चायवाले के 17 साल के बेटे ने बनाया डेंगू से लड़ने वाला ड्रोन
ड्रोन के जरिए डेंगू के खतरे से बचने की यह तरीका कोलकाता में पहले से इस्तेमाल हो रहा है। कोलकाता में साउथ सिटी मॉल के आस-पास के इलाके में ड्रोन्स को इस काम के लिए तैनात किया गया है।
राजीव ने अपने इस खास ड्रोन में एक हाई रेज़ोल्यूशन का कैमरा लगाया है। इस कैमरे की मदद से डेंगू फैलाने वाले मच्छर के लारवा को ट्रैक किया जा सकता है। यह ड्रोन 1.8 किमी. की ऊंचाई तक जा सकता है, लेकिन सुरक्षा कारणों की वजह से इसकी क्षमता को 200 मीटर तक ही सीमित रखा गया है।
उम्र कोई भी हो, आर्थिक हालात कैसे भी हों, अगर मंशा अच्छी हो और मन में समर्पण हो तो समाज के लिए कुछ बेहतर करने से आपको कोई नहीं रोक सकता है। इस बात को सही साबित करती है, सिलिगुड़ी के राजीव घोष की कहानी है। राजीव की उम्र महज 17 साल है और वह 11वीं कक्षा में पढ़ते हैं। उनकी आर्थिक हालत भी खराब है, लेकिन ऐसे विपरीत हालात में भी राजीव ने डेंगू जैसी बीमारी से लड़ने में मददगार एक ड्रोन बनाया है।
राजीव के पिता, रंजीत घोष 56 वर्ष के हैं और सिलिगुड़ी में चाय की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। राजीव अपने पिता के काम में हाथ भी बंटाते हैं और साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी करते हैं। इस चुनौती की वजह से राजीव 10वीं कक्षा में अच्छे अंक नहीं ला सके और 11वीं में उन्हें साइंस स्ट्रीम नहीं मिली।
इसके बावजूद भी विज्ञान और तकनीक के लिए राजीव का लगाव बिल्कुल भी कम नहीं हुआ। पिछले साल उनके शहर में डेंगू के खतरे ने काफी आतंक मचा रखा था। इस बात को ध्यान में रखते हुए राजीव एक ऐसा ड्रोन बनाने की जुगत में लग गए, जो मच्छरों के खतरे से लोगों को सुरक्षित रख सके। उन्हें इस ड्रोन को बनाने के लिए 1.5 लाख रुपए की जरूरत थी। उन्होंने यह राशि अपने माता-पिता और पड़ोसियों की मदद से इकट्ठा की। राजीव ने सात महीनों की कड़ी मेहनत के बाद यह ड्रोन तैयार किया।
राजीव ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए बताया, 'मेरे माता-पिता ने सहमत होने के बाद कुछ पैसा उधार लिया। मेरे कुछ पड़ोसियों ने अपनी ओर से मदद की। मैंने इस ड्रोन को बनाने में 1.5 लाख रुपए खर्च किए।' राजीव ने इकट्ठा किए हुए पैसों की मदद से चीन और अमेरिका से, तकनीकी रूप से अडवांस उपकरण मंगवाए।
क्या है ड्रोन की खासियत
राजीव ने अपने इस खास ड्रोन में एक हाई रेजॉलूशन का कैमरा लगाया है। इस कैमरे की मदद से डेंगू फैलाने वाले मच्छर के लारवा को ट्रैक किया जा सकता है। यह ड्रोन 1.8 किमी. की ऊंचाई तक जा सकता है, लेकिन सुरक्षा कारणों की वजह से इसकी क्षमता को 200 मीटर तक ही सीमित रखा गया है। इतनी ऊंचाई पर कैमरे की मदद से राजीव का ड्रोन यह पता लगा सकता है कि कहां-कहां पानी का जमाव है और वहां पर डेंगू के मच्छर होने की संभावना है।
अपने ड्रोन का 6 महीने तक परीक्षण करने के बाद राजीव ने सिलिगुड़ी के मेयर अशोक भट्टाचार्य को अपना प्रयोग दिखाया, जिसे देखकर वह काफी आश्चर्यचकित हुए। अशोक ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पहले तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब राजीव ने उन्हें ड्रोन के फंक्शन के बारे में बताया तो वह राजीव के हुनर के कायल हो गए। मेयर ने बताया कि नगर निगम ने तय किया है कि राजीव के ड्रोन को इस्तेमाल में लाया जाएगा और राजीव को जरूरत की सारी चीजें मुहैया कराई जाएंगी।
सिलिगुड़ी नगर निगम ड्रोन के साथ कुछ प्रयोग करने की योजना बना रहा है और उनकी प्राथमिकता है कि जल्द-जल्द से इसकी मदद से इलाके में काम शुरू किया जाए। राजीव चाहते हैं कि भविष्य में वह अपने ड्रोन में और भी बेहतर रेजॉलूशन का कैमरा इस्तेमाल करें। नगर निगम का सहयोग मिलने के बाद राजीव जल्द ही एक और ड्रोन बनाना चाहते हैं। ड्रोन के जरिए डेंगू के खतरे से बचने की यह तरीका कोलकाता में पहले से इस्तेमाल हो रहा है। कोलकाता में साउथ सिटी मॉल के आस-पास के इलाके में ड्रोन्स को इस काम के लिए तैनात किया गया है।
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