर्तगाली शब्द jaca से निकला है। फिजिशियन और प्रकृति विज्ञानी गार्सिया डी ओर्टा ने 1563 में अपनी किताब Coloquios Dos Simple E Drogas da India में कटहल का जिक्र किया है। वेस्टर्न घाट को उसका उदभव स्थल माना जाता है।
कटहल की पैदावार के लिए भारत का मौसम बेहद मुफीद माना जाता है। इसका पेड़ सूखे मौसम में भी अच्छी पैदावार देता है। कीड़े इस पर जल्दी हमला नहीं करते। एक साल में एक पेड़ पर 150 फलों तक पैदावार हो जाती है। एक पे़ड़ सौ साल बरकरार रह सकता है। पेड़ की लकड़ी म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बनाने के काम आती है। छक्कमपुझा कट्टाक्कयम गांव में एक तिहत्तर साल के बुजुर्ग थॉमस अपने डेढ़ एकड़ के बाग में दो सौ दस तरह के कटहल पैदा कर रहे हैं। कृषि के जानकार थॉमस बताते हैं कि कटहल अकेला ऐसा फल है, जिसमें किसी भी तरह के कीटनाशक की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे पहले वह रबड़ की खेतीबाड़ी करते थे।
केरल में नारियल और कटहल घर-घर में रोजाना इस्तेमाल होने वाले फल-सब्जी हैं। इससे यहां के लोग भावनात्मक स्तर पर अपना जुड़ाव महसूस करते हैं। यही वजह है कि राज्य सरकार ने इसे स्टेट फ्रूट घोषित कर दिया है। एक वक्त में जागरूक किसान थॉमस फल और सब्जियों पर कीटनाशकों के छिड़काव को लेकर चिंतित रहते थे। कृषि संबंधी छानबीन के दौरान ही उन्हें जब पता चला कि कटहल पर किसी तरह के कीटनाशक का छिड़काव नहीं होता है और मामूली देखभाल के बाद इसका स्वयं बढ़ता जाता है, तो उन्होंने इसको अपने राज्य में बड़े पैमाने पर पोषित करने का संकल्प ठान लिया। वह अपने एक अनोखे सपने में जीने लगे। उस दिन के बाद से उन्होंने रबर की खेतीबाड़ी छोड़ दी और वह अपने डेढ़ एकड़ के बाग में दूर-दूर से लाकर कटहल की तरह-तरह की प्रजातियां रोपने लगे।
थॉमस कटहल की पौध उगाने के बाद उन्हें कंटेनरों में सुरक्षित कर देते। इस दौरान कटहल की कई प्रजातियां तो सूख कर नष्ट भी हो गईं। इससे कटहल की फसल में उनकी दिलचस्पी और बढ़ती गई। उल्लेखनीय है कि कटहल सदाबहार, फैलावदार एवं घने क्षेत्रकयुक्त बहुशाखीय वृक्ष होता है। भारत वर्ष में इसकी खेती केरल के अलावा पूर्वी एवं पश्चिमी घाट के मैदानों, उत्तर-पूर्व के पर्वतीय क्षेत्रों, संथाल परगना एवं छोटानागपुर के पठारी क्षेत्रों, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बंगाल के मैदानी भागों में मुख्य रूप से की जाती है।
कटहल के वृक्ष की छाया में कॉफी, इलाइची, काली मिर्च, जिमीकंद हल्दी, अदरक इत्यादि की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। स्वाद एव पौष्टिकता की दृष्टि से कटहल का फल अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके फल बसंत ऋतु से वर्षा ऋतु तक उपलब्ध होते हैं। बसंत ऋतु में जब प्राय: सब्जी की अन्य प्रजातियों का अभाव रहता है, कटहल के छोटे एवं नवजात मुलायम फल एक प्रमुख एवं स्वादिष्ट सब्जी के रूप में प्रयोग किये जाते हैं। जैसे-जैसे फल बड़े होते जाते हैं, इनमें गुणवत्ता का विकास होता जाता है एवं परिपक्व होने पर इसके फलों में शर्करा, पेक्टिन, खनिज पदार्थ एवं विटामिन ‘ए’ का अच्छा विकास होता है।
