महिलाओं ने घर बेचकर सड़क बनवाई, गहने बेचकर शौचालय
पिछड़ेपन की नजीर रहे गांवों की अनपढ़ महिलाएं भी अब अपने हैरतअंगेज कारनामों से देश के लिए मिसाल बन रही हैं। ऐसी ही नज़ीर बनी हैं दादरी के गांव दादोपुर खटाना की पंचपन वर्षीय महिला राजेश देवी, जिन्होंने कंक्रीट की सड़क बनवाने के लिए अपना मकान बेच दिया। ऐसा ही एक वाकया बिहार के गोपालगंज इलाके का है। भीख से भूख मिटाने और मजदूरी करने वाली महिलाओं ने शौचालय बनवाने के लिए अपने गहने गिरवी रख दिए।
ललिता देवी बताती हैं कि स्वच्छता अभियान के तहत लोग अपने अपने घरों में शौचालय बनवा रहे हैं लेकिन उनके परिवार के सभी सदस्यों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। घर से बाहर शौच के लिए जाना बेहद अपमानजनक लगता था।
दादरी के गांव दादोपुर खटाना की की राजेश देवी की उम्र इस समय पचपन साल है। वह बताती हैं कि एक दिन अपने गांव के खस्ताहाल मार्ग के गड्ढे में लुढ़क जाने से वह घायल हो गईं। इसके बाद उन्होंने सम्बंधित सरकारी विभागों, ग्राम प्रधान आदि से रास्ता बनवाने की गुहार लगाई, उनके कहने पर गांव के लोगों ने ब्लॉक स्तरीय बैठकों में भी इस मसले को उठाया लेकिन लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने संकल्प लिया कि अब वह खुद अपने पैसे से सड़क बनावाएंगी। राजेश देवी का कहना है कि दादरी क्षेत्र के अधिकारी सरकारी सुविधाएं में अमीर-गरीब देखकर उपलब्ध कराते हैं।
गांव के जो रास्ते अमीरों के घरों की ओर जाते हैं, उन्हें ही वे ठीक कराने में दिलचस्पी लेते हैं। राजेश देवी के पति ओमवीर और बेटा सुधीर मेहनत-मजदूरी से घर-गृहस्थी चलाते हैं। पूरा परिवार अपने एक मंजिला मकान में रहता है। जब वह अपने क्षेत्र की सड़क बनवाने की नीचे से ऊपर तक गुहार लगाते लगाते थक गईं तो उन्होंने अपने घर का एक हिस्सा अपने भतीजे को एक लाख रुपए में बेच दिया। कुछ और पैसे इधर-उधर से जुटाकर वह स्वयं अपने घर से गुजरते रास्ते को बनवाने में जुट गईं। और इस तरह वहां गड्ढों से भरा कच्चा मार्ग ढाई सौ मीटर तक कंक्रीट की सड़क में तब्दील हो गया।
गोपालगंज (बिहार) के कुचायकोट प्रखंड में विक्रमपुर पंचायत के वार्ड नंबर दो में रहती हैं ललिता देवी। आर्थिक दृष्टि से उनका परिवार बहुत कमजोर है। उनके पति आइक्रीम बेचकर घर का खर्च चलाते हैं। ललिता भी मजदूरी करती हैं। वह 'जीविका दीदी' समूह से अपनी बीमारी के इलाज के लिए पंद्रह हजार रुपए कर्ज भी ले चुकी हैं, जो चुकता करने का बूता नहीं। ऐसे कठिन दौर से गुजरता परिवार यदि आज के जमाने में शौचालय बनवाने की हिम्मत कर ले तो हैरत होती है लेकिन ललिता देवी ने ऐसा किया, उन्होंने अपना जेवर गिरवी रख कर घर में शौचालय बनवाया।
ललिता देवी बताती हैं कि स्वच्छता अभियान के तहत लोग अपने अपने घरों में शौचालय बनवा रहे हैं लेकिन उनके परिवार के सभी सदस्यों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। घर से बाहर शौच के लिए जाना बेहद अपमानजनक लगता था। घर की माली हालत ठीक नहीं है। घर के लोग शौचालय बनवाने के लिए तैयार नहीं थे। इसके बाद उन्होंने तय किया कि अब वह सम्मान के साथ समझौता नहीं करेंगी। उन्होंने शादी के समय मिले अपने कुछ जेवर गिरवी रख दिए। जो रुपए मिले, उससे शौचालय बनवा लिया। इसके बाद तो एक सिलसिला सा चल पड़ा। देखेदेखी गांव की तीन-चार और महिलाओं ने अपने घर वालों पर दबाव बनाकर अपनो घरों में शौचालय बनवा लिए। अब प्रशासन ललिता देवी को सम्मानित करने जा रहा है।
हाल ही में गोपालगंज क्षेत्र के ही सदर प्रखंड की कोंहवा ग्राम पंचायत की दो ऐसी महिलाओं को डीएम अनिमेष कुमार पराशर ने सम्मानित किया, जो भिक्षाटन से पेट पालती हैं। वे दोनों महिलाएं हैं, बुजुर्ग मेहरून खातून और जगरानी देवी। मेहरून और जगरानी को ठीक से भोजपुरी बोलने भी नहीं आता है। गौरतलब है कि इस समय बिहार में केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन और बिहार सरकार के लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत खुले में शौच से मुक्ति का अभियान गांव-गांव चलाया जा रहा है। कोन्हवा पंचायत में कुल 1519 घर हैं, जिनमें से करीब 600 घर कुछ महीने पूर्व तक शौचालय विहीन थे।
जब मेहरून और जगरानी को इस अभियान का पता चला तो उन्होंने भी खुद का शौचालय बनवाने का संकल्प ले लिया। भिक्षाटन ही उनकी जमा-पूंजी रही है। उससे उन्होंने रुपए जुटाए और अपना शौचालय बनवा लिया। मेहरून बताती हैं कि भीख मांगकर परिवार चलाने के कारण उन्हें कभी सम्मान नहीं मिला। लोग नीची निगाह से देखते रहे हैं। स्वच्छ भारत अभियान के लिए इस पहल ने उनका दर्जा बढ़ा दिया है। अब लोग उनको भी सम्मान दे रहे हैं। इन दोनो बुजुर्ग महिलाओं ने साबित कर दिया है कि देश या समाज में किसी प्रकार के योगदान के लिए पैसे नहीं, जज्बे की जरूरत होती है। डीएम ने कहा कि आज ये दोनों महिलाएं समाज के लिए मिसाल बन चुकी हैं।
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