मध्य प्रदेश की ये 'चाचियां' हैंडपंप की मरम्मत कर पेश कर रहीं महिला सशक्तिकरण का उदाहरण
आमतौर पर गांवों में हैंडपंप और ट्यूबवेल की मरम्मत का काम पुरुष ही करते हैं, लेकिन ये महिलाएं हाथ में औजार लेकर एक नए और अनोखे तरीके से न केवल लोगों की मदद कर रही हैं बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में नया आयाम गढ़ रही हैं।
हैंडपंप की मरम्मत करने वाली ये चाचियां सिर्फ अपने जिले तक ही सीमित नहीं हैं। ये राज्य के अन्य हिस्सों में जाकर हैंडपंप की मरम्मत करती हैं। साड़ी पहनकर ढंके सर में इन महिलाओं के ग्रुप में 15 सदस्य हैं।
उत्तर भारत का बुंदेलखंड इलाका सूखे और पानी की कमी की वजह से मुश्किलों में रहने की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहता है। यहां अगर किसी नल या ट्यूबवेल में खराबी आ जाए तो उसे ठीक कराने के लिए लोगों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ जाते हैं। लेकिन बुंदेलखंड में आने वाले मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की कुछ महिलाएं खुद से नल और ट्यूबवेल की मरम्मत कर देती हैं। इन महिलाओं को 'हैंडपंप वाली चाचियों' के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर गांवों में हैंडपंप और ट्यूबवेल की मरम्मत का काम पुरुष ही करते हैं, लेकिन ये महिलाएं हाथ में औजार लेकर एक नए और अनोखे तरीके से न केवल लोगों की मदद कर रही हैं बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में नया आयाम गढ़ रही हैं।
हैंडपंप की मरम्मत करने वाली ये चाचियां सिर्फ अपने जिले तक ही सीमित नहीं हैं। ये राज्य के अन्य हिस्सों में जाकर हैंडपंप की मरम्मत करती हैं। साड़ी पहनकर ढंके सर में इन महिलाओं के ग्रुप में 15 सदस्य हैं। इनके पास हथोड़े से लेकर नट, बोल्ट और रिंच, पाना सब रहता है। इन्हें बुंदेलखंड के अधिकतर इलाकों के लोग अच्छे से जानते हैं। गांव के लोग बताते हैं, 'हमें इन चाचियों को सिर्फ बताना होता है कि गांव का हैंडपंप या ट्यूबवेल खराब हो गया है। सूचना पाते ही ये मौके पर पहुंचती हैं और रिपेयरिंग के काम में लग जाती हैं।'
हालांकि इन महिलाओं के पास कहीं जाने के लिए कोई साधन नहीं है। इसलिए इन्हें पैदल ही मीलों का सफर तय करना पड़ता है। कई बार तो ये खराब पंप को सही करने 25 किलोमीटर तक पैदल चली जाती हैं। लेकिन भलमनसाहत देखिए कि इतनी मेहनत करने वाली ये महिलाएं कभी किसी कमी के लिए शिकायत नहीं करतीं। आपको बता दें कि इन महिलाओं में से कोई भी स्कूल नहीं गया है और न ही किसी ने कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली है। एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक ये महिलाएं पंप रिपेयर करने के लिए राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्य भी जा चुकी हैं।
दुख की बात ये है कि इन्हें अभी तक किसी सरकारी विभाग या संगठन से किसी भी तरह की मदद नहीं मिली है। अपनी स्वेच्छा से बुंदेलखंड में सूखे से प्रभावित लोगों का सहारा बनने वाली इन चाचियों को किसी न किसी स्तर से मदद की जरूरत है। साथ ही अगर इन्हें उचित प्रशिक्षण भी दे दिया जाए तो ऐसी ही और महिलाएं भी काम करने को प्रेरित होंगी।
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