केरल में कटहल की खेती ने आम, केला, अन्ननास, नारियल की खेतीबाड़ी को पीछे छोड़ दिया है। कटहल की खुशबू मदहोश कर देती है। इसको डाइबिटीज और पेट की बीमारियों की दवा के रूप में भी प्रमोट किया जा रहा है। कटहल में विटामिन ए, विटामिन सी, थायमीन, पोटाशियम, कैल्शियम, आयरन और जिंक भरपूर मात्रा में होता है। एक किलो कटहल में 95 कैलोरी होती है। कटहल का फल कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसके बीज में कैल्शियम, प्रोटीन, आयरन और पोटाशियम होता है। इसमें भरपूर विटामिन सी होता है। इसके गूदे में काफी फाइबर होता है, जो डाइजेस्टिव सिस्टम लिए काफी अच्छा होता है। अगर वजन बढ़ रहा है, तो इसे कम करने में कटहल काफी मददगार होता है। कैलोरी कम होने से यह मोटापा से बचाता है। कटहल में एंटी-ऑक्सीडेंट होता है। ब्लड प्रेशर को काबू करने में यह मददगार है। साथ ही मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है। कटहल में मौजूद विटामिन ‘ए’आंखों के लिए काफी फायदेमंद बताया जाता है।
केरल सरकार ने कुछ साल पहले ही कटहल को स्टेट फ्रूट घोषित किया है। इस राज्य में हर साल 30 से 60 करोड़ कटहल का उत्पादन होता है। इसे स्टेट फ्रूट घोषित करने के पीछे देशभर में और विदेशी बाजारों में भी केरल के कटहल को एक ब्रैंड के रूप में बढ़ावा देकर इसके जैविक और पौष्टिक गुणों को प्रदर्शित करने का उद्देश्य है। राज्य में हर साल उत्पादित कुल कटहल में से लगभग 30 प्रतिशत नष्ट हो जाता है। राज्य सरकार कटहल और इससे संबंधित उत्पादों की बिक्री से सालाना 15 हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है। यहां के लोग बड़े पैमाने कटहल की सब्जी, अचार, बिरयानी का इस्तेमाल करते हैं। केरल के लोगों में कटहल पूरी तरह रचा-बसा है। अब तो ये केरल की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। छोटे शहरों और गांवों में लगभग हर घर में कटहल का पेड़ मिल जाता है। कच्चा हो या पका कटहल, इसे मलयाली खान-पान से अलग नहीं किया जा सकता।
केरल का कटहल भारत के अन्य क्षेत्रों के अलावा श्रीलंका, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस के किचन तक सप्लाई किया जाता है। केरल के एक एनजीओ 'शांतिग्राम' ने इसे मुख्य आहार, सब्जी और फल की तरह प्रमोट किया। उसने नाबार्ड, केरल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, स्टेट हॉर्टिकल्चर मिशन, केरल स्टेट बायोडाइवर्सिटी बोर्ड के साथ जुड़कर कटहल के व्यवसाय की संभावनाएं तलाश कीं। इसके लिए राज्य में अनेक स्थानों पर जुलूस निकाले गए, कटहल यात्राएं प्रायोजित की गईं, तमाम सेमिनार किए गए। अब तो कटहल मसाला डोसा, गिलौटी कबाब, कटहल काठी रोल, पन्ना कोटा, पायसम, ड्राई कटहल, कटहल की फांक, कच्चे प्रोसेस्ड कटहल, केक के लिए कटहल के बीज की आटा करी, चिप्स, कैंडी, जैम, आइसक्रीम नाम से इसकी अनेक रेंज बाजार में हैं। कटहल खेती के विकास के लिए पलक्कड़ (केरल) की पीपुल्स सर्विस सोसाइटी ने बीते दो वर्षों में चार-पांच हजार किसानों से स्वयं कटहल की खरीदारी की और इससे करोड़ों रुपए की कमाई हुई है।
यह भी पढ़ें: रोजाना सैकड़ों लोगों का पेट भरना अपनी जिंदगी का मकसद समझते हैं हैदराबाद के अजहर