कार गैरेज से शुरू किया था बिजनेस, अब हैं तीन कंपनियों के मालिक
जो कभी चलाते थे गैरेज आज हैं तीन बड़ी कंपनियों के मालिक...
राजीब ने ऐग्रीप्लास्ट की शुरूआत 2003 में एक कार गैराज से की थी। 2017-18 में राजीब का लक्ष्य तीनों कंपनियों का टर्नओवर 130 करोड़ रुपए तक पहुंचाने का है। ऐग्रीप्लास्ट टेक इंडिया ग्रीनहाउस फिल्म और ग्रीनहाउस के अन्य उपकरणों पर काम करती है।
राजीब एक इंजीनियर थे, लेकिन उन्होंने ग्रीनहाउस या खेतों की विपरीत परिस्थितियों में काम करने से कभी गुरेज नहीं किया। 9 महीने तक सैलरी नहीं बढ़ी और राजीब की शादी भी हो गई।
राजीब की दोनों कंपनियों ने खेती से जुड़ी कई विदेशी तकनीकों को भारत में शुरू किया। ऐग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन अपने कुछ उत्पाद नेपाल, केन्या और युगांडा भी निर्यात करती है। कंपनी ऑस्ट्रेलिया स्थिति कुछ फर्मों से भी इस दिशा में बात कर रही है।
यह कहानी है मधुबनी, बिहार के 50 वर्षीय राजीब कुमार रॉय की। राजीब सिंचाई के क्षेत्र से जुड़ी एक कंपनी में नौकरी करते थे, लेकिन आज वह तीन कंपनियों के मालिक हैं, जिनका कुल सालाना टर्नओवर 71 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। राजीब एक इंजीनियर हैं और अपने तकनीकी ज्ञान की मदद से वह किसानों को ऐसी सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं, जिनके जरिए वह अधिक से अधिक पैसा कमा सकें। वर्तमान में राजीब ऐग्रीप्लास्ट टेक इंडिया प्रा. लि., ऐग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन प्रा. लि. और द ऐग्री हब, कंपनियों के फाउंडर और डायरेक्टर हैं। ऐग्रीप्लास्ट टेक इंडिया और ऐग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन, इन दोनों का सेटअप राजीब ने तमिलनाडु के होसुर में स्थित अपनी ही जमीन पर किया है, जो बेंगलुरु से काफी नजदीक है।
राजीब ने ऐग्रीप्लास्ट की शुरूआत 2003 में एक कार गैराज से की थी। 2017-18 में राजीब का लक्ष्य तीनों कंपनियों का टर्नओवर 130 करोड़ रुपए तक पहुंचाने का है। ऐग्रीप्लास्ट टेक इंडिया ग्रीनहाउस फिल्म और ग्रीनहाउस के अन्य उपकरणों पर काम करती है और ऐग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन प्रा. लि. सुरक्षित फार्मिंग प्रोजेक्ट्स की सुविधाएं देती है। राजीब अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ बेंगलुरु में रहते हैं। उन्होंने महाराष्ट्र की महात्मा फूले कृषि विद्यापीठ से बी. टेक किया और फिर आईआईटी खड़गपुर से 1993 में पोस्ट-हारवेस्ट तकनीक में एम. टेक किया। इसके बाद 2012 में उन्होंने आईआईएम, बेंगलुरु से एक्जीक्यूटिव जनरल मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया।
राजीब को तकनीकी क्षेत्र का अच्छा ज्ञान है और उन्होंने दुनिया घूमी है। 2003 में ऐग्रीप्लास्ट की शुरूआत से पहले, वह गाइनगर प्लास्टिक प्रोडक्ट्स लि. कंपनी में डायरेक्टर मार्केटिंग (भारत) के पद पर काम करते थे और उन्होंने इस कंपनी को भारतीय ग्रीनहाउस इंडस्ट्री में अच्छा नाम दिलाया। राजीब जिस कंपनी में काम कर रहे थे, उसका बुरा दौर आया और नौबत यह आई गई की कंपनी अपने कर्मचारियों की सैलरी तक देने में असमर्थ हो गई। इसके बाद राजीब ने अपना काम शुरू करने का फैसला लिया।
राजीब ने अपनी पहली नौकरी की शुरूआत 3,000 हजार रुपए मासिक वेतन और तीन महीनों में 300 रुपए के इन्क्रीमेंट के साथ की थी। राजीब बताते हैं कि उन्होंने मेहनत से काम किया, लेकिन उनका वेतन नहीं बढ़ाया गया। राजीब एक इंजीनियर थे, लेकिन उन्होंने ग्रीनहाउस या खेतों की विपरीत परिस्थितियों में काम करने से कभी गुरेज नहीं किया। 9 महीने तक सैलरी नहीं बढ़ी और राजीब की शादी भी हो गई। वह अपनी पत्नी रंजना के साथ एक कमरे में रहते थे। राजीब की पत्नी बतौर टीचर, 600 रुपए महीने की नौकरी करती थीं।
राजीब बताते हैं कि कंपनी ने उन्हें चंडीगढ़ में एक इवेंट के लिए भेजा और उन्हें सिर्फ 40 रुपए प्रति दिन की सहयोग राशि मिलती थी। राजीब के पास आईआईटी की डिग्री थी, इसके बाद भी वह इतने छोटे स्तर पर काम कर रहे थे। उन्हें यह रास नहीं आया और उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला ले लिया। चंड़ीगढ़ के कार्यक्रम में चेन्नै से एक कंपनी आई थी, जिसने ग्रीनहाउस डिविजन का एक स्टॉल लगाया था। राजीब ने 1994 में इस कंपनी में बतौर सीनियर इंजीनियर नौकरी की शुरूआत की। वह चेन्नै चले गए और कंपनी का ग्रीनहाउस डिविजन शुरू किया। राजीब की सैलरी में बड़ा इजाफा हुआ और उन्हें 10,000 हजार रुपए का मासिक वेतन मिलने लगा।
