आपने काटा बैंक चेक और हो गया बाउंस, जानें कब माना जाएगा अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर चेक जारी करने के बाद और उसे भुनाए जाने के पहले जारीकर्ता उस राशि के कुछ या पूरे हिस्से का भुगतान कर देता है तो फिर चेक परिपक्वता की तारीख पर वैध प्रवर्तनीय ऋण उस चेक पर अंकित राशि के बराबर नहीं होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि चेक बाउंस के मामले के एक आपराधिक कृत्य होने के लिए जरूरी है कि भुगतान के लिए बैंक में पेश किए जाते समय वह चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय कर्ज का हिस्सा हो.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का विस्तार से विश्लेषण करने के बाद कहा, ‘‘इसकी धारा 138 के तहत चेक बाउंस को आपराधिक कृत्य मानने के लिए यह जरूरी है कि बाउंस हुआ चेक पेश किए जाते समय एक वैध प्रवर्तनीय ऋण का प्रतिनिधित्व करे.’’
पीठ ने यह भी कहा कि अगर चेक जारी करने के बाद और उसे भुनाए जाने के पहले जारीकर्ता उस राशि के कुछ या पूरे हिस्से का भुगतान कर देता है तो फिर चेक परिपक्वता की तारीख पर वैध प्रवर्तनीय ऋण उस चेक पर अंकित राशि के बराबर नहीं होगा.
जज ने यह निर्णय गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर दशरथभाई त्रिकमभाई पटेल की अपील पर सुनाया है. हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि दशरथभाई के रिश्तेदार हितेश महेंद्रभाई पटेल के खिलाफ चेक बाउंस का कोई वाद नहीं बनता है.
हितेश ने दशरथभाई से जनवरी, 2012 में 20 लाख रुपये उधार लिए थे और इसकी गारंटी के तौर पर उन्हें समान राशि का एक चेक दे दिया था. लेकिन बैंक में भुनाने के लिए दिए जाने पर वह चेक बाउंस हो गया था. हालांकि, चेक बैंक में पेश किए जाने के पहले ही हितेश ने उधार ली हुई रकम लौटा दी थी.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब चेक पर अंकित राशि का आंशिक या समूचा हिस्सा जारीकर्ता ने चेक बैंक में पेश किए जाने के पहले ही चुका दिया है तो उस पर धारा 138 के तहत आपराधिक वाद नहीं बनता है. बता दें कि, चेक का बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है और दोषी पाए गए व्यक्ति को अर्थदंड के साथ अधिकतम दो साल तक की सजा हो सकती है.
उद्योग मंडल का बैंक निकासी निलंबित करने का सुझाव
पिछले सप्ताह ही, उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) ने वित्त मंत्रालय से चेक बाउंस मामले में सख्त कदम उठाने का सुझाव दिया था. उद्योग मंडल ने कहा है कि चेक बाउंस के मामले में जारीकर्ता की बैंक से निकासी को अनिवार्य रूप से कुछ दिन के लिए निलंबित कर दिया जाए.
पीएचडीसीसीआई ने कहा कि सरकार को ऐसा कानून लाना चाहिए जिसके तहत चेक का भुगतान नहीं होने की तारीख से 90 दिन के भीतर दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता के जरिये मामले को सुलझाया जाए.
33 लाख से अधिक चेक बाउंस के मामले कानूनी लड़ाई में फंसे
उद्योग मंडल ने यह भी सुझाव दिया कि बैंक को चेक जारीकर्ता के खाते से कोई अन्य भुगतान करने से पहले ही अगर संभव हो तो बैंकिंग प्रणाली के भीतर बाउंस किए गए चेक का भुगतान करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि सूक्ष्म लघु एवं मझोले उद्योग (एमएसएमई) के लिए चेक बाउंस का मुकदमा महंगा है क्योंकि इसके लिए वकील फीस रकम वसूलते हैं. आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में करीब 33 लाख से अधिक चेक बाउंस के मामले कानूनी लड़ाई में फंसे हुए हैं.
Edited by Vishal Jaiswal