रोटी, कपड़ा और मकान, हुआ हर समस्या का निदान
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
सतपुड़ा मैकल पर्वत क्षेत्र के पहाड़ी एवं वनांचल से घिरे ग्राम पंचायत अमनिया में रहने वाली समारो बाई एवं बुधवारो बाई की यह कहानी किसी भी शासकीय योजना से व्यक्ति के जीवन में आए सकारात्मक परिवर्तन को सहज ही दिखाती है।
जिला मुख्यालय कबीरधाम से लगभग 90 कि.मी. की दूरी पर स्थित विकासखण्ड पण्डरिया के ग्राम पंचायत अमनिया अपनी प्राकृतिक सम्पदा और सौदर्य के लिए पहचाना जाना जाता है।
कभी लकड़ियाँ ,कभी महुआ, तो कभी तेंदुपत्ता को बीनकर बेचना, तो कभी दोनापत्तल बनाकर बेचना और उससे हुई आमदनी गुजर-बसर में लगाना मानो नियति थी। कभी रोजगार गारंटी योजना में काम कर लेना भी रोजगार का एक साधन था। लेकिन इन सब साधनों के बाद भी अपना पक्का मकान बनाने का सोचना मात्र एक सपना ही था, जो आज पूरा हो चुका है। सतपुड़ा मैकल पर्वत क्षेत्र के पहाड़ी एवं वनांचल से घिरे ग्राम पंचायत अमनिया में रहने वाली समारो बाई एवं बुधवारो बाई की यह कहानी किसी भी शासकीय योजना से व्यक्ति के जीवन में आए सकारात्मक परिवर्तन को सहज ही दिखाती है।
जिला मुख्यालय कबीरधाम से लगभग 90 कि.मी. की दूरी पर स्थित विकासखण्ड पण्डरिया के ग्राम पंचायत अमनिया अपनी प्राकृतिक सम्पदा और सौदर्य के लिए पहचाना जाना जाता है। इसी गांव में रहने वाली समारो बाई एवं बुधवारो बाई विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय से है। मौसमी कार्य करके अपने परिवार का भरण पोषण करना ही इन दोनों महिलाओं के लिए रोजगार और आय का साधन था। जिसमें रोजगार गारंटी योजना बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए समय-समय पर रोजगार के अवसर प्रदान किए। रोजगार मिलने से घर के रोजमर्रा के खर्च तो अराम से चल जाते थे। लेकिन रहने के लिए कच्चा मकान था, जिसे पक्का बनाने के लिए केवल आंखों में सपने थे और जेब में पैसें नहीं। इनके मकान बनाने के सपने को प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण ने पूरा कर दिया।
समारो बाई और बुधवारो बाई अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताती है कि ’’हमन वो ग्राम सभा ला कभी नहीं भुलबो जेमे हमर नाम ला प्रधानमंत्री आवास योजना मा जोडे गिस। एखर सेती हमर घर बनाए के सपना हा पूरा होइस। ’’ जैसे ही भारत सरकार की सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत जनगणना 2011 में श्रीमती बुधवारो बाई एवं समारो बाई का नाम पात्रता की सूची मे शामिल था। आर्थिक स्थिति को देखकर ग्राम सभा ने इनका नाम प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण हेतु सर्वसहमति से प्रस्ताव पारित कर लाभांवित करने का फैसला किया। घर बनाने के लिए शासन द्वारा आर्थिक सहायता प्रति ईकाई 1.30 लाख दर से दी गई और साथ में मिला 95 दिनों का रोजगार।
समारो बाई और बुधवारों बाई ने अपने-अपने परिवार रोजगार कार्ड से रोजगार पाया। दोनों को 95-95 दिनों का रोजगार तो मिला ही और साथ में 15,865 रूपय का मजदूरी दोनों महिलाओं को अलग-अलग मिला। एक किचन, एक कमरा, एक बरांदा का पक्का मकान दोनो ने मिलकर साथ बनाया। इस तरह दो कमरे, दो किचन, दो बरांदे का मकान रिश्तों की मजबूत निंव पर खड़ा है, जो सास-बहू के रिश्तें को नयी उंचाईयां दे रहा है। आवास निर्माण के लिए पहले किस्त के रूप में 52,000 रूपय , दूसरे किस्त में 52,000 रूपय एवं मकान पूरा होने पर 26,000 रूपय दोनों महिलाओं को अलग-अलग मिला। जिससे इनके द्वारा एक सुदंर मकान बनाया गया।
इनके मकान में सुविधाओं का विस्तार करने और आय के साधनों को बढाने के लिए योजनाओं के अभिशरण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनके पक्के मकान में स्वच्छ भारत योजना से शौचालय का निर्माण कर खुले में शौच जाने की असुविधा से बचाया गया। आज वे अपने घर में ही बने शौचालय का उपयोग कर रहीं है। रोजगार गारंटी योजना से गांव में नियमित रूप से इन्हे रोजगार भी मिल रहा है जिससे ये अपनी परिवार का भरण-पोषण कर रहीं है। समारो बाई के परिवार में एक पुत्र एवं बुधवारों बाई के परिवार में एक पुत्र व एक पुत्री है। दिनदयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना के तहत इनके घर को बिजली से रौशन कर दिया गया।
रौशनी से जंगल क्षेत्र में रहना अब पहले से बहुत आसान है तथा घर के काम एवं बच्चों की पढायी में सुविधा तो है ही साथ ही चिमनी से निकलने वाले धुए से भी आजादी मिल गई। स्वच्छ इंधन एवं धुआ रहित किचन के सपने को प्रधानमंत्री उज्जवला योजना ने सकार कर दिया। मात्र 200 रूपय में भरा सिलेंडर और चूल्हा मिल गया। अब खाना पकाने के लिए लकड़ी बिनने और उसे फूंक-फूंक कर जलाने कि जरूरत नहीं है। सुविधा अनुसार कभी भी खाना बनाने और उसे गर्म कर खाने का मजा मिलता है। आजीविका बढ़ाने के लिए बैगा प्राधिकरण योजना के द्वारा 25-25 चूजें दोनो को मिल गए। जिससे भविष्य में आय का साधन भी निर्मीत हो गया है। स्वास्थ्य विभाग ने मलेरिया एवं अन्य जानलेवा किटां से बचाने के लिए मच्छरदानी भी दे दी।
जिससे रात को सोना बहुत ही सुविधाजनक हो गया है। स्वास्थ विभाग से इन्हें स्मार्ट कार्ड भी मिल गया, जिससे वे जरूरत पड़ने पर सरकारी या फिर निजी अस्पतालों में अपना सुगमता से ईलाज करा सकते है। खाद्य विभाग से मिला राशन कार्ड ने तो मानों भरण-पोषण कि चिंता को ही दूर कर दिया। न्यूनतम दर पर चावल, शक्कर, मटर,नमक आदि खाद्य पदार्थों से जीवन खुशमय हो उठा है। सरकार की सभी योजनाओं को मिलाकर उसके सही क्रियान्वयन से जिन्दगी में आए सकारात्मक बदलाव को बुधवारों एवं समारो बाई के रूप में देखा जा सकता है।
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