ये अच्छे दिन ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रहे। यह कंपनी भी नुकसान में जाने लगी। इस समय तक राजीब और रंजना की एक बेटी (आकांक्षा) भी थी और हालात उनके लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं थे। नौबत यह आ गई कि उनके परिवार को कई दिन तक भूखा रहना पड़ता था। राजीब को दो महीने से सैलरी ही नहीं मिली थी। बुरे हालात से परेशान होकर राजीब अपने बॉस के घर गए और सैलरी देने को कहा, लेकिन वहां उन्हें अपमानित होना पड़ा। राजीब ने अपनी यह नौकरी भी छोड़ दी।
अपनी दूसरी नौकरी छोड़ने के बाद राजीब ने एक इजरायली कंपनी में काम शुरू किया। यहां पर राजीब भारत में कंपनी का ग्रीनहाउस सेल्स ऑपरेशन देखते थे। राजीब को 500 यूएस डॉलर (तब 22,000 रुपए) का मासिक वेतन और सेल्स की 10 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि ऑफर हुई। उन्होंने इस कंपनी के साथ 1996 में काम शुरू किया और एक साल के भीतर ही उन्होंने कंपनी को 50 लाख रुपए तक के ऑर्डर दिला दिए।
यह कंपनी आगे चलकर गाइनगर प्लास्टिक प्रोडक्ट्स लि. में शामिल हो गई और 1997 में राजीब को भारत में कंपनी का डायरेक्टर मार्केटिंग नियुक्त कर दिया गया। इस बार भी अच्छा समय ज्यादा समय तक जारी नहीं रहा और 2003 में एक मामले में राजीब के घर रेवेन्यू इंटेलीजेंस का छापा पड़ा। राजीब ने बताया कि इस दौरान उनकी पत्नी गर्भवती थीं और इस झटके की वजह से उनका बच्चा पेट में ही मर गया। राजीब कहते हैं कि वह हफ्तों तक सो नहीं सके, लेकिन वह मानते हैं कि उनकी ईमानदारी ने ही उन्हें बचाया।
राजीब ने इस दौरान ही तय किया कि वह अपना खुद का आयात का व्यापार शुरू करेंगे। उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से 24 प्रतिशत सालाना ब्याज पर 20 लाख रुपए उधार लिए और चेन्नै में अपना घर बेच दिया। इन पैसों से राजीब ने ऐग्रीप्लास्ट टेक इंडिया (प्रॉपराइटरशिप) की शुरूआत एक छोटे से कार गैरेज से की। उन्होंने इसका उद्घाटन 13 जनवरी, 2004 को अपने जन्मदिन पर किया।
पहले ही साल कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। 2011 में यह कंपनी प्राइवेट लिमिटेड हो गई। इसके बाद राजीब ने 2013 में दूसरी कंपनी की शुरूआत की। राजीब की दोनों कंपनियों ने खेती से जुड़ी कई विदेशी तकनीकों को भारत में शुरू किया। ऐग्रीप्लास्ट प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन अपने कुछ उत्पाद नेपाल, केन्या और युगांडा भी निर्यात करती है। कंपनी ऑस्ट्रेलिया स्थिति कुछ फर्मों से भी इस दिशा में बात कर रही है।
स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया से प्रभावित होकर राजीब ने 2016 में द ऐग्री हब (Theagrihub) की शुरूआत की, जो कृषि उत्पादों का ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म है। राजीब की बेटी आकांक्षा (22) बेंगलुरु में एसएजेजे नाम से एक फैशन स्टूडियो चलाती हैं और उनका बेटा अभिनव (16) पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेटर बनने की जुगत में लगा हुआ है। राजीब की पत्नी अपनी बेटी के बिजनस से जुड़ी हुई हैं।
राजीब सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हुए हैं। उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के शीर्ष प्रबंधन के साथ मिलकर 8.6 करोड़ रुपए इकट्ठा किए, जिसकी मदद से बेंगलुरु के श्री शंकरा कैंसर हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर में सबसे अडवांस पीईटी सीटी स्कैन मशीन लगाई गई, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को इसका फायदा मिल सके।
राजीब मैरी कॉम रीजनल बॉक्सिंग फाउंडेशन से भी जुड़े हुए हैं और हर साल मैरी कॉम की सलाह पर दो प्रतिभावान विद्यार्थियों का आर्थिक सहयोग भी करते हैं। राजीब अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं।
राजीब कहते हैं कि उनके पिता, उनके लिए सबसे बड़े प्रेरणास्त्रोत थे। राजीब के पिता, मधुबनी के आरके कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रफेसर थे। उनके पिता ने कठिन परिस्थितियों से जूझकर अपना भविष्य गढ़ा था और यही राजीब के लिए प्रेरणा बना।
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